Song of the rain by kahlil gibran line by line explanation
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प्रेम किसी पर नियंत्रण नहीं रखता
न ही प्रेम पर किसी का नियंत्रण होता है
तब अलमित्रा ने कहा,
हमें प्रेम के विषय में बताओ।
तब उसने अपना सिर उठाया,
और उन लोगों की ओर देखा।
उन सबों पर शांति बरस पड़ी,
फिर उसने गंभीर स्वर में कहा :
प्रेम का संकेत मिलते ही अनुगामी बन जाओ उसका,
हालाँकि उसके रास्ते कठिन और दुर्गम हैं।
और जब उसकी बाँहें घेरें तुम्हें,
समर्पण कर दो,
हालाँकि उसके पंखों में छिपे तलवार,
तुम्हें लहूलुहान कर सकते हैं, फिर भी।
और जब वह शब्दों में प्रकट हो,
उसमें विश्वास रखो,
हालाँकि उसके शब्द तुम्हारे सपनों को,
तार-तार कर सकते हैं
जैसे उत्तरी बर्फीली हवा उपवन को
बरबाद कर देती है।
क्योंकि प्रेम यदि तुम्हें सम्राट बना सकता है,
तो तुम्हारा बलिदान भी ले सकता है।
प्रेम कभी देता है विस्तार,
तो कभी काट देता है पर।
जैसे वह, तुम्हारे शिखर तक उठता है
और धूप में काँपती कोमलतम शाखा
तक को बचाता है,
वैसे ही, वह तुम्हारी गहराई तक उतरता है
और जमीन से तुम्हारी जड़ों को हिला देता है,
अनाज के पूला की तरह,
वह तुम्हें इकट्ठा करता है अपने लिए,
वह तुम्हें यंत्र में डालता है ताकि
तुम अपने आवरण के बाहर आ जाओ।
वह छानता है तुम्हें,
और तुम्हारे आवरण से मुक्त करता है तुम्हें,
वह पीसता है तुम्हें, उज्जवल बनाने को।
वह गूँधता है तुम्हें, नरम बनाने तक
और तब तुम्हें अपनी पवित्र अग्नि को सौंपता है,
जहाँ से तुम ईश्वर के पावन भोज की
पवित्र रोटी बन सकते हो!
प्रेम यह सब तुम्हारे साथ करेगा,
ताकि तुम हृदय के रहस्यों को समझ सको,
और इस 'ज्ञान' से ही तुम,
अस्तित्व के हृदय का अंश हो जाओगे।
लेकिन यदि तुम भयभीत हो,
और तुम प्रेम में सिर्फ शांति और आनंद चाहते हो,
तो तुम्हारे लिए यही अच्छा होगा कि
अपनी 'निजता' को ढक लो
और प्रेम के उस यातना-स्थल से बाहर चले जाओ,
चले जाओ ऋतुहीन उस दुनिया में,
जहाँ तुम्हारी हँसी में
तुम्हारी संपूर्ण खुशी प्रकट नहीं होती,
न ही तुम्हारे रुदन में
तुम्हारे संपूर्ण आँसू ही बहते हैं
प्रेम न तो स्वयं के अतिरिक्त कुछ देता है,
न ही प्रेम स्वयं के अलावा कुछ लेता है,
प्रेम किसी पर नियंत्रण नहीं रखता,
न ही प्रेम पर किसी का नियंत्रण होता है
चूँकि प्रेम के लिए बस प्रेम ही पर्याप्त है।
जब तुम प्रेम में हो, यह मत कहो
कि ईश्वर मेरे हृदय में हैं,
बल्कि कहो कि,
'मैं ईश्वर के हृदय में हूँ'।
यह मत सोचो कि तुम प्रेम को,
उसकी राह बता सकते हो,
बल्कि यदि प्रेम तु्म्हें योग्य समझेगा,
तो वह स्वयं तुम्हें तुम्हारा रास्ता बताएगा,
'स्वयं' की परिपूर्णता के अतिरिक्त,
प्रेम की कोई और अभिलाषा नहीं,
लेकिन यदि तुम प्रेम करते हो,
फिर भी इच्छाएँ हों ही,
तो उनका रूपांतरण ऐसे करो
कि ये पिघलकर उस झरने की तरह बहें,
जो मधुर स्वर में गा रही हो रात्रि के लिए,
करुणा के अतिरेक की पीड़ा समझने को।
प्रेम के बोध से स्वयं को घायल होने दो।
बहने दो अपना रक्त
अपनी ही इच्छा से सहर्ष,
सुबह ऐसे जागो कि
हृदय उड़ने में हो समर्थ,
और अनुगृहीत हो एक और
न ही प्रेम पर किसी का नियंत्रण होता है
तब अलमित्रा ने कहा,
हमें प्रेम के विषय में बताओ।
तब उसने अपना सिर उठाया,
और उन लोगों की ओर देखा।
उन सबों पर शांति बरस पड़ी,
फिर उसने गंभीर स्वर में कहा :
प्रेम का संकेत मिलते ही अनुगामी बन जाओ उसका,
हालाँकि उसके रास्ते कठिन और दुर्गम हैं।
और जब उसकी बाँहें घेरें तुम्हें,
समर्पण कर दो,
हालाँकि उसके पंखों में छिपे तलवार,
तुम्हें लहूलुहान कर सकते हैं, फिर भी।
और जब वह शब्दों में प्रकट हो,
उसमें विश्वास रखो,
हालाँकि उसके शब्द तुम्हारे सपनों को,
तार-तार कर सकते हैं
जैसे उत्तरी बर्फीली हवा उपवन को
बरबाद कर देती है।
क्योंकि प्रेम यदि तुम्हें सम्राट बना सकता है,
तो तुम्हारा बलिदान भी ले सकता है।
प्रेम कभी देता है विस्तार,
तो कभी काट देता है पर।
जैसे वह, तुम्हारे शिखर तक उठता है
और धूप में काँपती कोमलतम शाखा
तक को बचाता है,
वैसे ही, वह तुम्हारी गहराई तक उतरता है
और जमीन से तुम्हारी जड़ों को हिला देता है,
अनाज के पूला की तरह,
वह तुम्हें इकट्ठा करता है अपने लिए,
वह तुम्हें यंत्र में डालता है ताकि
तुम अपने आवरण के बाहर आ जाओ।
वह छानता है तुम्हें,
और तुम्हारे आवरण से मुक्त करता है तुम्हें,
वह पीसता है तुम्हें, उज्जवल बनाने को।
वह गूँधता है तुम्हें, नरम बनाने तक
और तब तुम्हें अपनी पवित्र अग्नि को सौंपता है,
जहाँ से तुम ईश्वर के पावन भोज की
पवित्र रोटी बन सकते हो!
प्रेम यह सब तुम्हारे साथ करेगा,
ताकि तुम हृदय के रहस्यों को समझ सको,
और इस 'ज्ञान' से ही तुम,
अस्तित्व के हृदय का अंश हो जाओगे।
लेकिन यदि तुम भयभीत हो,
और तुम प्रेम में सिर्फ शांति और आनंद चाहते हो,
तो तुम्हारे लिए यही अच्छा होगा कि
अपनी 'निजता' को ढक लो
और प्रेम के उस यातना-स्थल से बाहर चले जाओ,
चले जाओ ऋतुहीन उस दुनिया में,
जहाँ तुम्हारी हँसी में
तुम्हारी संपूर्ण खुशी प्रकट नहीं होती,
न ही तुम्हारे रुदन में
तुम्हारे संपूर्ण आँसू ही बहते हैं
प्रेम न तो स्वयं के अतिरिक्त कुछ देता है,
न ही प्रेम स्वयं के अलावा कुछ लेता है,
प्रेम किसी पर नियंत्रण नहीं रखता,
न ही प्रेम पर किसी का नियंत्रण होता है
चूँकि प्रेम के लिए बस प्रेम ही पर्याप्त है।
जब तुम प्रेम में हो, यह मत कहो
कि ईश्वर मेरे हृदय में हैं,
बल्कि कहो कि,
'मैं ईश्वर के हृदय में हूँ'।
यह मत सोचो कि तुम प्रेम को,
उसकी राह बता सकते हो,
बल्कि यदि प्रेम तु्म्हें योग्य समझेगा,
तो वह स्वयं तुम्हें तुम्हारा रास्ता बताएगा,
'स्वयं' की परिपूर्णता के अतिरिक्त,
प्रेम की कोई और अभिलाषा नहीं,
लेकिन यदि तुम प्रेम करते हो,
फिर भी इच्छाएँ हों ही,
तो उनका रूपांतरण ऐसे करो
कि ये पिघलकर उस झरने की तरह बहें,
जो मधुर स्वर में गा रही हो रात्रि के लिए,
करुणा के अतिरेक की पीड़ा समझने को।
प्रेम के बोध से स्वयं को घायल होने दो।
बहने दो अपना रक्त
अपनी ही इच्छा से सहर्ष,
सुबह ऐसे जागो कि
हृदय उड़ने में हो समर्थ,
और अनुगृहीत हो एक और
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