शेरशाह सूरी की विजय ( उपलब्धियों ) तथा प्रशासनिक सुधारों का वर्णन कीजिए।
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शेरशाह सूरी (1472 - मई 1545) (फारसी/पश्तो: فريد خان شير شاہ سوري, जन्म का नाम फ़रीद खाँ) भारत में जन्मे पठान थे, जिन्होंने हुमायूँ को 1540 में हराकर उत्तर भारत में सूरी साम्राज्य स्थापित किया था। शेरशाह सूरी ने पहले बाबर के लिये एक सैनिक के रूप में काम किया था जिन्होंने उन्हें पदोन्नत कर सेनापति बनाया और फिर बिहार का राज्यपाल नियुक्त किया। 1537 में, जब हुमायूँ कहीं सुदूर अभियान पर थे तब शेरशाह ने बंगाल पर कब्ज़ा कर सूरी वंश स्थापित किया था।[2] सन् 1539 में, शेरशाह को चौसा की लड़ाई में हुमायूँ का सामना करना पड़ा जिसे शेरशाह ने जीत लिया। 1540 ई. में शेरशाह ने हुमायूँ को पुनः हराकर भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया और शेर खान की उपाधि लेकर सम्पूर्ण उत्तर भारत पर अपना साम्रज्य स्थापित कर दिया।[
1537 में, जब बाबर का बेटा हुमायूँ एक अभियान पर कहीं और गया था, शेरशाह ने बंगाल राज्य पर कब्जा कर लिया और सूरी वंश की स्थापना की।
Explanation:
1538 में, शेर खान ने बंगाल पर हमला किया और महमूद शाह को हराया। लेकिन सम्राट हुमायूँ के अचानक अभियान के कारण वह राज्य पर कब्जा नहीं कर सका। 26 जून 1539 को शेर खान ने चौसा के युद्ध में हुमायूँ का सामना किया और उसे हराया। फरियाद अल-दीन शार शाह की उपाधि को मानते हुए, उन्होंने मई 1540 में कन्नौज में एक बार फिर हुमायूँ को हराया और उसे भारत से बाहर कर दिया | शेरशाह ने खुद को एक प्रतिभाशाली प्रशासक के साथ-साथ एक सक्षम जनरल के रूप में साबित किया। सूरी ने हुमायूँ के दीना-पन शहर को और विकसित किया और इसका नाम शेरगढ़ रखा गया। उन्होंने देश के सुदूर उत्तर पश्चिम में अफगानिस्तान में काबुल में बंगाल के प्रांत के सीमावर्ती में चटगाँव से ग्रैंड ट्रंक रोड का विस्तार किया।1538 से 1545 के अपने सात साल के शासन के दौरान, उन्होंने एक नया आर्थिक और सैन्य प्रशासन स्थापित किया |