शरीर रूपी अमानत की रक्षा करना रक्षक का धर्म है
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पर्यावरण दिवस पर विशेष-
धरती कभी आग का गोला था, पर्यावरण ने इसे रहने लायक बनाया और प्रकृति ने मुनष्यों सहित सारे जीवों, पेड़-पौधों का क्रमिक विकास किया। प्रकृति और जीव एक दूसरे के पूरक हैं। प्रकृति सत्य है, जो धर्म को धारण करती है, इसीलिए ब्रह्माण्ड में केवल धरती पर ही जीवन है। बिना प्रकृति के न तो जीवन उत्पन्न हो सकता है और न ही धर्म। इसीलिए धर्म मनुष्य को प्रकृति के रक्षा की सीख देता है।
हमारा शरीर प्रकृति के पांच तत्त्वों से मिलकर बना है-
क्षितिज, जल, पावक, गगन, समीरा। पंच तत्व यह अधम शरीरा।
इन पंच तत्त्वों के उचित अनुपात से ही चेतना (जीवन) उत्पन्न होती है। धरती, आकाश, हवा, आग, और पानी इसी के संतुलित चक्र से ही धरती पर पर्यावरण निर्मित हुआ है, जो जीवन के मूल तत्त्व हैं। धर्म मे ही इन प्रकृति के तत्त्वों को पूजा, आराधना और तपस्या से जोड़ा गया है। हमारे शरीर और मन को प्रकृति ही नियंत्रित करती है। यह प्रकृति ही ईश्वर का स्वरूप है, यानी ईश्वर प्रकृति को संचालित करता है लेकिन जब मुनष्य स्वार्थवश प्रकृति के साथ खिलवाड़ करना आरंभ करता है तो प्रकृति का कूपित होना स्वाभाविक है। प्रकृति के किसी भी एक तत्व का संतुलन बिगड़ता है, तो इसका प्रभाव हमारे ऊपर पड़ता है। बाढ़, भूस्खलन, भूकंप, ज्वालामुखी उद्गार जैसी देवीय आपदा सामने आती हैं।
प्राकृतिक तत्त्वों में संतुलन की सीख देता धर्म
धर्म हमें प्रकृति की रक्षा करना सीखाता है। धर्म हमें नैतिक, सद्विचार और विवेकशील प्राणी बनाता है। हम अच्छे काम तभी कर सकते हैं, जब हम प्रकृति की रक्षा करना सीख जाए। इसीलिए हर धर्म प्रकृति के साथ संतुलन बना कर रहने की सीख देता है। अप्राकृतिक यानी प्रकृति के साथ खिलवाड़ करना जैसा कोई भी कार्य धर्म के विपरीत है। सृष्टि में पदार्थों में संतुलन बनाए रखने के लिए यजुर्वेद में एक श्लोक वर्णित है-
ओम् द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षँ शान्ति: पृथिवी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।
वनस्पतये: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति: सर्वँ शान्ति: शान्तिरेव शान्ति: सा मा शान्तिरेधि।।
ओम् शान्ति: शान्ति: शान्ति:।।
इस श्लोक से ही मानव को प्राकृतिक पदार्थों में शांति अर्थात संतुलन बनाए रखने का उपदेश दिया गया है। श्लोक में पर्यावरण समस्या के प्रति मानव को सचेत आज से हजारों साल पहले से ही किया गया है। पृथ्वी, जल, औषधि, वनस्पति आदि में शांति का अर्थ है, इनमें संतुलन बने रहना। जब इनका संतुलन बिगड़ जाएगा, तभी इनमें विकार उत्पन्न हो जाएगा।
धर्म है पर्यावरण की रक्षा करना
सनातन धर्म में ‘वृक्ष देवो भव, सूर्य देवो भव’ कहकर धर्म को प्रकृति से जोड़ा गया है। स्मृति ग्रंथों में नदियों, तालाबों में मल-मूत्र विसर्जन कर प्रकृति को विकृत करने को पांच महापापों की श्रेणी में रखा गया है। धर्म में प्रकृति का महत्व है, पर्वतवासिनी माता पार्वती, जो अन्नपूर्णा हैं, उनके हाथ में अस्त्र-शस्त्र और शास्त्र हैं। भगवान शंकर की जटाओं से गंगा निकलती है और वह गले में सर्पहार पहनते हैं। शेषनाग भगवान विष्णु जी की छत्र-छाया करते हैं, वह क्षीरसागर में विश्राम करते हैं। समस्त नवग्रह जो इस ब्रम्हाण्ड की देन है और अन्य ग्रहों व तारों की अपेक्षा हमसे नजदीक हैं। इसीलिए इनका प्रभाव धरती पर पड़ता है, जिसे धर्म इन प्राकृतिक घटनाओं जैसे सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण के धरती और मनुष्यों पर पड़ने वाले प्रभावों का विवेचन करता रहा है। भजनों में, कीर्तन में, जप, तप में हम जिस धर्म को धारण करते हैं और वास्तव में जिसकी प्रेरणा ईश्वर हमको देता है, उसका ही पता यही है कि वह धर्म है पर्यावरण की रक्षा करना।
पर्यावरण है धरती का सुरक्षा कवच
पर्यावारण इस धरती का रक्षा कवच है, सूर्य की हानिकारक पराबैगनी किरणों से आजोन गैस की परत ही बचाती है। दुर्गासप्तशती का प्रारंभ ही देवी कवच से होता है। इसमें समस्त देवियों से प्रार्थना होती है कि वह चारों दिशाओं में हमारी रक्षा करें। हर दिशा में हमारी रक्षा करें। अर्गलास्तोत्र में देवी से प्रार्थना होती है-
देहि सौभाग्यं आरोग्यम देहि मे परमां श्रियम।
संपूर्ण दुर्गासप्तशती में प्रत्येक प्राणी के स्वास्थ्य और श्रीवृद्धि की कामना है। देवी का अर्थ ही प्रकाश है। नवदुर्गा तो प्रकृति की पोषक शक्तियां हैं और कोई नहीं। दैहिक, दैविक और भौतिक को ही त्रिदेव यानी ब्रह्मा (सृष्टि), विष्णु (पालन) और महेश (संहार) हैं। तीन ही देवियां हैं। सभी का संदेश पर्यावरण की रक्षा है।
प्रकृति ने दिया शरीर
आत्मा शरीर को धारण करता है, यह शरीर जो इस प्रकृति का दिया है, वह एक दिन नष्ट हो जाएगा। श्ोष रहेगा तो आत्मा, जिसे परमात्मा यानी ईश्वर में विलीन होना है। यह प्रकृति सत्य है इसीलिए मनुष्य को प्रकृति की रक्षा का कर्तव्य निभाना चाहिए, यह उसका मानवीय, धार्मिक कर्तव्य है। यही सच्चा धर्म है, धर्मग्रंथों में कहा गया है कि ब्रह्मा ने ही इस सृष्टि को बनाया है। इसीलिए प्रकृति की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है और धर्म है। श्रीकृष्ण ने गीता में कहा कि इहलोक यानी इस धरती में मनुष्य शरीर रूपी कपडे को धारण किया है। वहीं परलोक जहां पर केवल आत्मा ही जा सकती है, भौतिक शरीर धरती पर ही नष्ट हो जाता है। हमारे अच्छे कर्म ही परमात्मा से साक्षात्कार कराता है। यानी हम प्रकृति से खिलवाड़ करना बंद करें और अच्छे कर्मों में जुड़ जाएं। आाओ अपनी धरती को बचाए।
लेखक के विषय में
Hope it will help you I'm not sure it is it you want but Yes so mark as brailinst.....pls....
Answer:
idk
Explanation:
hi