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1 i) पर्णकुटी , और स्वच्छ शिला
ii). लक्ष्मण
2 I) घनी छाया
ii) पर्णकुटीर
3) भावार्थ : कवि कहता है कि पंचवटी की घनी छाया में एक सुन्दर पत्तों की कुटिया बनी हुई है। उस कुटिया के सामने एक स्वच्छ विशाल पत्थर पड़ा हुआ है और उस पत्थर के ऊपर धैर्यशाली, निर्भय मनवाला वीर पुरुष बैठा हुआ है। सारा संसार सो रहा है परन्तु यह धनुषधारी इस समय भी जाग रहा है।
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