शांति नहीं तब तक जब तक
सुख -भाग न सबका सम हो ।
नहीं किसी को बहुत अधिक हो ।
नहीं किसी को कम हो।
स्वत्व माँगने से न मिले ,
संघात पाप हो जाएँ।
बोले धर्मराज शोषित वे
जियें या कि मिट जाएँ ?
न्यायोचित अधिकार माँगने
से न मिले तो लड़ के।
तेजस्वी छीनते समर को,
जीत , या कि खुद मर के।
किसने कहा पाप है समुचित
स्वत्व- प्राप्ति- हित लड़ना ?
उठा न्याय का खड्ग समर में
अभय मारना- मरना ?
क. शांति के लिए क्या आवश्यक है ?
ख. कौन-सा युद्ध निष्पाप है ?
ग. तेजस्वी लोगों की क्या पहचान है ?
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क) शांति के लिए आवश्यक है कि सबको सुख-दुख समान स्तर पर मिले। ना किसी को सुख बहुत अधिक मिले और दुख कम मिले और ना किसी को दुख बहुत अधिक मिले और सुख कम मिले। सुख दुख जीवन के दो पहलू हैं यह संतुलित रूप से व्यक्ति को मिलेंगे तो शांति स्थापित रहेगी।
(ख) वह युद्ध निष्पाप है जो अपने अधिकारों के लिए लड़ा जाता है। अपने अधिकार की लड़ाई के लिए ही लड़ना न्याय का युद्ध है और निष्पाप है।
(ग) तेजस्वी लोगों की पहचान होती है कि वह न्यायोतिच होकर अपना अधिकार मांगते हैं और न मिलता है तो लड़कर अपने अधिकार को हासिल करते हैं। या तो वह अपने अधिकार को लेकर ही रहते हैं या स्वयं का बलिदान कर देते हैं लेकिन झुकते नहीं।
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santi k liye kya aaosak hai
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