शहनाई किसका सूचक है
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शहनाई का इतिहास --शहनाई का उल्लेख वैदिक इतिहास में नहीं मिलता | अरब देशों में फूँककर बजाए जाने वाले वाधों को न्य कहते है | शहनाई शाही -न्य मणि जाती है | सौलहवाँ शताब्दी में तानसेन ने जो बंदिशे रची थी ,उनमे शहनाई का उल्लेख हुआ है | अवधि के परम्परागत गीतों और चैती में शहनाई का उल्लेख बार-बार मिलता है | दक्षिण भारत के मंगल वाद्य नागस्वरम की तरह शहनाई प्रभाती की मनगलध्वनि का सूचक है |
बिस्मिल्लाह खाँ की कामना --बिस्मिल्लाह खाँ पिछले अस्सी वर्षों से खुदा से एक ही नेमत माँगते है ---सच्चे सुर की नेमत | ईसिस के लिए वे रोज खुदा के सामने झुकते है | वे खुदा से कहते है --खुदा ,मुझे ,ऐसा सच्चा सुर दे जिसकी तसीर से लोगों से आँसू निकल आएँ | उन्हें विस्वास है की खुदा एक दिन उन्हें सुर का फल अवश्य देगा | वास्तव में बिस्मिल्ला ख़ाँ की स्थिति उस हिरन जैसी थी जिसकी गामक उसकी नाभि में होती है ,परन्तु वह उसे बाहर खोजता है |
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शहनाई का इतिहास –
वैदिक इतिहास में शहनाई का कोई उल्लेख नहीं मिलता । संगीत शास्त्र के अंतर्गत शहनाई को ‘ सुशीर वाद्य में शाह ’ अर्थात ‘ शहेनय ’ की उपाधि दी गई है। सोलहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में तानसेन के द्वारा रचित संगीत कल्पद्रुम से प्राप्त बंदिश में शहनाई , मुरली , वंशी , श्रृंगी एवं मूरछंग आदि का वर्णन आया है । अवधि लोकगीतों तथा चैती में शहनाई का उल्लेख आता है । शहनाई का प्रयोग मांगलिक अवसरों पर ही हुआ है । दक्षिण भारत के मंगल वाद्य ‘ नागस्वरम् ’ की तरह शहनाई की प्रभाती की मंगलध्वनी का संपूरक है ।