English, asked by jotaman6029, 11 months ago

Short paragraph in hindi for sahityakar ki bhumika

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Answered by Tinkel
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Answer:साहित्यकार भी समाज का अभिन्न अंग होता है। वह जिस समाज मे रहता है, उसके प्रति उसका विशेष दायित्व भी बनता हैं। साहित्यकार अपनी रचना के माध्यम से अपने विचारों की अभिव्यक्ति प्रदान करता है। वह अपने असंतोष के कारण को भी स्पष्ट करता है। यहाँ आकर उसका स्वरूप प्रजापति का हो जाता है।

देशोत्थान के प्रयास चल रहे हैं। इसमें कवि की भी भूमिका है। वह इसमंे अलग रह ही नहीं सकता। यदि वह ऐसा सोचता है या प्रयास करता है कि मेरा इसमें कुछ लेना-देना नहीं है, तो वह गलत है। देशोत्थान सभी नागरिकों का मिला-जुला प्रयास है। कवि भी समाज का अभिन्न अंग है। उसे भी देशोत्थान में अपनी भूमिका का निर्वाह करना है।

कवि अपनी कविताओं के माध्यम से लोगों में उत्साह का संचार करता है, वह उनमें छिपे देवत्व को जगाता है और आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। कविता में बहुत बड़ी शक्ति होती है। दिनकर जी चाँद और कवि कविता में कविता की शक्ति का बखान इन शब्दों में करते हैं-

मैं न वह, जो स्वप्न पर केवल सही करते,

आग में उसको गला लोहा बनाती हूँ।

और उस पर नींव रखती हूँ नए घर की,

इस तरह दीवार फौलादी उठाती हूँ।

कवि की कविता में अदम्य शक्ति होती है। वह क्रांति की आग लगा सकती है। कवि मनचाहे ढंग से समाज को परिवर्तित कर सकता है। कवि कल्पनाजीवी नहीं होता, अपितु उसमें देश के नव-निर्माण की अद्भुत शक्ति एंव क्षमता होती है। कवि स्वप्न दृष्टा है पर स्वपनों में ही खोया नहीं रहता है। कवि की भूमिका बड़ी क्रांतिकारी होती है।

समाज पर युग की भाव-धाराओं का प्रभाव पड़ता है। साहित्य में उसका लेखा-जोखा रहता है, किन्तु साहित्य नई प्रेरणा देकर समाज का निर्माण भी करता है। समाज में परिवर्तन लाने की जो शक्ति साहित्य में छिपी है, वह तोप, तलवार तथा बम के गोलों में भी नहीं है। यूरोप में साहित्य ने धार्मिक रूढ़ियों को जड़ से उखाड़ दिया, राज्यक्रान्ति और जातीय स्वातन्त्रय के बीच बोए। साहित्य ने गिरे हुए राष्ट्रों का पुरूत्थान किया।

साहित्यकार समाज में मानव-संबंधो में परिवर्तन लाता है। साहित्य मानव-संबंधों से परे नहीं होता। साहित्यकार तो जब विधाता पर साहित्य रचता है तो उसे भी मानव-संबंधों की परिधि में खींच लेता है। साहित्यकार का दायित्व है कि वह समाज के बहुसंख्यक लोगों के संघर्ष करने को वाणी प्रदान करे। उसे मानव-समुदाय में नई प्रेरणा का संचार करना चाहिए ताकि वह अन्याय-अत्याचार के विरूद्व संघर्ष करने को तैयार हो सके। साहित्यकार लोगों को उदासीनता एवं पराभव का पाठ नहीं पढ़ाता, वरन् उन्हें समरभूमि में उतरने के लिए प्रेरणा देता है। उसका यह दायित्व है कि वह पराभव प्रेमियों के पर कतर डाले।

डाॅ. हजारी प्रसाद द्विवेदी जी का मत है कि श् साहित्यकार को मनुष्यता का उन्नायक होना चाहिए। जब तक वह मानव मात्र के मंगल के लिए नहीं लिखता, तब तक वह अपने दायित्व से पलायन करता हैश् यह कथन पूर्णतः सत्य है। साहित्यकार को मानव-समाज के लिए कल्याणकारी दृष्टिकोण को सदैव ध्यान में रखना चाहिए।

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Answered by Tanglednaaz
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Explanation:

साहित्यकार भी समाज का अभिन्न अंग होता है। वह जिस समाज मे रहता है, उसके प्रति उसका विशेष दायित्व भी बनता हैं। साहित्यकार अपनी रचना के माध्यम से अपने विचारों की अभिव्यक्ति प्रदान करता है। वह अपने असंतोष के कारण को भी स्पष्ट करता है। यहाँ आकर उसका स्वरूप प्रजापति का हो जाता है।

देशोत्थान के प्रयास चल रहे हैं। इसमें कवि की भी भूमिका है। वह इसमंे अलग रह ही नहीं सकता। यदि वह ऐसा सोचता है या प्रयास करता है कि मेरा इसमें कुछ लेना-देना नहीं है, तो वह गलत है। देशोत्थान सभी नागरिकों का मिला-जुला प्रयास है। कवि भी समाज का अभिन्न अंग है। उसे भी देशोत्थान में अपनी भूमिका का निर्वाह करना है।

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