Hindi, asked by renukaswaroop, 7 months ago

short summary of Ram Ka Van Gaman in hindi class 6

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ग्राम का वन-गमन बाल राम कथा (summary of Ram ka Van Gaman Bal Ram Katha) कोपभवन के घटनाक्रम की जानकारी बाहर किसी को

नहीं थी। कैकेयी अपनी जिद पर अड़ी थी। सारे नगर में राम के राज्याभिषेक का उत्साह था। गुरु वशिष्ठ, महामंत्री सुमंत्र सभी शुभ घड़ी की प्रतीक्षा कर रहे थे। महाराज के न आने पट महर्षि ने सुमंत्र को राजभवन भेजा। मंत्री सुमंत्र ने देखा महाराजा पलंग पर बीमार अवस्था में पड़े हैं। दशरथ ने टूटते स्वर में राम से मिलने की इच्छा जाहिर की ।

राम के साथ लक्ष्मण भी वहाँ आ गए। राम ने पिता और माता कैकेयी को प्रणाम किया। राजा दशरथ उन्हें देखकर राम कहकर मूर्छित हो गए। होश आने पर भी वे कुछ नहीं बोले। राम ने पिता से पूछा-"पिताजी मुझसे कोई अपराध हुआ है? कैकेयी बोली-"महाराज दशरथ ने मुझे दो वरदान दिए थे। मैंने कल रात्रि दोनों वर माँगे। जिससे यह पीछे हट रहे हैं। मैं चाहती हूँ कि राज्याभिषेक भारत का ही हो और तुम चौदह वर्ष के लिए वन में हो। राम पिता के वचन को पेट काटने के लिए आज ही वन जाने के लिए तैयार हो गए। कैकेयी के महल से निकलकर राम सीधे अपनी माता कौशल्या के पास गए। उन्होंने माता कौशल्या को कैकेयी के भवन में हुए वार्तालाप के बारे में बताया और अपना निर्णय सुनाया। कौशल्या ने उन्हें अनुचित राजाज्ञा न मानने के लिए कहा पर राम ने इसे पिता की आज़ा मानकर माता से वन जाने के लिए आशीर्वाद माँगा। कौशल्या ने अपने पुत्र को दसों दिशाओं को जीतने का आशीर्वाद दिया।

लक्ष्मण राम के इस निर्णय से सहमत न होकर इस आज़ा का विरोध करना चाहते थे। राम ने उन्हें समझाया। कौशल्या-भवन से राम सीता के पास गए और उसे साटी बातें बताकर वन जाने के लिए विदा माँगी। सीता उनके साथ जाने के लिए तैयार हो गई क्योंकि उसे उसके पिता ने सदा अपने पति की छाया बनकर रहने का उपदेश दिया था। लक्ष्मण भी राम के साथ जाने के लिए तैयार गए। तीनों वन जाने के लिए तैयार होकर पिता का आशीर्वाद लेने आए। वहाँ तीनों रानियाँ, मंत्रिगण आदि भी उपस्थित थे। सब कैकेयी को समझा रहे थे, पर वह टस-से मस नहीं हुड़ी दशरथ ने कहा कि- पुत्र मैं वचन से बँधा हूँ परन्तु तुम्हारे ऊपर कोई बंधन नहीं है। तुम मुझे बंदी बनाकर राज संभालो। राम ने उन्हें समझाया कि उसे राज्य का लोभ नहीं था। कैकेयी ने राम, लक्ष्मण और सीता को वल्कल वस्त्र दिए। उन्होंने राजसी वस्त्र त्याग कर तपस्वियों के वस्त्र पहन लिए और महल से बाहर आ गए।

महल के बाहर सुमंत्र टथ लेकर खड़े थे। राम, सीता और लक्ष्मण रथ पर सवार हो गए। राम के रथ को तेज़ चलाने के लिए कहा। सुमंत्र ने शाम तक राम, लक्ष्मण व सीता को श्रृंगवेरपुर में पहुँचा दिया। निषादराज गुह ने उसका स्वागत किया। सुमंत्र के अयोध्या लौटते ही सभी लोगों ने तथा महाराज ने प्रश्न पूछने शुरू किए। वन-गमन के छठे दिन दशरथ ने प्राण त्याग दिए। राम का वियोग उनसे सहा नहीं गया। दूसरे दिन महर्षि वशिष्ठ ने मंत्रिपरिषद से चर्चा की कि टाजगद्दी खाली नहीं रहनी चाहिए। तय हुआ कि भरत को तत्काल अयोध्या बुलाया जाए। एक घुड़म वाट दूत भारत को लाने के लिए भेजा गया था उसे भारत को के लिए भेजा गया तथा उसे भारत को अयोध्या की घटनाएँ न बताने को कहा गया|

शब्दार्थ

कोलाहल - शोर-शराबा का स्थान

• विस्मित - हैरान राज्याभिषेक - राजतिलक

. शास्त्र सम्मत - शास्त्रों के अनुसार असहज - जो स्वाभाविक न हो

.

स्पंदनहीन - कोई हरकत न होना आयोजन - प्रबंध

क्षीण- कमजोर मंगलकारी- शुभ .

अनिष्ठ - नुकसान प्रतिवाद-विरोध

. वल्कल - पेड़ों की छाल विचलित-

व्याकुल • दूत - संदेशवाहक

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Answered by mitalidas1234566
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Answer:

राज भवन के अंदर की जानकारी बाहर किसी को नहीं थी। राजा दशरथ जब भी होश में आते तो केकई को समझाते कि वह ऐसा ना करें। उधर नगरवासी राज्यभिषेक की तैयारी में जुटे हुए थे और गुरु वशिष्ठ भी राम का राज्याभिषेक चाहते थे। महामंत्री सुमंत्र राजभवन आए क्योंकि कल शाम से उन्होंने महाराज को नहीं देखा था। जब सुमंत महल पहुंचे तो उन्होंने देखा कि महाराज दशरथ बीमार पड़े हुए थे। इस पर केकई ने कहा कि वह पूरी रात सोए नहीं है इसलिए ऐसा लग रहा है वह राम से बातचीत करना चाहते हैं। कुछ ही पलों में राम वहां पहुंच गए। लक्ष्मण भी उनके साथ थे।

जब राम ने उनसे पूछा तो दशरथ कुछ जवाब नहीं दे पाए। इस पर केकई ने कहा कि राजा दशरथ ने मुझे दो वरदान दिए थे और अब वे अपने वरदानों से मुकर रहे हैं। कैकई ने राम को दोनों वरदान बताएं पहले वरदान के रूप में भरत का राज्य अभिषेक और दूसरे वरदान के रूप में राम का 14 वर्ष का वनवास। राम पिता की आज्ञा पाकर वन गमन के लिए तैयार हो गए। सीता ने कहा कि मैं भी आपके साथ चलूंगी। लक्ष्मण भी श्री राम के साथ चलना चाहते थे। महर्षि वशिष्ठ का कहना था कि यदि सीता वन जाएंगी तो सब अयोध्यावासी उनके साथ जाएंगे। भरत सूनी अयोध्या पर राज करेंगे।

III

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Explanation:

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