Shri Krishna Bal Leela Ke Pad aur uske Vyakhya kijiye
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श्रीकृष्ण की बाललीला के पद और व्याख्या
भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीला के कुछ पद नीचे व्याख्या सहित नीचे प्रस्तुत हैं।
इन पदों की रचना महाकवि ‘सूरदास’ ने की थी।
पद —
मैया मोरी मैं नहिं माखन खायो,
भोर भयो गैयन के पाछे, मधुवन मोहिं पठायो ।
चार पहर बंसीबट भटक्यो, साँझ परे घर आयो ॥
मैं बालक बहिंयन को छोटो, छींको किहि बिधि पायो ।
ग्वाल बाल सब बैर परे हैं, बरबस मुख लपटायो ॥
तू जननी मन की अति भोरी, इनके कहे पतिआयो ।
जिय तेरे कछु भेद उपजि है, जानि परायो जायो ॥
यह लै अपनी लकुटि कमरिया, बहुतहिं नाच नचायो ।
'सूरदास' तब बिहँसि जसोदा, लै उर कंठ लगायो ॥
संदर्भ — ये पद महाकवि सूरदास द्वारा रचित किये गयें हैं। इन पदों में जब भगवान श्रीकृष्ण के बचपन के प्रसंग का वर्णन किया गया। श्रीकृष्ण तब गोकुल में नंदलाल और यशोदा मैया के पास रहते थे। उनकी बाल लीलाये बड़ी प्रसिद्ध थीं। अपनी बाल लीलाओं से वो सबके मन को मोह लेते थे। एक दिन वो मैया यशोदा से शिकायत करते हैं।
व्याख्या — श्रीकृष्ण मैया यशोदा से उलाहना भरे स्वर में कहते हैं हे मैया मैंने मक्खन नही खाया है। तुम नाहक ही मुझ पर संदेह कर रही हो। तुम मुझे सुबह-सुबह ही गायों के चराने के लिये वन में भेज देती हो। चार पहर वन में भटकने के बाद मैं घर पे थका-मांदा आता हूँ। देखो मैया, मैं कितना छोटा बालक हूँ, मेरी बाहें कितनी छोटी हैं। मेरे हाथ मक्खन के छींके तक कैसे पहुंच सकते हैं। मेरे सखा मुझसे बैर भाव रखते हैं। अवश्य ही उन्होंने सोते समय मेरे मुंह पर मक्खन लगा दिया होगा और तुम्हारे कान भर दिये होंगे कि मैंने मक्खन चुरा कर खाया है। मैया तुम कितनी भोली हो जो उन सबकी बातों में आ गयी। ये लो अपनी लाठी और कमरिया। तुमने मुझे बहुत गलत समझा। सूरदास जी कहते हैं मैया यशोदा श्रीकृष्ण की ऐसी भोली-भाली बाते सुनकर भाव विह्वल हो गयीं और उन्होंने झट से श्रीकृष्ण को गले से लगा लिया।