Hindi, asked by s14847cnikhil05993, 4 months ago

श्रीकृष्ण के अनुसार राजसूय यज्ञ में पा-क्या बाधाएं शीर​

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Answered by rashmimaheshwari9491
3

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Explanation:

ज्ञ में उपस्थित भगवान कृष्ण से यज्ञ का पूर्ण रूप से अनुष्ठान

उस यज्ञ का विघ्न शान्त हो गया था, अत: उसका सुख पूर्वक आरम्भ हुआ। उसमें अपरिमित धन धान्य का संग्रह एवं सदुपयोग किया गया था। भगवान श्रीकृष्ण से सुरक्षित होने के कारण उस यज्ञ में कभी अन्न की कमी नहीं होने पायी। उसमें सदा पार्याप्त मात्रा में भक्ष्य भोज्य आदि की सामग्री प्रस्तुत रहती थी। भरतनन्दन! राजाओं ने सहदेव के द्वारा विष्णु बुद्धि से भगवान श्रीकृष्ण की प्रसन्नता के लिये किये जाने वाले उस यज्ञ का उत्तम विधि विधान देखा। उस यज्ञमण्डप में सुवर्णमय ताल के बने हुए फाटक दिखायी देते थे, जो अपनी प्रभा से तेजस्वी सूर्य के समान देदीप्यमान हो रहे थे। उन तेजस्वी द्वारों से वह विशाल यज्ञ मण्डप ग्रहों से आकाश की भाँति प्रकाशित हो रहा था। वहाँ शय्या, आसन और क्रीडा भवनों की संख्या बहुत थी। उनके निर्माण में प्रचुर धन लगा था। चारों ओर घड़े, भाँति-भाँति के पात्र, कड़ाहे, और कलश आदि सुवर्ण निर्मित सामान दृष्टिगोचर हो रहे थे। वहाँ राजाओं ने कोई ऐसी वस्तु नहीं देखी, जो सोने की बनी हुई न हो। उस महान् यज्ञ में राजसेव गण ब्राह्मणों के आगे सदा नाना प्रकार के स्वादिष्ट भात तथा चावल की बनी हुई बहुत सी दूसरी भोजय वस्तुएँ परोसते रहते थे। वे उनके लिये मधुर पेय पदार्थ भी अर्पण करते थे। भोजन करने वाले ब्राह्मणों की संख्या जब एक लाख पूरी हो जाती थी, तब वहाँ प्रतिदिन शंख बजाया जाता था। जनमेजय! दिन में कई बार इस तरह की शंख ध्वनि होती थी। वह उत्तम शंखनाद सुनकर लोगों को बड़ा विस्मय होता था। इस प्रकार सहस्रों ह्रष्ट पुष्ट मनुष्यों से भरे हुए उस यज्ञ का कार्य चलने लगा। राजन्! उसमें अन्न के बहुत से ऊँचे ढेर लगाये गये थे , जो पवतों के समान पड़ते थे। लोगों ने देखा, वहाँ दही की नहरेें बह रहीं थीं तथा घी के कितने ही कुण्ड भरे हुए थे

Answered by nyatibhavya0905
3

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Explanation:

सब लोग राजर्षि युधिष्ठिर के राजसूय महायज्ञ की प्रशंसा करते-करते तृप्त न होते थे। इसके बाद धर्मराज युधिष्ठिर ने बड़े प्रेम से अपने हितैषी सुहृद्-सम्बन्धियों, भाई-बन्धुओं और भगवान श्रीकृष्ण को भी रोक लिया, क्योंकि उन्हें उसके विछोह की कल्पना से ही बड़ा दुःख होता था।

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