Hindi, asked by anshulrana436, 1 month ago

श्री रामचंद्र जी के विषय में 10 पंक्तियां लिखें​

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Answered by lochangandhare2002
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श्री रामचंद्र जी की सभी चेष्टाएं धर्म, ज्ञान, नीति, शिक्षा, गुण, प्रभाव, तत्व एवं रहस्य से भरी हुई हैं। उनका व्यवहार देवता, ऋषि, मुनि, मनुष्य, पक्षी, पशु आदि सभी के साथ ही प्रशंसनीय, अलौकिक और अतुलनीय है। देवता, ऋषि, मुनि और मनुष्यों की तो बात ही क्या-जाम्बवान, सुग्रीव, हनुमान आदि रीछ-वानर, जटायु आदि पक्षी तथा विभीषण आदि राक्षसों के साथ भी उनका ऐसा दयापूर्ण प्रेमयुक्त और त्यागमय व्यवहार हुआ है कि उसे स्मरण करने से ही रोमांच हो आता है। भगवान श्री राम की कोई भी चेष्टा ऐसी नहीं जो कल्याणकारी न हो।

उन्होंने साक्षात पूर्णब्रह्म परमात्मा होते हुए भी मित्रों के साथ मित्र जैसा, माता-पिता के साथ पुत्र जैसा, सीता जी के साथ पति जैसा, भाइयों के साथ भाई जैसा, सेवकों के साथ स्वामी जैसा, मुनि और ब्राह्मणों के साथ शिष्य जैसा, इसी प्रकार सबके साथ यथायोग्य त्यागयुक्त प्रेमपूर्ण व्यवहार किया है। अत: उनके प्रत्येक व्यवहार से हमें शिक्षा लेनी चाहिए। श्री रामचंद्र जी के राज्य का तो कहना ही क्या, उसकी तो संसार में एक कहावत हो गई है। जहां कहीं सबसे बढ़कर सुंदर शासन होता है, वहां ‘रामराज्य’ की उपमा दी जाती है।

श्री राम के राज्य में प्राय: सभी मनुष्य परस्पर प्रेम करने वाले तथा नीति, धर्म, सदाचार और ईश्वर की भक्ति में तत्पर रहकर अपने-अपने धर्म का पालन करने वाले थे। प्राय: सभी उदारचित्त और परोपकारी थे। वहां सभी पुरुष एकनारीव्रती और अधिकांश स्त्रियां धर्म का पालन करने वाली थीं। भगवान श्रीराम का इतना प्रभाव था कि उनके राज्य में मनुष्यों की तो बात ही क्या, पशु-पक्षी भी प्राय: परस्पर वैर भुलाकर निर्भय विचरा करते थे। भगवान श्रीराम के चरित्र बड़े ही प्रभावोत्पादक और अलौकिक थे।

हिंदू संस्कृति के अनुसार भाइयों के साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार होना चाहिए इसकी शिक्षा हमें रामायण में श्रीराम, श्रीलक्ष्मण, श्रीभरत एवं श्रीशत्रुघन के चरित्रों से स्थान-स्थान पर मिलती है। उनकी प्रत्येक क्रिया में स्वार्थ त्याग और प्रेम का भाव झलक रहा है। श्रीराम और भरत के स्वार्थ त्याग की बात क्या कही जाए। श्री रामचंद्र जी का प्रत्येक संकेत, चेष्टा और प्रसन्नता भरत के राज्याभिषेक के लिए और भरत की श्री राम के राज्याभिषेक के लिए। इसी प्रकार द्वापरयुग में युधिष्ठिर आदि पांडवों का परस्पर भ्रातृप्रेम आदर्श और अनुकरणीय है। यह है हिंदू-संस्कृति

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