Hindi, asked by akash112, 1 year ago

speech on this topic

विद्या धन को सभी धनो मे सबसे बङा क्यो
कहा जाता है
please give appropriate answer
or you will be reported write answer will be marked as brainlist
!!!!!!points 50!!!!!!
in hindi

Answers

Answered by swapnil756
8
नमस्कार दोस्त
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गरीबी के चक्र से बाहर निकलने का सबसे प्रभावी तरीका शिक्षा है शिक्षा सीखता है कि कैसे वंचितों की वर्तमान जीवन शैली की तुलना में विकास और सुधार किया जाए, जो कि जरूरतों और निर्वाह के आधार पर आधारित है। रखरखाव बॉक्स में से बाहर काम करने की आपकी क्षमता को बाधित करता है क्योंकि इन लोगों की पहली प्राथमिकता खाद्य और आश्रय है।

जब परिवार और बच्चों के लिए बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के तरीके में शिक्षा की लागत आता है तो गृहकर्म हमेशा शिक्षा की लागत को कम करने और आवश्यक जरूरतों पर खर्च करने का विकल्प चुनते हैं।

हम शिक्षा से संबंधित लागत का बोझ उठाना चाहते हैं ताकि स्कूल में रहने के लिए अधिक बच्चे खत्म हो जाएं।
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आशा है कि यह आपकी मदद करेगा
Answered by Anonymous
3
Heya Mate !!!

Here's Your Answer ⏬

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क्योँकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। खान-पान और रहन-सहन के अतिरिक्त उसकी कुछ अन्य आवश्यकतांए भी हैं। इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उसे साधन ढूंढने पड़ते हैं। साधनों का मूल है-धन, ज्ञान, चातुर्य और इनका आधार ‘विद्या’ है। इसलिए यह विद्या एक अनोखा धन है, जो दान करने से तो बढ़ता है, परंतु गाडक़र रखने से नष्ट हो जाता है।
विद्या अमूल्य और अनश्वर धन है। इसका नाश कभी नहीं होता। लेकिन अन्य सभी धन नष्ट हो जाते हैं। स्वणमयी लंका को रावण भस्म होने से न बचा सका। बल का धन भी समाप्त हो गया। श्रीराम से पराजित हुआ। उसका सब कुछ छिन गया, परंतु उसका विद्या-ज्ञान श्रीराम ने छीन सके। कहा जाता है कि युद्धभूमि में पड़े रावण से लक्ष्मय ने राजनीति का ज्ञान प्राप्त किया था। विद्या कामधेनु गाय के समान है। जिसके पास विद्या है, उसके लिए संसार की कोई भी वस्तु अप्राप्य नहीं।
विद्या मनुष्य का बृहत रूप है। वह मनुश्य के अंदर छिपा हुआ गुप्त धन है। विद्या से सब प्रकार का सुख और यश प्राप्त होता है। विद्या विदेश में भाई के समान सहायक होती है। विद्या के कारण ही राजदरबार में सम्मान मिलता है, बल और धन के कारण नहीं। इसलिए विद्या को सबसे श्रेष्ठ धन कहा जाता है।
‘बिना पढ़े नर पशु कहलावे’- विद्या से हीन मनुष्य पशु के समान है। आज हम जिस समाज में रहते हैं, पहले ऐसा नहीं था। पशु और पक्ष्ज्ञियों की ही तरह मनुष्य भी केवल पेट भरना और सो जाना भर जानता था। धीरे-धीरे उसने विद्याध्ययन किया और ज्ञान प्राप्त किया।
विद्या के द्वारा मनुष्य की बुद्धि का विकास होता है। तभी मनुष्य अपने अधिकार और कर्तव्यों का सही अर्थ समझ पाता है। मनुष्य अपने अधिकार और कर्तव्यों का सही रूप से पालन कर पाता है। समाज के हर मनुष्य को अपने अधिकार और कर्तव्यों के प्रति जागरुक होना चाहिए। ऐसा विद्या से ही संभव है। विद्या प्राप्त करने से मनुष्य में विनम्रता आती है। विनम्रता से मनुष्य सम्माननीय बनता है। विद्या के बिना मनुष्य अंधे के समान है। विद्या ऐसा धन है जिसे न चोर चुरा सकता है, न राजा दंड में ले सकता है, न भाई बांट सकता है और न कभी यह बोझ हो सकता है। अत: हर एक व्यक्ति को अधिक से अधिक विद्या प्राप्त करनी चाहिए – ‘सुख चाहे विद्या पढ़े, विद्या है सुख-हेतु।’
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