Hindi, asked by shreyd9213, 4 months ago

Sudama charit class 8 book vasant...... I want full charit in hindi.... Can you please??

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Answered by anjaligupta8c
0

Answer:

no...............................

Answered by krishnaspurthiveluri
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Answer:

सुदामा चरित

नरोत्तमदास

सीस पगा न झँगा तन में, प्रभु! जाने को आहि बसे केहि ग्रामा।

धोती फटी-सी लटी दुपटी, अरु पाँय उपानह ओ नहिं सामा॥

द्वार खड़ो द्विज दुर्बल एक, रह्यो चकिसों बसुधा अभिरामा।

पूछत दीनदयाल को धाम, बतावत आपनो नाम सुदामा॥

ये पद उस प्रसिद्ध प्रसंग का चित्रण करते हैं जब सुदामा और कृष्ण का मिलना होता है। दोनों बचपन के मित्र होते हैं। वयस्क होने पर कृष्ण राजा बन जाते हैं लेकिन सुदामा निर्धन ही रहते हैं। अपनी पत्नी के कहने पर सुदामा कुछ मदद की उम्मीद से कृष्ण से मिलने जाते हैं।

कृष्ण का द्वारपाल आकर बताता है कि एक व्यक्ति जिसके सिर पर न तो पगड़ी है और ना ही जिसके पाँव में जूते हैं, उसने फटी सी धोती पहनी है और बड़ा ही दुर्बल लगता है। वह चकित होकर द्वारका के वैभव को निहार रहा है और अपका पता पूछ रहा है। वह अपना नाम सुदामा बता रहा है।

ऐसे बेहाल बिवाइन सों, पग कंटक जाल लगे पुनि जोए।

हाय! महादुख पायो सखा, तुम आए इतै न कितै दिन खोए॥

देखि सुदामा की दीन दसा, करुना करिकै करुनानिधि रोए।

पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सों पग धोए॥

कृष्ण तुरंत जाकर सुदामा को लिवाने पहुँच जाते हैं। उनके पैरों की बिवाई और उनपर काँटों के निशान देखकर कृष्ण कहते हैं कि हे मित्र तुमने बहुत कष्ट में दिन बिताए हैं। इतने दिनों में तुम मुझसे मिलने क्यों नहीं आए? सुदामा की खराब हालत देखकर कृष्ण बहुत रोये। कृष्ण इतना रोये कि सुदामा के पैर पखारने के लिए परात में जो पानी था उसे छुआ तक नहीं, और सुदामा के पैर कृष्ण के आँसुओं से ही धुल गये।

कछु भाभी हमको दियो, सो तुम काहे न देत।

चाँपि पोटरी काँख में, रहे कहो केहि हेतु॥

आगे चना गुरुमातु दए ते, लए तुम चाबि हमें नहिं दीने।

स्याम कह्यो मुसकाय सुदामा सों, "चोरी की बान में हौ जू प्रवीने।।

पोटरि काँख में चाँपि रहे तुम, खोलत नाहिं सुधा रस भीने।

पाछिलि बानि अजौ न तजो तुम, तैसई भाभी के तंदुल कीन्हे॥"

सुदामा के स्वागत सत्कार के बाद कृष्ण उनसे हँसी मजाक करने लगे। कृष्ण ने कहा कि लगता है भाभी ने मेरे लिये कोई उपहार भेजा है। उसे तुम अपनी बगल में दबाए क्यों हो, मुझे देते क्यों नहीं? तुम अभी भी अपनी हरकतों से बाज नहीं आओगे। बचपन में जब गुरुमाता हमारे लिये चने देती थी तो सारा तुम हड़प जाते थे। उसी तरह से आज भी तुम भाभी के दिये हुए चिवड़े को मुझसे छुपा रहे हो।

वह पुलकनि, वह उठि मिलनि, वह आदर की बात।

वह पठवनि गोपाल की, कछू न जानी जात॥

कहा भयो जो अब भयो, हरि को राज समाज।

हौं आवत नाहीं हुतौ, वाहि पठ्यो ठेलि।।

घर घर कर ओड़त फिरे, तनक दही के काज।

अब कहिहौं समुझाय कै, बहु धन धरौ सकेलि॥

सुदामा फिर अपने घर की ओर लौट चलते हैं। जिस उम्मीद से वे कृष्ण से मिलने गये थे, उसका कुछ भी नहीं हुआ। कृष्ण के पास से वे खाली हाथ लौट रहे थे। लौटते समय सुदामा थोड़े खिन्न भी थे और सोच रहे थे कि कृष्ण को समझना मुश्किल है। एक तरफ तो उसने इतना सम्मान दिया और दूसरी ओर मुझे खाली हाथ लौटा दिया। मैं तो जाना भी नहीं चाहता था, लेकिन पत्नी ने मुझे जबरदस्ती कृष्ण से मिलने भेज दिया था। जो अपने बचपन में थोड़े से मक्खन के लिए घर-घर भटकता था उससे कोई उम्मीद करना ही बेकार है।

वैसोई राज-समाज बने, गज, बाजि घने मन संभ्रम छायो।

कैधों पर्यो कहुँ मारग भूलि, कि फैरि कै मैं अब द्वारका आयो॥

भौन बिलोकिबे को मन लोचत, अब सोचत ही सब गाँव मझायो।

पूँछत पाड़े फिरे सब सों पर, झोपरी को कहुँ खोज न पायो॥

जब सुदामा अपने गाँव पहुँचे तो वहाँ का दृश्य पूरी तरह से बदल चुका था। अपने सामने आलीशान महल, हाथी घोड़े, बाजे गाजे, आदि देखकर सुदामा को लगा कि वे रास्ता भूलकर फिर से द्वारका पहुँच गये हैं। थोड़ा ध्यान से देखने पर सुदामा को समझ में आया कि वे अपने गाँव में ही हैं। वे लोगों से पूछ रहे थे लेकिन अपनी झोपड़ी को खोज नहीं पा रहे थे।

कै वह टूटी सी छानी हती, कहँ कंचन के अब धाम सुहावत।

कै पग में पनही न हती, कहँ लै गजराजहु ठाढ़े महावत॥

भूमि कठोर पै रात कटै, कहँ कोमल सेज पै नींद न आवत।

के जुरतो नहिं कोदो सवाँ, प्रभु के परताप ते दाख न भावत॥

जब सुदामा को सारी बात समझ में आ गई तो वे कृष्ण के गुणगान करने लगे। सुदामा सोचने लगे कि कमाल हो गया। जहाँ सर के ऊपर छत नहीं थी वहाँ अब सोने का महल शोभा दे रहा है। जिसके पैरों में जूते नहीं हुआ करते थे उसके आगे हाथी लिये हुए महावत खड़ा है। जिसे कठोर जमीन पर सोना पड़ता था उसके लिए फूलों से कोमल सेज सजा है। प्रभु की लीला अपरंपार है।

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