श्यामाचरण दुबे के माता पिता का नाम क्या था
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प्रोफेसर श्यामाचरण दुबे का जन्म मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिले के एक प्रतिष्ठित ब्राह्मण परिवार में 25 जुलाई 1922 को सिवनी में हुआ था। उनके पिता तत्कालीन छत्तीसगढ़ के दक्षिणपूर्व के सुदूर अंचल में बसी जमींदारीनुमा रियासत कोर्ट ऑफ वॉर्ड्स के प्रबंधक थे और माता अति धर्मपरायण थीं।
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जीवन वृत्त उनका जन्म 25 जुलाई 1922 को हुआ। उनकी माता राष्ट्रवादी थी और पिता कोर्ट ऑफ वॉर्ड्स के प्रबंधक थे।
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श्यामाचरण दुबे (25 जुलाई 1922 से 4 फरवरी 1996) की छवि आमतौर पर एक प्रख्यात समाजशास्त्री और साहित्यकार की रही है। ‘भारतीय गांव, मानव और संस्कृति, परम्परा और इतिहास बोध, समाज और भविष्य, समय और संस्कृति, संक्रमण की पीडा, संस्कृति तथा शिक्षा उनकी चर्चित कृतियां रही हैं। इतिहास को ले कर उनका एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण आलेख है – ‘इतिहास बोध’। यह आलेख मूलतः मध्य प्रदेश उच्च शिक्षा अनुदान आयोग, भोपाल द्वारा आयोजित संगोष्ठी 'इतिहास के नये सीमांत' में दिए गए आधार वक्तव्य के रुप में था जिसे उनकी पुस्तक 'समय और संस्कृति' में संकलित किया गया है।
परिचय :
समाजशास्त्र और मानव-विकास के क्षेत्र में श्यामाचरण दुबे के शोधों का महत्वपूर्ण स्थान है। दुबे जी का जन्म मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में सन 1922 में हुआ था। नागपुर विश्वविद्यालय से उन्होंने पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। भारत के विभिन्न विश्वविद्यालयों में उन्होंने अध्यापन कार्य किया। दुबेजी में अनेक महत्वपूर्ण संस्थानों के महत्वपूर्ण गरिमा मय पदों को सुशोभित किया। स्वतंत्र भारत के सर्वोच्च समाज-विज्ञानियों में उनकी गणना होती है।
साहित्यिक विशेषताएं :
श्यामाचरण दुबे के लेखन में समाज, संस्कृति और जीवन के ज्वलंत प्रश्नों को उठाया गया है। ऐसे विषयों पर उनकी तार्किक स्पष्टता साफ दिखाई देती है। उनके विश्लेषण और स्थापनाएं उच्च स्तरीय एवं महत्वपूर्ण है। वे अपने विषय की मर्मज्ञ विद्वान थे। उनके लेखन में जीवन के वास्तविक यथार्थ का सच प्रस्तुतीकरण पाठक को आकर्षित करता है। भारत की जनजातियां तथा ग्रामीण समुदाय पर केंद्रित उनके लेख विद्वानों और शिक्षित समाज में समादृत होते रहे हैं। भारतवर्ष में उनकी विद्वता को सदा सम्मान मिलता रहा।
भाषा-शैली :
श्यामाचरण दुबे की भाषा और शैली पर उनके व्यक्तित्व की स्पष्ट छाप है। उनके विचारों की तरह ही उनकी भाषा भी स्पष्ट और सहज है। तार्किकता का प्रभाव सर्वत्र देखा जा सकता है। एक के बाद एक बात क्रमिक रूप से आती है। उनके तर्क अकाट्य होते हैं। वे अपनी बात सहजता पूर्वक, छोटे-छोटे वाक्य में आरंभ करते हैं। कभी-कभी बात पर बल देने के लिए वाक्यों का अधूरा ही छोड़ देते हैं। जिससे कि पाठक का ध्यान आकर्षित हो। अपने विषय को स्पष्ट करने के लिए दुबे जी प्रश्न उठाते हैं और फिर अगले वाक्यों में उसका समाधान भी कर देते हैं। उनकी अभिव्यक्ति शैली में आप और हम से युक्त हैं। प्रश्नोत्तर शैली से वह पाठक को बांधे रहते हैं। उनकी भाषा सहज सरल अडंबर हीन तथा शैली प्रवाह पूर्ण, जोशीली एवं निरंतरता से युक्त है। वे एक सशक्त गद्यकार थे।
मृत्यु :
श्यामाचरण दुबे जी का निधन सन 1996 में हुआ।
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