STORY ON NAACH NA JAANE AANGAN TEDHA
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हिमालय के चरणों में एक खूबसूरत जंगल था। उसका नाम सुन्दरवन था। उसमें तरह-तरह की जड़ी-बूटियाँ और पेड़-पौधे थे जो ऋषियों के बहुत काम आते थे। वहाँ पर बहने वाली नदियों में हमेशा मीठा और स्वादिष्ट पानी बहता था। उसे पीकर सभी प्राणियों और जानवरों को लगता था कि उन्हें अमृत मिल गया है। जंगल के पशु-पक्षी साथ-साथ मिलकर रहते थे। सब जानवर बहुत खुश थे।
वहाँ एक मोर भी रहते था जिसका नाम था रामू। रामू के पंख दूसरे मोरों से और भी खूबसूरत और कोमल थे। रामू के पिता एक शानदार नर्तक थे, तो सब लोग सोचते थे कि रामू भी बहुत अच्छा नाचता होगा। पर रामू को नाचना नहीं आता था फिर भी उसको अपने पर बहुत घमंड था इसलिए उसे लगा कि सब को सोचने दो कि उसको नाचना आता था।
फिर जब होली का महीना आया तो सब जानवरों ने होली मनाने की तैयारियाँ कीं। कार्यक्रम था कि होली मनाने के बाद सब जानवर एक कार्यक्रम प्रस्तुत करेंगे। बहुत मेहनत करके सब जानवरों ने एक मंच तैयार किया।
जब होली का दिन आया तो सब जानवरों ने खूब होली खेली। वहाँ पर जितने भी रंग थे, वे सब खत्म हो गए। फिर सब जानवर अपने-अपने घर गए और स्नान करके मंच वाले स्थान पर वापिस आए। सब जानवरों के जमा होते हई कार्यक्रम शुरु हुआ।
पहले कोयल ने आकर एक बहुत खूबसूरत गाना गाया। फिर नागों ने आकर एक नाटक प्रस्तुत किया। आखिर में रामू मोर की बारी आई।
रामू ने मंच पर आकर अपने रंगबिरंगे पंखों को फैलाकर कहा कि आप लोग तो अच्छी तरह से जानते हैं कि बारिश होने पर ही मैं अच्छी तरह से नाच सकता हूँ। उसकी यह बात सुनकर बारिश के भगवान यानि कि इंद्र ने यह सोचा कि रामू मोर कहता है कि वह बारिश के समय बहुत अच्छा नाचता है और मैं तो उसका नाच देखना चाहता हूँ तो मैं रामू मोर के लिए बारिश करता हूँ ताकि वह नाचे और मैं ही नहीं सभी उसका नाच देख सकें । इस प्रकार सोचने के बाद ही इन्द्र की इच्छानुसार बारिश होने लगी।
बारिश के होते ही सब जानवर बहुत खुश हो गए और रामू के नाच को देखने का उनका इन्तज़ार खत्म हुआ। पर रामू ने उन सबसे कहा," अरे, यह मंच यानि कि आँगन तो टेढ़ा है और मुझ जैसे महान नर्तक के लिए यह मंच उपयुक्त नहीं है।" यह कहकर राम मंच छोड़कर चला गया।
सब जानवर उसके इस व्यवहार से चकित हो गए पर एक बुद्धिमान उल्लू को समझ में आ गया कि रामू मोर को नाचना नहीं आता इसलिए वह मंच अथवा आँगन को टेढ़ा कह रहा है। इसलिए उसने खड़े होकर सब जानवरों से कहा ,"नाच न जाने , आँगन टेढ़ा"। सभी जानवरों को भी उल्लू की बात समझ में आ गई कि कोई भी काम न आने पर हम सब के लिए आसान है कि हम दूसरे को दोष दे देते हैं यानि कि नाच न जाने, आँगन टेढ़ा।
वहाँ एक मोर भी रहते था जिसका नाम था रामू। रामू के पंख दूसरे मोरों से और भी खूबसूरत और कोमल थे। रामू के पिता एक शानदार नर्तक थे, तो सब लोग सोचते थे कि रामू भी बहुत अच्छा नाचता होगा। पर रामू को नाचना नहीं आता था फिर भी उसको अपने पर बहुत घमंड था इसलिए उसे लगा कि सब को सोचने दो कि उसको नाचना आता था।
फिर जब होली का महीना आया तो सब जानवरों ने होली मनाने की तैयारियाँ कीं। कार्यक्रम था कि होली मनाने के बाद सब जानवर एक कार्यक्रम प्रस्तुत करेंगे। बहुत मेहनत करके सब जानवरों ने एक मंच तैयार किया।
जब होली का दिन आया तो सब जानवरों ने खूब होली खेली। वहाँ पर जितने भी रंग थे, वे सब खत्म हो गए। फिर सब जानवर अपने-अपने घर गए और स्नान करके मंच वाले स्थान पर वापिस आए। सब जानवरों के जमा होते हई कार्यक्रम शुरु हुआ।
पहले कोयल ने आकर एक बहुत खूबसूरत गाना गाया। फिर नागों ने आकर एक नाटक प्रस्तुत किया। आखिर में रामू मोर की बारी आई।
रामू ने मंच पर आकर अपने रंगबिरंगे पंखों को फैलाकर कहा कि आप लोग तो अच्छी तरह से जानते हैं कि बारिश होने पर ही मैं अच्छी तरह से नाच सकता हूँ। उसकी यह बात सुनकर बारिश के भगवान यानि कि इंद्र ने यह सोचा कि रामू मोर कहता है कि वह बारिश के समय बहुत अच्छा नाचता है और मैं तो उसका नाच देखना चाहता हूँ तो मैं रामू मोर के लिए बारिश करता हूँ ताकि वह नाचे और मैं ही नहीं सभी उसका नाच देख सकें । इस प्रकार सोचने के बाद ही इन्द्र की इच्छानुसार बारिश होने लगी।
बारिश के होते ही सब जानवर बहुत खुश हो गए और रामू के नाच को देखने का उनका इन्तज़ार खत्म हुआ। पर रामू ने उन सबसे कहा," अरे, यह मंच यानि कि आँगन तो टेढ़ा है और मुझ जैसे महान नर्तक के लिए यह मंच उपयुक्त नहीं है।" यह कहकर राम मंच छोड़कर चला गया।
सब जानवर उसके इस व्यवहार से चकित हो गए पर एक बुद्धिमान उल्लू को समझ में आ गया कि रामू मोर को नाचना नहीं आता इसलिए वह मंच अथवा आँगन को टेढ़ा कह रहा है। इसलिए उसने खड़े होकर सब जानवरों से कहा ,"नाच न जाने , आँगन टेढ़ा"। सभी जानवरों को भी उल्लू की बात समझ में आ गई कि कोई भी काम न आने पर हम सब के लिए आसान है कि हम दूसरे को दोष दे देते हैं यानि कि नाच न जाने, आँगन टेढ़ा।
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