शादी के बादमैं बिहार के एक छोटे कस्बे डालमियानगर में रही, जहां मर्द औरतें, चाहे पति पत्नी क्यों ना हों, पिक्चर देखने भी जाते तो अलग-अलग दड़बों में बैठते। मैं दिल्ली से कॉलेज की नौकरी छोड़कर वहां पहुंची थी और नाटकों में अभिनय करने की शौकीन रही थी। मैंने उनके चलन से हार नहीं मानी। साल भर के भीतर, उन्हीं शादीशुदा औरतों को पराए मर्दों के साथ नाटक करने के लिए मना लिया। अगले 4 साल तक हमने कई नाटक किए। अकाल राहत कोष के लिए उन्हीं के माध्यम से पैसा भी इकट्ठा किया। वहां से निकले तो कर्नाटक के और भी छोटे कस्बे, बागलकोट में पहुंच गई। तब तक मेरे दो बच्चे हो चुके थे, जो स्कूल जाने लायक उम्र पर पहुंच रहे थे।पर वहां कोई ढंग का स्कूल नहीं था।"lesson ka naam kya hai
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lol!!!!!!!!!????? Kya majak hai
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