श्वेत क्रांति से सहकारी दूध उत्पादको को क्या लाभ मिला कोई 6 लाभ बताए
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वर्ष 1964 में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने गुजरात में आणंद का दौरा किया ताकि अमूल की सफलता को खुद अपनी नजरों से देख सकें. उन्होंने वर्गीज कुरियन से आसपास के किसी दुग्ध उत्पादक गांव में सामान्य नागरिक की तरह रात भर ठहरने का इंतजाम करने का अनुरोध किया. वे चाहते थे कि लोगों को उनके पद के बारे में मालूम न चले. कुरियन सहम से गए. वे कैसे किसी प्रधानमंत्री को बगैर किसी सुरक्षा या सहयोग तंत्र के रात भर किसी गांव में ठहरा सकते हैं. लेकिन प्रधानमंत्री शास्त्री के जोर देने पर बगैर उनकी सुरक्षा जानकारियों का खुलासा किए उन्हें पास के गांव में रात बिताने के लिए छोड़ दिया गया.
शास्त्री गांव में टहलते हुए गए और अपना परिचय राह भटके एक यात्री के रूप में दिया. गांव में एक परिवार ने शास्त्री को अपने साथ रहने के लिए आमंत्रित किया. उन्होंने इस अवसर का लाभ उनसे जिंदगी जीने के तरीके और सहकारिता का उन पर हुए असर के बारे में बातचीत कर उठाया. अगली सुबह जब कुरियन उन्हें वापस लेने आए तब तक प्रधानमंत्री शास्त्री न केवल सहकारिता की आणंद पद्धति से प्रभावित थे बल्कि पूरे देश में आंदोलन को फैलाने में मदद करने के लिए कुरियन से आणंद में राष्ट्रीय दुग्ध विकास बोर्ड का गठन करने का भी आग्रह किया. उन्होंने कुरियन को हरसंभव मदद का भी भरोसा दिया.
देश में बड़े पैमाने पर दूध उत्पादन के लिए 1970 में ऑपरेशन फ्लड शुरू हुआ और दो चरणों में देश के सभी दुग्ध उत्पादक इलाकों को इसमें शामिल कर लिया गया. दूध उत्पादन में विश्व में 50वां स्थान रखनेवाला भारत महज कुछ ही दशकों में सबसे बड़ा दूध उत्पादक बन गया.
यदि इस अभूतपूर्व सफलता का श्रेय किसी को जाता है तो वे कुरियन हैं. भारत में आजादी के बाद सबसे परिवर्तनकारी सफलतम कहानियों में अमूल की कहानी है. यह भी अच्छा संयोग रहा कि जरूरत पडऩे पर सरकार ने भी हरसंभव मदद की. वास्तव में यह एक जनांदोलन है.