श्री बन्किमचंद्र, साहित्यिक प्रतिभा
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बन्किमजी की साहित्यिक आकर्षण
पर्वत नदियाँ जब तक धरती पर
अमर रहेगा नाम बंकिम जी का
हुई धन्या मातृभूमि जिसने जन्मा
बंकिम जैसे वीर धीर पुत्रों को
बचपन में जो कलम उठा ली
अंत समय तक चलती रही
कविता कथा या कोई गीत
बस गए मन में बनकर मीत
उठी लहर साहित्य जगत में
मातृभाषा को मिली पहचान
इनकी रचना सीधे फिर भी है गंभीर
पाठक हो जाते पुलकित सौ सौ बार
वंदे मातरम दरशाता इनकी वीरता
पूरा विश्व इनकी गुणों को हैं गाता
अल्प जीवन काल में किया उजाला
शुक्र तारा बन धरती को चमकाया
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