shabd rachna kise kahte hai ... or uske prakar
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शब्द–संरचना का आशय नये शब्दोँ का निर्माण, शब्दोँ की बनावट और शब्द–गठन से है। हिन्दी मेँ दो प्रकार के शब्द होते हैँ—रूढ और यौगिक। शब्द रचना की दृष्टि से केवल यौगिक शब्दों का अध्ययन किया जाता है। यौगिक शब्दोँ मेँ ही उपसर्ग और प्रत्यय का प्रयोग करके नये शब्दोँ की रचना होती है।
शब्द–रचना प्रायः चार प्रकार से होती है–
(1) व्युत्पत्ति पद्धति –
इस पद्धति मेँ मूल शब्द मेँ उपसर्ग और प्रत्यय जोड़कर नये शब्दोँ की रचना की जाती है। जैसे—‘लिख्’ मूल धातु मेँ ‘अक’ प्रत्यय लगाने से ‘लेखक’ शब्द और ‘सु’ उपसर्ग लगाने से ‘सुलेख’ शब्द बनता है। इसी प्रकार ‘हार’ शब्द मेँ ‘सम्’ उपसर्ग लगाने से ‘संहार’ और ‘ई’ प्रत्यय लगाने से ‘संहारी’ शब्द बनता है।
उपसर्ग व प्रत्यय दोनोँ एक साथ प्रयोग करके भी नया शब्द बनता है। जैसे—प्राक्+इतिहास+इक = प्रागैतिहासिक। हिन्दी मेँ इस पद्धति से हजारोँ शब्दोँ की रचना होती है।
(2) संधि व समास पद्धति –
इस पद्धति मेँ दो या दो से अधिक शब्दोँ को मिलाकर एक नया शब्द बनाया जाता है। जैसे—पद से च्युत = पदच्युत, शक्ति के अनुसार = यथाशक्ति, रात और दिन = रातदिन आदि शब्द इसी प्रकार बनते हैँ।
शब्दोँ मेँ संधि करने से भी इसी प्रकार शब्द–रचना होती है। जैसे—विद्या+आलय = विद्यालय, प्रति+उपकार = प्रत्युपकार, मनः+हर = मनोहर आदि।
(3) शब्दावृत्ति पद्धति –
कभी–कभी शब्दोँ की आवृत्ति करने या वास्तविक या कल्पित ध्वनि का अनुकरण करने से भी नये शब्द बनते हैँ। जैसे—रातोँरात, हाथोँहाथ, दिनोँदिन, खटखट, फटाफट, गड़गड़ाहट, सरसराहट आदि।
(4) वर्ण-विपर्यय पद्धति –
वर्णोँ या अक्षरोँ का उलट–फेर प्रयोग करने से भी नये शब्द बन जाते हैँ। जैसे—जानवर से जिनावर, अँगुली से उँगली, पागल से पगला आदि।
उपसर्ग
जो शब्दांश किसी मूल शब्द के पहले जुड़कर उसके अर्थ मेँ परिवर्तन या विशेषता उत्पन्न कर देते हैँ, उन शब्दांशोँ को उपसर्ग कहते हैँ। जैसे –
‘हार’ एक शब्द है। इस शब्द के पहले यदि 'सम्, वि, प्र', उपसर्ग जोड़ दये जायेँ, तो– सम्+हार = संहार, वि+हार = विहार, प्र+हार = प्रहार तथा उप+हार = उपहार शब्द बनेँगे। यहाँ उपसर्ग जुड़कर बने सभी शब्दोँ का अर्थ ‘हार’ शब्द से भिन्न है।
उपसर्गोँ का अपना स्वतंत्र अर्थ नहीँ होता, मूल शब्द के साथ जुड़कर ये नया अर्थ देते हैँ। इनका स्वतंत्र प्रयोग नहीँ होता। जब किसी मूल शब्द के साथ कोई उपसर्ग जुड़ता है तो उनमेँ सन्धि के नियम भी लागू होते हैँ। संस्कृत उपसर्गोँ का अर्थ कहीँ–कहीँ नहीँ भी निकलता है। जैसे – ‘आरम्भ’ का अर्थ है– शुरुआत। इसमेँ ‘प्र’ उपसर्ग जोड़ने पर नया शब्द ‘प्रारम्भ’ बनता है जिसका अर्थ भी ‘शुरुआत’ ही निकलता है।
♦ विशेष—
यह जरूरी नहीँ है कि एक शब्द के साथ एक ही उपसर्ग जुड़े। कभी–कभी एक शब्द के साथ एक से अधिक उपसर्ग जुड़ सकते हैँ। जैसे–
• सम्+आ+लोचन = समालोचन।
• सु+आ+गत = स्वागत।
• प्रति+उप+कार = प्रत्युपकार।
• सु+प्र+स्थान = सुप्रस्थान।
• सत्+आ+चार = सदाचार।
• अन्+आ+गत = अनागत।
• अन्+आ+चार = अनाचार।
• अ+परा+जय = अपराजय।
♦ उपसर्ग के भेद –
हिन्दी भाषा मेँ चार प्रकार के उपसर्ग प्रयुक्त होते हैँ—
(1) संस्कृत के उपसर्ग,
(2) देशी अर्थात् हिन्दी के उपसर्ग,
(3) विदेशी अर्थात् उर्दू, अंग्रेजी, फारसी आदि भाषाओँ के उपसर्ग,
(4) अव्यय शब्द, जो उपसर्ग की तरह प्रयुक्त होते हैँ।
शब्द–रचना प्रायः चार प्रकार से होती है–
(1) व्युत्पत्ति पद्धति –
इस पद्धति मेँ मूल शब्द मेँ उपसर्ग और प्रत्यय जोड़कर नये शब्दोँ की रचना की जाती है। जैसे—‘लिख्’ मूल धातु मेँ ‘अक’ प्रत्यय लगाने से ‘लेखक’ शब्द और ‘सु’ उपसर्ग लगाने से ‘सुलेख’ शब्द बनता है। इसी प्रकार ‘हार’ शब्द मेँ ‘सम्’ उपसर्ग लगाने से ‘संहार’ और ‘ई’ प्रत्यय लगाने से ‘संहारी’ शब्द बनता है।
उपसर्ग व प्रत्यय दोनोँ एक साथ प्रयोग करके भी नया शब्द बनता है। जैसे—प्राक्+इतिहास+इक = प्रागैतिहासिक। हिन्दी मेँ इस पद्धति से हजारोँ शब्दोँ की रचना होती है।
(2) संधि व समास पद्धति –
इस पद्धति मेँ दो या दो से अधिक शब्दोँ को मिलाकर एक नया शब्द बनाया जाता है। जैसे—पद से च्युत = पदच्युत, शक्ति के अनुसार = यथाशक्ति, रात और दिन = रातदिन आदि शब्द इसी प्रकार बनते हैँ।
शब्दोँ मेँ संधि करने से भी इसी प्रकार शब्द–रचना होती है। जैसे—विद्या+आलय = विद्यालय, प्रति+उपकार = प्रत्युपकार, मनः+हर = मनोहर आदि।
(3) शब्दावृत्ति पद्धति –
कभी–कभी शब्दोँ की आवृत्ति करने या वास्तविक या कल्पित ध्वनि का अनुकरण करने से भी नये शब्द बनते हैँ। जैसे—रातोँरात, हाथोँहाथ, दिनोँदिन, खटखट, फटाफट, गड़गड़ाहट, सरसराहट आदि।
(4) वर्ण-विपर्यय पद्धति –
वर्णोँ या अक्षरोँ का उलट–फेर प्रयोग करने से भी नये शब्द बन जाते हैँ। जैसे—जानवर से जिनावर, अँगुली से उँगली, पागल से पगला आदि।
उपसर्ग
जो शब्दांश किसी मूल शब्द के पहले जुड़कर उसके अर्थ मेँ परिवर्तन या विशेषता उत्पन्न कर देते हैँ, उन शब्दांशोँ को उपसर्ग कहते हैँ। जैसे –
‘हार’ एक शब्द है। इस शब्द के पहले यदि 'सम्, वि, प्र', उपसर्ग जोड़ दये जायेँ, तो– सम्+हार = संहार, वि+हार = विहार, प्र+हार = प्रहार तथा उप+हार = उपहार शब्द बनेँगे। यहाँ उपसर्ग जुड़कर बने सभी शब्दोँ का अर्थ ‘हार’ शब्द से भिन्न है।
उपसर्गोँ का अपना स्वतंत्र अर्थ नहीँ होता, मूल शब्द के साथ जुड़कर ये नया अर्थ देते हैँ। इनका स्वतंत्र प्रयोग नहीँ होता। जब किसी मूल शब्द के साथ कोई उपसर्ग जुड़ता है तो उनमेँ सन्धि के नियम भी लागू होते हैँ। संस्कृत उपसर्गोँ का अर्थ कहीँ–कहीँ नहीँ भी निकलता है। जैसे – ‘आरम्भ’ का अर्थ है– शुरुआत। इसमेँ ‘प्र’ उपसर्ग जोड़ने पर नया शब्द ‘प्रारम्भ’ बनता है जिसका अर्थ भी ‘शुरुआत’ ही निकलता है।
♦ विशेष—
यह जरूरी नहीँ है कि एक शब्द के साथ एक ही उपसर्ग जुड़े। कभी–कभी एक शब्द के साथ एक से अधिक उपसर्ग जुड़ सकते हैँ। जैसे–
• सम्+आ+लोचन = समालोचन।
• सु+आ+गत = स्वागत।
• प्रति+उप+कार = प्रत्युपकार।
• सु+प्र+स्थान = सुप्रस्थान।
• सत्+आ+चार = सदाचार।
• अन्+आ+गत = अनागत।
• अन्+आ+चार = अनाचार।
• अ+परा+जय = अपराजय।
♦ उपसर्ग के भेद –
हिन्दी भाषा मेँ चार प्रकार के उपसर्ग प्रयुक्त होते हैँ—
(1) संस्कृत के उपसर्ग,
(2) देशी अर्थात् हिन्दी के उपसर्ग,
(3) विदेशी अर्थात् उर्दू, अंग्रेजी, फारसी आदि भाषाओँ के उपसर्ग,
(4) अव्यय शब्द, जो उपसर्ग की तरह प्रयुक्त होते हैँ।
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शब्द-रचना-
शब्द-रचना का आशय नये शब्दोँ का निर्माण और गठन से है। हिन्दी मेँ दो प्रकार के शब्द होते हैँ—रूढ और यौगिक।
शब्द रचना की दृष्टि से केवल यौगिक शब्दोँ मेँ ही उपसर्ग और प्रत्यय का प्रयोग करके नये शब्दोँ की रचना होती है।
उपसर्ग से – वे शब्दांश जो शब्दों के अंत में जुड़कर उनके अर्थ में परिवर्तन लाते हैं उपसर्ग कहलाते हैं|
उपसर्ग + मूल शब्द/धातु = यौगिक शब्द
उदाहरण- अति + अधिक = अत्यधिक
प्रत्यय से – वे शब्दांश जो शब्दों के अंत में जुड़कर उनके अर्थ में परिवर्तन लाते हैं प्रत्यय कहलाते हैं|
मूल शब्द + प्रत्यय = यौगिक शब्द
उदाहरण- प्यास + आ = प्यासा
समास से – दो शब्दों के मेल को समस कहते हैं|
शब्द + शब्द = यौगिक शब्द
उदाहरण- प्रति + दिन = प्रतिदिन)
#SPJ2
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