Hindi, asked by jaisaideep, 9 months ago

shram ke bal per Ham Kya Kya Hasil kar sakte hain​

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Answered by radhakrishna1551
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Explanation:

अपने देश के समक्ष बालश्रम की समस्या एक चुनौती बनती जा रही है। सरकार ने इस समस्या से निपटने के लिए कई कदम भी उठाये हैं। समस्या के विस्तार और गंभीरता को देखते हुए इसे एक सामाजिक-आर्थिक समस्या मानी जा रही है जो चेतना की कमी, गरीबी और निरक्षरता से जुड़ी हुई है। इस समस्या के समाधान हेतु समाज के सभी वर्गों द्वारा सामूहिक प्रयास किये जाने की आवश्यकता है।

वर्ष 1979 में भारत सरकार ने बाल-मज़दूरी की समस्या और उससे निज़ात दिलाने हेतु उपाय सुझाने के लिए 'गुरुपाद स्वामी समिति' का गठन किया था। समिति ने समस्या का विस्तार से अध्ययन किया और अपनी सिफारिशें प्रस्तुत की। उन्होंने देखा कि जब तक गरीबी बनी रहेगी तब तक बाल-मजदूरी को हटाना संभव नहीं होगा। इसलिए कानूनन इस मुद्दे को प्रतिबंधित करना व्यावहारिक रूप से समाधान नहीं होगा। ऐसी स्थिति में समिति ने सुझाव दिया कि खतरनाक क्षेत्रों में बाल-मजदूरी पर प्रतिबंध लगाया जाए तथा अन्य क्षेत्रों में कार्य के स्तर में सुधार लाया जाए। समिति ने यह भी सिफारिश की कि कार्यरत बच्चों की समस्याओं को निपटाने के लिए बहुआयामी नीति बनाये जाने की जरूरत है।

'गुरुपाद स्वामी समिति' की सिफारिशों के आधार पर बाल-मजदूरी (प्रतिबंध एवं विनियमन) अधिनियम को 1986 में लागू किया गया था। इस अधिनियम के द्वारा कुछ विशिष्टिकृत खतरनाक व्यवसायों एवं प्रक्रियाओं में बच्चों के रोजगार पर रोक लगाई गई है और अन्य वर्ग के लिए कार्य की शर्त्तों का निर्धारण किया गया। इस कानून के अंतर्गत बाल श्रम तकनीकी सलाहगार समिति के आधार पर जोखिम भरे व्यवसायों एवं प्रक्रियाओं की सूची का विस्तार किया जा रहा है।

उपरोक्त दृष्टिकोण की सामंजस्यता के संदर्भ में वर्ष 1987 में राष्ट्रीय बाल-मजदूरी नीति तैयार की गई। इस नीति के तहत जोखिम भरे व्यवसाय और प्रक्रियाओं में कार्यरत बच्चों के पुनर्वास कार्य पर ध्यान केन्द्रित किये जाने की जरूरत बताई गई।

संयोजन पाठ्यक्रम

बाल मज़दूरी की समस्या के समाधान के क्षेत्र में 'एम.वी. फाउंडेशन द्वारा एक अलग दृष्टिकोण विकसित किया गया है। यह संस्थान स्कूल छोड़े हुए, नामांकन से वंचित तथा अन्य कार्यरत बच्चों के लिए संयोजन पाठ्यक्रम (ब्रिज कोर्स) चला रहा है तथा उनकी उम्र के अनुरूप औपचारिक शिक्षा पद्धति के अंतर्गत स्कूल में नामांकन करा रहा है। यह पद्धति काम करने वाले बच्चों को स्कूल की ओर लाने में काफी हद तक सफल रहा है और इसे आँध्र प्रदेश सरकार के साथ प्रथम, सिनी - आशा,लोक जुम्बिश जैसी गैर सरकारी संस्थाओं ने भी अपनाया है।

ज्यादा जानकारी के लिए देखें श्रम और रोजगार मंत्रालय।

बाल मजदूरी के कारण

यूनीसेफ के अनुसार बच्चों का नियोजन इसलिए किया जाता है, क्योंकि उनका आसानी से शोषण किया जा सकता है। बच्चे अपनी उम्र के अनुरूप कठिन काम जिन कारणों से करते हैं, उनमें आम तौर पर गरीबी पहला है। लेकिन इसके बावजूद जनसंख्या विस्फोट, सस्ता श्रम, उपलब्ध कानूनों का लागू नहीं होना, बच्चों को स्कूल भेजने के प्रति अनिच्छुक माता-पिता (वे अपने बच्चों को स्कूल की बजाय काम पर भेजने के इच्छुक होते हैं, ताकि परिवार की आय बढ़ सके) जैसे अन्य कारण भी हैं। और यदि एक परिवार के भरण-पोषण का एकमात्र आधार ही बाल श्रम हो, तो कोई कर भी क्या सकता है।

बाल मजदूरी उन्मूलन हेतु किये जा रहे प्रयास

बाल श्रम उन्मूलन के लिए राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना कार्यक्रम के तहत 1.50 लाख बच्चों को शामिल करने हेतु 76 बाल श्रम परियोजनाएं स्वीकृत की गयी हैं। करीब 1.05 लाख बच्चों को विशेष स्कूलों में नामांकित किया जा चुका है। श्रम मंत्रालय ने योजना आयोग से वर्तमान में 250 जिलों की बजाय देश के सभी 600 जिलों को राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना में शामिल करने के लिए 1500 करोड़ रुपये देने को कहा है। 57 खतरनाक उद्योगों, ढाबा और घरों में काम करनेवाले बच्चों (9-14 साल की उम्र के) को इस परियोजना के तहत लाया जायेगा। सर्व शिक्षा अभियान जैसी सरकारी योजनाएं भी लागू की जा रही हैं।

राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना के तहत शामिल नीति

सातवीं पंचवर्षीय योजनावधि के दौरान 14 अगस्त, 1987 को राष्ट्रीय बाल श्रम नीति को मंत्रिमंडल द्वारा मंजूर किया गया। इस नीति का उद्देश्य बच्चों को रोजगार से हटाकर उन्हें समुचित रूप से पुनर्वास कराना था। इस तरह जिन क्षेत्रों में बाल श्रम अधिक है उन क्षेत्रों में इसके प्रभाव को कम करना है।

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