speech on van suraksha
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वन सम्पदा हमारी भारतीय सभ्यता और प्राचीन संस्कृति की अमूल्य धरोहर है। वन
सम्पदा वातावरण में उपलब्ध धुआँ, धूलकण, कार्बन, सीसा, कार्बन डाइऑक्साइड,
कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रिक ऑक्साइड, सल्फर डाइआक्साइड एवं मानव जीवन को
प्रदूषित करने वाली गैसों को घटाकर जीवन को सुरक्षा प्रदान करते हैं। वन
सम्पदा भूमि को अपनी जड़ों द्वारा जकड़कर हवा और वर्षा की तेजधार से बचाकर
मिट्टी के कटाव की सुरक्षा प्रदान करती हैं। इनकी पत्तियाँ, टहनियाँ और
फल-फूल धरती पर झड़कर सड़ते हैं, इससे धरती अधिक उपजाऊ बनती है। भारतीय कृषि
की अधिकांश सफलता वर्षा/मौसम पर निर्भर करती है। वर्षा वनों पर निर्भर करती
है, इसलिए भारतीय कृषि वन सम्पदा पर पूर्णतया निर्भर है। वन सम्पदा के ह्रास के कुछ मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:-
1. जलावन के लिये वनों के वृक्षों की बड़ी मात्रा में कटाई,
2. कृषि कार्य के लिये वनों की कटाई,
3. इमारती उद्योग धन्धों के लिये लकड़ी की बड़ी मात्रा में खपत,
4. शहरीकरण की प्रक्रिया के कारण वनों की कटाई
वन सुरक्षा समिति का दायित्व
1. वन क्षेत्रों का सुरक्षा समिति के सदस्यों के माध्यम से रक्षा करना। अतिक्रमण एवं पेड़ों की कटाई-छँटाई पर नियंत्रण रखना।
2. जिस क्षेत्र में वृक्षारोपण की सुरक्षा का दायित्व सौंपा गया है, अगर कोई व्यक्ति उस पर कब्जा करके चोरी करके पेड़ काट रहा है या किसी अन्य प्रकार से नुकसान पहुँचा रहा है, तो उसे रोकना एवं सुरक्षा देना, वन विभाग/सुरक्षा समिति द्वारा किया जाना चाहिए।
3. वन क्षेत्रों को नुकसान पहुँचाने वाले व्यक्तियों के विरुद्ध वन विभाग/वन पदाधिकारी द्वारा कानूनी कार्रवाई करना तथा वन सम्पदा के दोहन की सीमा निर्धारित करना।
4. वन मानव का सहयोगी है। मानव के जीवन में हर पल इसका साथ है। इसको कार्यरूप देते हुए समिति द्वारा इसकी देखभाल की जानी चाहिए। स्कूलों तथा कॉलेजों, कारखानों चिकित्सालय, कार्यालय के परिसर में वन एवं उद्यान विकसित करने चाहिए।
5. देश की सभ्यता एवं संस्कृति के विकास में वन्य जीवों का भी अप्रत्यक्ष योगदान है। वन्य जीवों की रक्षा करना भी सुरक्षा समिति का दायित्व होना चाहिए।
6. वनों को इस तरीके से विकसित करना होगा कि लोगों को इससे आजीविका कमाने का अवसर मिले और पेड़ भी सुरक्षित रहें। प्राकृतिक एवं पुराने वनों की रक्षा की जाए एवं नए पेड़ लगाए जाएँ।
7. वृक्षों तथा वन्य प्राणियों के प्रति ग्रामीणों में उदार एवं संवेदनशील विचार होना।
8. वृक्षारोपण में लघु वन उपज का होना चाहिए, जिसके प्रोत्साहन से ग्रामवासी लाभान्वित हों जैसे- घास, बांस, पत्ते से प्राप्त आय में उनकी विशेष रुचि उत्पन्न हो।
9. वन लगाने के लिये स्वैच्छिक संस्थाओं, समितियों को वृक्षारोपण के लिये पूरी स्वतंत्रता प्राप्त हो। निजी भूमि में वृक्षों में संरक्षण के आधार पर अनुदान/प्रोत्साहन दिया जाना।
10. बंजर भूमि में वन रोपण कार्यक्रम को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए एवं कृषि द्वारा भूमि की उत्पादकता में वृद्धि की जानी चाहिए।
11. जनसंख्या वृद्धि पर कठोर अनुशासन रखने होंगे। जनसंख्या की लगातार तेजी से वृद्धि से भोजन एवं आवास की समस्या उत्पन्न होती जा रही है, जिसका विकल्प वन सम्पदा का कटाव कृषि को बढ़ावा एवं उस स्थान पर निवास योग्य आवासों का निर्माण है।
यह बात न तो सम्भव है और न व्यवहारिक ही, कि वृक्षों का कटाव होना ही नहीं चाहिए। आवश्यकता है पुराने एवं मृत समान वृक्षों का कटाव कर तथा नये वृक्षों का आरोपण कर स्वाभाविक संतुलन लाने की।
1. जलावन के लिये वनों के वृक्षों की बड़ी मात्रा में कटाई,
2. कृषि कार्य के लिये वनों की कटाई,
3. इमारती उद्योग धन्धों के लिये लकड़ी की बड़ी मात्रा में खपत,
4. शहरीकरण की प्रक्रिया के कारण वनों की कटाई
वन सुरक्षा समिति का दायित्व
1. वन क्षेत्रों का सुरक्षा समिति के सदस्यों के माध्यम से रक्षा करना। अतिक्रमण एवं पेड़ों की कटाई-छँटाई पर नियंत्रण रखना।
2. जिस क्षेत्र में वृक्षारोपण की सुरक्षा का दायित्व सौंपा गया है, अगर कोई व्यक्ति उस पर कब्जा करके चोरी करके पेड़ काट रहा है या किसी अन्य प्रकार से नुकसान पहुँचा रहा है, तो उसे रोकना एवं सुरक्षा देना, वन विभाग/सुरक्षा समिति द्वारा किया जाना चाहिए।
3. वन क्षेत्रों को नुकसान पहुँचाने वाले व्यक्तियों के विरुद्ध वन विभाग/वन पदाधिकारी द्वारा कानूनी कार्रवाई करना तथा वन सम्पदा के दोहन की सीमा निर्धारित करना।
4. वन मानव का सहयोगी है। मानव के जीवन में हर पल इसका साथ है। इसको कार्यरूप देते हुए समिति द्वारा इसकी देखभाल की जानी चाहिए। स्कूलों तथा कॉलेजों, कारखानों चिकित्सालय, कार्यालय के परिसर में वन एवं उद्यान विकसित करने चाहिए।
5. देश की सभ्यता एवं संस्कृति के विकास में वन्य जीवों का भी अप्रत्यक्ष योगदान है। वन्य जीवों की रक्षा करना भी सुरक्षा समिति का दायित्व होना चाहिए।
6. वनों को इस तरीके से विकसित करना होगा कि लोगों को इससे आजीविका कमाने का अवसर मिले और पेड़ भी सुरक्षित रहें। प्राकृतिक एवं पुराने वनों की रक्षा की जाए एवं नए पेड़ लगाए जाएँ।
7. वृक्षों तथा वन्य प्राणियों के प्रति ग्रामीणों में उदार एवं संवेदनशील विचार होना।
8. वृक्षारोपण में लघु वन उपज का होना चाहिए, जिसके प्रोत्साहन से ग्रामवासी लाभान्वित हों जैसे- घास, बांस, पत्ते से प्राप्त आय में उनकी विशेष रुचि उत्पन्न हो।
9. वन लगाने के लिये स्वैच्छिक संस्थाओं, समितियों को वृक्षारोपण के लिये पूरी स्वतंत्रता प्राप्त हो। निजी भूमि में वृक्षों में संरक्षण के आधार पर अनुदान/प्रोत्साहन दिया जाना।
10. बंजर भूमि में वन रोपण कार्यक्रम को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए एवं कृषि द्वारा भूमि की उत्पादकता में वृद्धि की जानी चाहिए।
11. जनसंख्या वृद्धि पर कठोर अनुशासन रखने होंगे। जनसंख्या की लगातार तेजी से वृद्धि से भोजन एवं आवास की समस्या उत्पन्न होती जा रही है, जिसका विकल्प वन सम्पदा का कटाव कृषि को बढ़ावा एवं उस स्थान पर निवास योग्य आवासों का निर्माण है।
यह बात न तो सम्भव है और न व्यवहारिक ही, कि वृक्षों का कटाव होना ही नहीं चाहिए। आवश्यकता है पुराने एवं मृत समान वृक्षों का कटाव कर तथा नये वृक्षों का आरोपण कर स्वाभाविक संतुलन लाने की।
Divya232:
thanks
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