शरीर में होता है। सुली हवा में खेलने से जो परिश्रम होता है, उसमें फेफड़ों में ऑक्सीजन अधिक मात्रा में जाती है। इससे फेफड़े, र खेल हमारे शरीर और मन मस्तिष्क का समुचित विकास करते हैं। खेलने से शरीर पुष्ट होता है; मांसपेशियाँ दृढ़ श्री बनती हैं; शरीर में समुचित गठाव आता है; शरीर की सभी इंद्रियाँ सक्रिय रहती हैं; रक्त का संचार उचित रूप से मार ही नहीं सारा शरीर नई शक्ति से भर जाता है। खुलकर भूख लगती है, जठराग्नि प्रदीप्त हो जाती है और जो खाते हैं-पच जाता है। इससे नया रक्त बनता है। भाव यह है कि खेलकूद से शरीर की प्रत्येक क्रिया उचित प्रकार से होती रहती है। इससे रोग भी दूर रहते हैं। न खेलने से व्यक्ति को आलस्य, रोग, बुढ़ापा सभी कुछ घेर लेते हैं। युवावस्था में ही व्यक्ति बूढा-सा लगने लगता है। अस्वस्थ शरीर के कारण उसका मन भी बुझा बुझा सा रहता है। उमंग-उत्साह बहुत पीछे छूट जाते हैं। जीवन की खुशियाँ मुख मोड़ लेती हैं और ईश्वर प्रदत्त प्रतिभाओं से युक्त होता हुआ भी व्यक्ति लाचार और हताश बनकर रह जाता है। धन संपदा आदर, मान-सत्कार, पद सबके होने पर भी अगर स्वास्थ्य साथ नहीं देता, तो सारा जीवन नीरस और व्यर्थ हो जाता है। रोगी व्यक्ति न केवल अपने लिए बल्कि अपने परिवार के लिए भी बोझा स्वरूप हो जाता है। वह समाज पर बोझ बनकर उसका अहित करता है।(CBSE 2018) प्रश्न-(क) खेलने से शरीर किस प्रकार विकसित होता है? (ख) न खेलने से व्यक्ति को क्या हानियाँ हैं? (ग) जीवन नीरस और व्यर्थ कब प्रतीत होने लगता है? (घ) किस साधन के द्वारा शरीर की प्रत्येक क्रिया उचित प्रकार से होती है? (ड़ ) 'गद्यांश' के लिए उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
Answers
(क) खेलने से शरीर नई शक्ति से भर जाता है।
फेफड़ों में ऑक्सीजन अधिक मात्रा में जाती है। इससे फेफड़े, र खेल हमारे शरीर और मन मस्तिष्क का समुचित विकास करते हैं।
(ख) न खेलने से व्यक्ति को आलस्य, रोग, बुढ़ापा सभी कुछ घेर लेते हैं। युवावस्था में ही व्यक्ति बूढा-सा लगने लगता है। अस्वस्थ शरीर के कारण उसका मन भी बुझा बुझा सा रहता है। उमंग-उत्साह बहुत पीछे छूट जाते हैं। जीवन की खुशियाँ मुख मोड़ लेती हैं और ईश्वर प्रदत्त प्रतिभाओं से युक्त होता हुआ भी व्यक्ति लाचार और हताश बनकर रह जाता है।
(ग) धन संपदा आदर, मान-सत्कार, पद सबके होने पर भी अगर स्वास्थ्य साथ नहीं देता, तो सारा जीवन नीरस और व्यर्थ हो जाता है।
(घ) खुली हवा में खेलने के द्वारा शरीर की प्रत्येक क्रिया उचित प्रकार से होती।
(ङ) मनुष्य जीवन में खेलों का महत्त्व।
क) खेलने से शरीर नई शक्ति से भर जाता है।
फेफड़ों में ऑक्सीजन अधिक मात्रा में जाती है। इससे फेफड़े, र खेल हमारे शरीर और मन मस्तिष्क का समुचित विकास करते हैं।
(ख) न खेलने से व्यक्ति को आलस्य, रोग, बुढ़ापा सभी कुछ घेर लेते हैं। युवावस्था में ही व्यक्ति बूढा-सा लगने लगता है। अस्वस्थ शरीर के कारण उसका मन भी बुझा बुझा सा रहता है। उमंग-उत्साह बहुत पीछे छूट जाते हैं। जीवन की खुशियाँ मुख मोड़ लेती हैं और ईश्वर प्रदत्त प्रतिभाओं से युक्त होता हुआ भी व्यक्ति लाचार और हताश बनकर रह जाता है।
(ग) धन संपदा आदर, मान-सत्कार, पद सबके होने पर भी अगर स्वास्थ्य साथ नहीं देता, तो सारा जीवन नीरस और व्यर्थ हो जाता है।
(घ) खुली हवा में खेलने के द्वारा शरीर की प्रत्येक क्रिया उचित प्रकार से होती।
(ङ) मनुष्य जीवन में खेलों का महत्त्व।
ʜᴏᴘᴇ ɪᴛ ɪs ʜᴇʟᴘғᴜʟ