श्रीलंका के समस्या पर प्रकाश डालें
Answers
Explanation:
श्रीलंका में घरेलू मुद्दों पर असहमति नेताओं, राजनीतिक दलों और धार्मिक व्यक्तित्वों के एजेंडे को दिशा दे रही है जिनका देश की स्थिरता के लिए निहितार्थ हैं।
अक्टूबर 2018 के बाद से, ऐसा लगता है कि श्रीलंका के भीतर राजनीतिक संकट में कोई कमी नहीं आई है। घरेलू मुद्दों पर असहमति श्रीलंका में नेताओं, राजनीतिक दलों और धार्मिक व्यक्तित्वों के एजेंडे को चला रही है। जैसे-जैसे देश अगले राष्ट्रपति चुनाव 2019 के लिए तैयार हो रहा है, देश की स्थिरता और सुरक्षा के इनमें निहितार्थ हैं।
एक नए संविधान पर बहस
वर्तमान में श्रीलंकाई राजनीति को प्रभावित करने वाला मुख्य मुद्दा नए संविधान को पेश करने की संभावना और वर्तमान संविधान द्वारा दी गई शक्तियों के उपयोग को लेकर राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री (पीएम) के बीच मतभेदों का है।
हालांकि राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना ने 2015 में सरकार के गठन के बाद 19वें संशोधन के लिए अपना समर्थन व्यक्त किया था, लेकिन अब धीरे-धीरे लगता है कि वे अपनी बात से पीछे हट गए हैं। उन्होंने एक नया संविधान पेश करने में असमर्थता व्यक्त की और कहा कि इस मामले पर तमिलों को गुमराह किया जाता है।1
उन्होंने जनवरी 2019 में 19वें संशोधन को निरस्त करने का भी आह्वान किया क्योंकि उनकी सरकार को ‘संशोधन के माध्यम से पेश किए गए परिवर्तनों के कारण बहुत नुकसान हुआ’।2 इस विचार के विपरीत, अतीत में 19वें संशोधन को एक महत्वपूर्ण उपलब्धि के रूप में उल्लिखित किया गया था क्योंकि इसने सार्वजनिक सेवा, मानवाधिकार, चुनाव, पुलिस और न्यायपालिका जैसे स्वतंत्र आयोगों को बहाल करते हुए राष्ट्रपति की कुछ शक्तियों पर रोक लगा दी और संवैधानिक परिषद की स्थापना की थी। संशोधन को पार्टी लाइनों से परे जाकर श्रीलंका के सांसदों का समर्थन प्राप्त हुआ, यानी 225 में से 212 सांसदों ने 2015 में संशोधन का समर्थन किया। कई लोगों ने माना कि यह युद्ध के बाद श्रीलंका में उपजे मुद्दों का सामना करने के लिए संविधान में रचनात्मक बदलाव की शुरुआत थी।
राजनीतिक संघर्ष
2015 के बाद से, राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के बीचशासन के मुद्दों, भ्रष्टाचार के मामलों से निपटने, आर्थिक नीति और बाहरी संबंधों के बीच मतभेद पैदा होने लगे। दोनों नेता दो अलग-अलग सिंहली राजनीतिक विचारधाराओं का प्रतिनिधित्व करते हैं, श्रीलंका फ्रीडम पार्टी (एसएलएफपी) और यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी)। स्वतंत्रता के बाद से श्रीलंका जिन मुद्दों का सामना कर रहा है, उसे लेकर दृष्टिकोणमें भी भिन्नता है।एसएलएफपीका आधार गाँवों में है और उसका दृष्टिकोण आतंरिक है जबकि यूएनपी राजनीतिक और आर्थिक नीतियों को लागू करने में अधिक बाह्य दृष्टिकोण का है और शहरउन्मुख है। उन जातीय संघर्ष और परिणामस्वरूप अंतरराष्ट्रीय बाधाओं के कारण, जिन्हें श्रीलंका ने वर्षों तक झेला, उसे घरेलू आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों पर दो प्रमुख दलों के बीच विचारधाराओं के सम्मिलन का नेतृत्व करना पड़ा। उदाहरण के लिए, श्रीलंका ने 1978 में यूएनपी सरकार के तहत अपनी अर्थव्यवस्था खोल दी।खुली अर्थव्यवस्था नीति और अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए विदेशी सहायता पर निर्भरता कमोबेश तब से ही यूएनपी और एसएलएफपीके तहत जारी है।’ दोनों दलों ने भी एकात्मक राज्य का पक्ष लिया और प्रांतों के लिए महत्वपूर्ण विकेंद्रीकरण और शक्तियों के हस्तांतरण का विरोध किया।3 हालांकि दोनों के नेतागण 2015 में राष्ट्रीय एकता सरकार (एनयूजी) बनाने के लिए एक साथ आए, लेकिन अपनी-अपनी पार्टी की विचारधारा के आधार पर दृष्टिकोण में अंतर के कारण राष्ट्र से संबंधित मुद्दों के परिणामस्वरूप केंद्र में सत्ता संघर्ष हुआ।