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मेरा माँझी मुझसे कहता रहता था
बिना बात तुम नहीं किसी से टकराना।
पर जो बार-बार बाधा बन के आए, उनके सर को वहीं कुचल कर बढ़ जाना ।
जानभूझ कर जो मेरे पथ में आती हैं,
भवसागर की चलती-फिरती चट्टानें।
मैं इनसे जितना ही बचकर चलता हूँ,
उतनी ही मिलती हैं, कुंडली को लेकर
तब मैं इनका उन्नत भल झुजता हूँ।
राह बनाकर नाव बढ़ाए जाता हूँ।
जीवन की नैया का चतुर खिवैया मैं भवसागर में नाव बढ़ाए जाता हूँ।
(क) राह में आने वाली बाधाओं के साथ कवि कैसा व्यवहार करता है।
(ख) कवि ने हमें क्या प्रेरणा दी है? स्पष्ट कीजिए।
(ग) कवि ने अपना मांझी किसे कहा है?
(घ) 'उन्नत भाल' का क्या आशय है?
(ड.) 'जीवन की नैया का चतुर खिवैय्या किसे कहा गया है?
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aagae bdnae ki praernaa
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