Short essay on chittaranjan das in hindi
Answers
देशबन्धु की उपाधि से माने जाने वाले चितरंजन दास भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के जबरदस्त सेसनी थे । स्वभाव से विनम्र, किन्तु ईमानदार देशबन्धु का जीवन बड़ा ही ऐश्वर्यपूर्ण था ।
इस जीवन को उन्होंने अपने देशप्रेम के मार्ग में रोड़ा नहीं बनने दिया । वे एक यथार्थवादी नेता थे । देश के प्रति उनके अटूट प्रेम के कारण ही उन्हें देशबन्धु कहा जाता था । गांधीजी ने तो उन्हें धर्मपरायण, महान्, श्रेष्ठ, वफादार राष्ट्रभक्त माना ।
2. उनके कार्य एवं बिचार:
देशबन्धु चितरंजन दास आजादी के संघर्ष में अपना सक्रिय योगदान देने से पूर्व कलकत्ता में वकालत किया करते थे । हजार रुपये मासिक कमाई उस समय उन्हें वकालत से ही प्राप्त हो जाया करती थी । राजनीतिक गतिविधियों से जुड़ते हुए सर्वप्रथम 1908 में उन्होंने अरविन्द घोष के मुकदमे की पैरवी करते हुए अंग्रेजों के खिलाफ अपना मोर्चा खोला ।
उनकी पैरवी से हारकर अंग्रेज सरकार ने अरविन्द घोष को रिहा कर दिया । अंग्रेजों ने अरविन्द घोष को अलीपुर बमकाण्ड के अपराधी के रूप में गिरफ्तार किया था । गांधीजी द्वारा असहयोग आन्दोलन 1922 में स्थगित कर जाने पर वे काफी दुखी हुए थे । उन्होंने जनता में आजादी का उत्साह बनाये रखने के लिए इस आन्दोलन को जारी रखने में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी ।
:
1922 में वे कांग्रेस के अध्यक्ष बने । उन्होंने विधान परिषदों में प्रवेश करके सरकार के विरुद्ध संघर्ष करने का परामर्श दिया । राजगोपालचारी तथा अन्य नेताओं द्वारा असहमत होने पर उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया । 1923 में मोतीलाल नेहरू तथा अजमल खां के साथ मिलकर स्वराज्य पार्टी का गठन किया । कांग्रेस विरोधी होने के कई आरोप उन्होंने सहे । इन आरोपों का उत्तर देते हुए उन्होंने अपने स्वराज्य प्राप्ति के अभियान को ठण्डा नहीं पड़ने दिया ।
बंगाल में साम्प्रदायिक समस्या के विकराल होने का खतरा देखकर चितरंजन दास ने उसका बुद्धिमत्तापूर्ण समाधान कर दिया । मौलाना आजाद ने इसकी प्रशंसा करते हुए लिखा कि- ”उन्होंने साम्प्रदायिक समस्या का जो हल किया, भारतवासियों के लिए एक उदाहरण ही होगा ।”
3. स्वतन्त्रता आन्दोलन में उनका योगदान:
:
देशबन्धु चितरंजन दास नैतिक कर्तव्य का पालन करने वाले, महान् मानवसेवी थे । एक बार एक जमींदार ने उन्हें 2 लाख रुपये देकर मुकदमा लड़ने के लिए बहुत अनुनय-विनय भी की, किन्तु देशभक्ति के लिए वकालत छोड़ देने का संकल्प लेने वाले चितरंजन दास अपने सिद्धान्तों से कब समझौता करने वाले थे । उन्होंने मानव धर्म का निर्वाह करते हुए कई तंगहाल वकीलों को वकालत शुरू करवाने में कई बार सहायता की थी ।
एक बार तो अपने मित्र की जमानत के लिए काफी बड़ी रकम उन्हें अदा करनी थी, किन्तु इतनी बड़ी रकम चुकाने की असमर्थता के कारण अदालत ने चितरंजन और उनके पिता को दिवालिया घोषित कर दिया । अपनी प्रतिभा और कानून के गहरे ज्ञान के बल पर उन्होंने जब यह दिवालियेपन की आज्ञा रद्द करवायी, तो सारे देश में उनकी धाक जम गयी ।
4. उपसंहार:
देशबन्धु चितरंजन दास अपने सिद्धान्तों के पक्के, मानवतावादी धर्म के पक्षधर एवं सच्चे राष्ट्रभक्त थे । भारतवर्ष देश व समाज को दिये गये उनके योगदान के लिए उन्हें हमेशा याद रखेगा । 1925 में ऐसी महान् आत्मा पंचतत्त्व में लीन हो गयी ।
चित्तरंजन दास |
Explanation:
चित्तरंजन दास एक महान राष्ट्रवादी नेता और सुभाष चंद्र बोस के राजनीतिक गुरु थे। उन्होंने 1926 में स्वराज पार्टी बनाने के लिए मोतीलाल और लाला लाजपत राय के साथ हाथ मिलाया। चित्त रंजन दास भारत के कवि, राजनेता और भविष्यवक्ता रहे हैं। वे सुभाष चंद्र बोस और उनके फॉरवर्ड ब्लॉक द्वारा प्रतिनिधित्व किए गए कट्टरपंथी और क्रांतिकारी भारत के अग्रदूत रहे हैं।
चित्त रंजन दास का जन्म 5 नवंबर, 1870 को हुआ था। कलकत्ता विश्वविद्यालय से मैट्रिक करने के बाद वे उच्च अध्ययन के लिए इंग्लैंड गए। वहाँ उन्होंने दादाभाई नौरोजी के लिए कुछ तेज राजनीतिक प्रचार किया जो कि ब्रिटिश संसद के लिए खड़े थे।
दास ने सबसे पहले अरबिंदो घोष के आतंकवादी मामले में एक वकील के रूप में अपनी प्रतिभा दिखाई। उनकी शानदार वकालत ने एक बार उन्हें मशहूर कर दिया। दोबारा उन्होंने मणिकटोला बम मामले में चकाचौंध वकालत की, जिसमें छत्तीस बंगाली शामिल थे। उन्होंने पारिश्रमिक के बिना अपना काम किया|
और अधिक जानें:
Write a short note on chittaranjan das
brainly.in/question/82185