short story on donation for class 9 in Hindi
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प्रेरक कहानी: मन से दिया दान ही देता है पुण्य
एक बार सरदार वल्लभ भाई पटेल कांग्रेस के लिए फंड एकत्रित करने रंगून गए। वहां उन्होंने अनेक व्यक्तियों से सहयोग मांगा। उन्होने देखा कि जब भी वे चीनियों से चंदा मांगते थे तो वे सूची मे अपना आंकड़ा नही चढ़ाते थे, बल्कि चुपके से अपने घरों के अंदर से श्रद्धानुसार चंदा लेकर जमा करा देते थे।अधिकतर चीनियों को ऐसा ही करते देख उन्होंने एक चीनी से कहा, 'भैया आप लोग चंदा तो दे देते हो किंतु उसे सूची में नहीं चढ़वाते। क्या आपके यहां ऐसा कोई रिवाज है? बिना सूची मे चढ़ाए यह तो पता ही नहीं चलेगा कि आपने कितना चंदा दिया?'यह प्रश्न सुनकर वह चीनी मुस्करा कर बोला - 'नहीं हमारे यहां ऐसा कोई रिवाज नहीं है पर एक मान्यता अवश्य है। यह सुनकर सरदार पटेल ने उस मान्यता के बारे में सुनने की इच्छा जताई। वह बोला - हमारे यहां दान की रकम को धर्म ऋण कहते है। सूची में दान की रकम लिख दें और संयोगवश हमारे पास उतनी रकम न हो तो उसे चुकाने मे जितने दिनों की देर होती है उतने दिन का ऋण हम पर चढ़ जाता है। धर्म ऋण का पाप सबसे बुरा माना जाता है।'
फिर उसने आगे कहा कि दूसरी बात यह कि हम यह समझते है कि अच्छे कार्य के लिए गुप्तदान से हमारे ऋण उतरते हैं। यदि हम सूची में चढ़ाकर या दूसरे को बताकर दान दें तो दान का महत्व घट जाता है इसलिए चंदे या फंड के लिए जो रकम देनी हो उसे हम तुरंत देकर ऋणमुक्त होने की कोशिश करते हैं। धर्म ऋण का महत्व व उपयोगिता तभी श्रेष्ठ होती है जब वह पूरी गरिमा, श्रद्धा और सच्चे मन से दी जाए। यह सुनकर सरदार पटेल बेहद खुश हुए।
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दान पर प्रेरणादायक कहानी || Inspiring Story on Donation With Moral
Explanation:
Donation Stories
ए कहानि है एक गरिब घर कि उस घर मे एक मा और उस का एक ननहा सा बेटा रहता था । वो लोग अकसर जो कुच काम मिलता था वो करते थे उसि से जो कुच पैसा मिलता था उसि से अपना घर चलाते थे ।
उस के घर कि परिस्तिथि अछि नहि थि उस लोगो को खाना पिना और अछे कपडे नहि मिल पते थे । वो लोग जो कुच मिलता था उसि से अपना घर चलाते थे और खुस रह ते थे ।
एक दिन उन के घर के बहार एक साधु आया और भिक्शा मंग ने लगा तब वो मा और उस का ननहा सा बेटा उसि वकत खाना खा रहे थे । मा ने देखा कि वो साधु भिक्शा मांग ने के लिये मेरे घर के बहार खदा हुवा हे तब उस मा ने उस सधु को बोलाया और बेथाया अपने घर मे और जो कुच खाने के लिये बनाया था वो तिनो को समन पिरोस दिया ।
वो सब मा कि करुना देखे सधु के आख मे अछु आगये और वो मा कि ममता से बनाया हुवा खाना बहुत स्वादिश लगा । और वो सधु कहता हे मेने आज तक एसा खाना नहि खाया केवल खाने मे मिथे चावाल हि थे लेकिन 56 पकवान समान था वो ।
वो साधु ने कहा कि आप बहुत दायालु मा हे जो मुजे आज अपने स्वादिश खाना खिलाया वो मे कभि नहि भुल सकता हु । साधु बोला मे अपको कुच देना चहता हु अपको । साधु ने अपने एक खेत उस मा को दिये जो खेति करके अपना जिवन अगे बधा सके ।
साधु कहता हे कि आज तक मेने सभि घरो मे भिक्शा मंगि है दान लेता आ रहा हु लेकिन आज पेहलि बार मे दान दे रहा हु । जो आपके जिवान मे बहुत मुल्यवान हे ।
मा वो सुन के रोने लगि और वो साधु को धन्यावाद कहने लगि । और वो खेत मे मेहनत करके अपनि गरिबि दुर कर रहि थि और उस का ननहा बेटा बडा हो रहा था ।
और वो भि अपनि मा को मदद कर रहा था । और वो साधु ने जो दान दिया वो महादान साबित हुवा ।
Donation Hindi Moral :-- तरसे को पानि और भुखे को खाना खिला ना चाहिये वो पुनिय कि बात हो ति हे वो दान कर ने से अपने जिवन मे शुखमय दिन अते हे ।
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