श्रवणीय
'मानो सुखा वृक्ष बोल रहा है',
उसकी बाते निम्न मुद्दो के
आधार पर ध्यान से सुनिए
बीज
बचपन
ऋतुओं का
परिणाम
मन की
इच्छा.
Answers
Answer:
मॆं पेड बोल रहा हूं,
हाल अपने दिल के खोल रहा हूं”
जीवन के तमाम उतार चढाव को झेलता हुआ मनुष्य का सबसे अच्छा साथी ….
मॆं ना सिर्फ़ फ़ल फ़ूल देता रहा बल्कि वो विश्वास ,वो भरोसा देता रहा जिसकी इस जिंदगी के सफ़र मे तुमे सबसे ज्यादा जरुरत थी..
आज जरा पीछे मुड के तो देखो, तुमारे बचपन की सुनहरी यादें ,याद्गगार पल मेरी घनी छांव तले बीते,जवानी में तुमनें मेरे साथ इन्द्रधनुषी सपने बुने, बुढापें में जब तुम एकदम अकेले थे,तब भी मॆं तु्मारे साथ मजबुती से खडा था, मेरी पत्तियां तुमसे बाते करती थी,मेरी डालियां तुमारा दर्द बाटंने को आतुर थी,हमारे सुख-दुख सब साझा थे.
हमारा साथ अटूट था, हमारा बंधन अटूट था.
मॆं कभी आम बन कर तुमारे जीवन में मिठास भरता रहा तो कभी पलाश बन खुशियों के सतरंगी रंग बिखेरता रहा..
पीढी दर पीढी ,साल दर साल मॆं सिर्फ़ देता ही देता रहा,
पीढी दर पीढी ,साल दर साल मॆं सिर्फ़ लुटाता ही रहा प्यार ,वात्सल्य व स्नेह का अटूट खजाना…
पर जब तुमारी बारी आयी देने की तो तुमने मुझे सिर्फ़ घाव दिये,
कुल्हाडी के घाव ने तो सिर्फ़ तन को चोट पहुचाई, लेकिन तुमारे स्वार्थ व लालचपूर्ण व्यवहार ने कभी ना मिटने वाले जख्म दे डाले..
मॆं टूटता रहा,गिरता रहा, कटता रहा ऒर तुम खुश होते रहे चंद सिक्के पाकर..तुमने सिर्फ़ मुझे नही काटा बल्कि उस भरोसे को भी काट दिया,
उस मजबुत डोर को भी काट दिया जिसमे सदियों से पेड व मनुष्य बंधे रहे..
कभी सोचा??
क्या पेड का टूटना विश्वास का टूटना नही हॆ?
क्या पेड का बिखरना रिश्तों का बिखरना नही हॆ??
क्या पेड का जुदा होना यादों का जुदा होना नही हॆ???
सोचो, तुम अपनी जरा सी ना्दानी से क्या खो रहे हो?
तुम अब भी नही जागे तो ना सिर्फ़ हम किस्से कहानियों में ही बचेंगे,बल्कि तुमारे पास भी भावी पीढी को विरासत में देने के लिये कुछ नही बचेगा सिवाय इन पंक्तियों के
“ छावं में आते ही याद आता हॆ वो आदमी
जिसने कुछ सोच के ये पेड लगाया होगा”
अब भी समय हॆ..उठो, जागो ऒर शुरु करो सफ़र-
बिखेरने से सहेजने की ओर,धूप से छावं की ओर,
विनाश से विकास की ओर..
“आज तुमारा सच्चा मन टटोल रहा हूं,
मॆं पेड बोल रहा हूं”