siksha nokri or naitikta
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नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ) के रोजगार के आंकड़े सामने आते ही विरोधी दलों ने शोर-शराबा शुरू कर दिया है क्योंकि उन्हें शोर मचाने के लिए एक आकर्षक मुद्दा मिल गया है। हालांकि योजना आयोग के मुख्य सलाहकार प्रणब सेन ने कहा है कि सैंपल में खामियां हो सकती हैं और सर्वे के नतीजों को प्रामाणिक नहीं माना जा सकता। एनएसएसओ के सर्वे के मुताबिक वर्ष 2004-05 से लेकर 2009-10 के बीच यूपीए सरकार की नीतियों से प्रति वर्ष सिर्फ दो लाख रोजगार ही पैदा हुए हैं। एनएसएसओ के ही आकंड़े ये बताते हैं कि एनडीए के शासन यानि 1999-2000 से 2004-05 के बीच एक करोड़ बीस लाख रोजगार पैदा हुए। एनएसएसओ के 2004-05 से लेकर 2009-10 के रोजगार आंकड़ों से जो महत्वपूर्ण तथ्य सामने आये हैं, उनमें से एक यह भी है कि देश में 51 फीसदी श्रम शक्ति के पास स्वरोजगार है, यानि उसे सरकारी मशीनरी के जरिये काम नहीं मिला है।
अगर यूपीए के शासनकाल में साल में सिर्फ दो लाख रोजगारों का सृजन सरकार के फ्लैगशिप कार्यक्रमों की सीमा का द्योतक है। यूपीए सरकार के पहले शासनकाल में मनरेगा को बड़े पैमाने पर शुरू किया गया और इससे साल में सौ दिन रोजगार की गांरटी मिली। लेकिन गरीबी हटाने और रोजगार बढ़ाने के इस कार्यक्रम से असली मकसद नहीं सध रहा है। मनरेगा सिर्फ रोजगार मुहैया करा रहा है इसका सृजन नहीं कर रहा है। इसके अलावा यह कार्यक्रम भ्रष्टाचार का शिकार बन चुका है। परियोजनाओं में काम हो चाहे न हो, सरकार के खजाने से पैसा निकल जाता है और यह उन लोगों तक नहीं पहुंच पाता है, जिनके लिए यह कार्यक्रम लाया गया था।
अगर यूपीए के शासनकाल में साल में सिर्फ दो लाख रोजगारों का सृजन सरकार के फ्लैगशिप कार्यक्रमों की सीमा का द्योतक है। यूपीए सरकार के पहले शासनकाल में मनरेगा को बड़े पैमाने पर शुरू किया गया और इससे साल में सौ दिन रोजगार की गांरटी मिली। लेकिन गरीबी हटाने और रोजगार बढ़ाने के इस कार्यक्रम से असली मकसद नहीं सध रहा है। मनरेगा सिर्फ रोजगार मुहैया करा रहा है इसका सृजन नहीं कर रहा है। इसके अलावा यह कार्यक्रम भ्रष्टाचार का शिकार बन चुका है। परियोजनाओं में काम हो चाहे न हो, सरकार के खजाने से पैसा निकल जाता है और यह उन लोगों तक नहीं पहुंच पाता है, जिनके लिए यह कार्यक्रम लाया गया था।
Bhavya333:
plz mark as brainliest ans
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