Subhadra kumari chauhan upreskha poem meaning in hindi
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कविता : उपेक्षा
कवि : सुभद्रा कुमारी चौहान
इस तरह उपेक्षा मेरी,
क्यों करते हो मतवाले!
आशा के कितने अंकुर,
मैंने हैं उर में पाले।।
प्रस्तुत पंक्तियों में कवियित्री सुभद्रा
कुमारी चौहान बतला रही है कि ,
है मतवाले मुझे नजर अंदाज़ क्यों
कर रहे हो ? मैंने तो तुम्हारे प्रति
अपने हृदय में न जाने कितने
अरमान/ उम्मीद पाल रखे है ।
अतः मेरे हृदय में , आशा की,
उम्मीद की अंकुर विराजमान है ।
विश्वास-वारि से उनको,
मैंने है सींच बढ़ाए।
निर्मल निकुंज में मन के,
रहती हूँ सदा छिपाए।।
मैंने उसके प्रति उम्मीद को अत्यंत
विश्वास के साथ सिंचाई किया है ।
इसी को मैंने अपने हृदय रूपी
निकुंज अर्थात् वन - वाटिका में
सदा के लिए छिपाए रखा है ।
मेरी साँसों की लू से
कुछ आँच न उनमें आए।
मेरे अंतर की ज्वाला
उनको न कभी झुलसाए।।
यहां कवियित्री कहती है कि ,
मेरे जो सांसों की लू है और
मेरे अंदर पल रही ज्वाला से,
मेरी यह उम्मीद को, विश्वास
को कोई कष्ट न पहुंचे ।
कितने प्रयत्न से उनको,
मैं हृदय-नीड़ में अपने
बढ़ते लख खुश होती थी,
देखा करती थी सपने।।
यहां कवियित्री कहती है कि ,
मैंने बहुत प्रयत्न से उनको
अपने हृदय में बसा रखा है ।
जब भी मैं उसका स्वप्न देखती
हूं , तो मुझे सुख की प्राप्ति
होती है ।
इस भाँति उपेक्षा मेरी
करके मेरी अवहेला
तुमने आशा की कलियाँ
मसलीं खिलने की बेला।।
यहां कवियित्री कह रही है कि ,
मेरी उपेक्षा अर्थात् मुझे नजर -
अंदाज़ करके , मेरे मन में आशा
( उम्मीद ) रूपी कलि को ऐसे
वक्त में आपने मसला है , जब
वह खिलने के कागार पर थी ।