Shastroh mein likha hai ki atithi ki Puja awashye karo
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हमारे शास्त्रों में लिखा है "अतिथि देवो भव "अर्थात अतिथि देवता के समान होता है, इसलिए उसकी सदैव पूजा करनी चाहिए, तात्पर्य यह है कि कोई भी व्यक्ति यदि आपके घर अतिथि बन के आता है तो सदैव उसका ख्याल रखा जाना चाहिए । उसकी प्रकृति के अनुकूल उसके साथ व्यवहार किया जाना चाहिए । उसके खाने पीने रहने सोने का प्रबंध यथायोग्य किया जाना चाहिए। साथ ही आपके व्यवहार में उसके प्रति एक अपनापन होना चाहिए, जिससे वह अपना संकोच मिटाकर आप के साथ घुल-मिल सके और अपनी पीड़ा अपना सुख -दुख सभी कुछ आपके साथ बांट सके । ऐसा करने से उसकी आत्मा प्रसन्न होंगी और प्रसन्नता ही परमात्मा का स्वभाव है इसलिए उसे प्रसन्न करके हम केवल उसका ख्याल नहीं रख रहे बल्कि अप्रत्यक्ष रुप से हम परमात्मा को ही प्रसन्न कर रहे हैं।
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