Sukhi Raj Kumar khani kya hai
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नगर के सबसे ऊँचे स्थान पर, एक लम्बे स्तंभ पर खड़ा था सुखी राजकुमार का बुत । ऊपर से नीचे तक उस पर खरे सोने की बारीक पर्त चढ़ाई गई थी, आँखों के स्थान पर थीं दो दमकती हुई नीलमणियाँ , और एक बहुत बड़ा लाल माणिक्य चमचमाता था उसकी तलवार की मूठ पर ।
वास्तव में, वह बहुत प्रशंसित था, “वह बात-सूचक जैसा सुन्दर है” एक नगर-पार्षद ने कहा जो अपने कलात्मक अभिरुचि सम्पन्न होने की प्रतिष्ठा अर्जित करने की इच्छा रखता था, ‘‘ बस अधिक लाभ का नहीं है,’’ डरते हुए कि कहीं लोग उसे अव्यावहारिक ही न समझ लें , उसने बात को आगे बढ़ाया, भले ही वह अव्यावहारिक था नहीं।
‘तुम सुखी राजकुमार जैसे क्यों नहीं हो सकते ?’ एक समझदार माँ ने अपने नन्हे बालक से पूछा जो चाँद माँग रहा था । “ सुखी राजकुमार कभी कुछ नहीं माँगता।" “मुझे ख़ुशी है कि दुनिया में एक आदमी तो ऐसा है जो क़ाफ़ी ख़ुश है,” एक निराश व्यक्ति अद्भुत बुत को ताकते हुए बुदबुदाया।
“वह बिल्कुल किसी देवदूत-सा लगता है!” चमकदार सिन्दूरी चोगों पर उजले सफ़ेद एप्रन पहने हुए, चर्च से लौटते हुए चैरिटी स्कूल के बच्चों ने कहा ।
“ तुम्हें कैसे जानते हो ?” गणित अध्यापक ने पूछा, “तुमने तो कभी देवदूत को नहीं देखा,” “हाँ, हमने देखा है, अपने सपनों में,”बच्चों का जवाब था, और गणित अध्यापक की भृकुटी तन गई और वह बहुत कठोर दिखाई देने लगा क्योंकि उसे बच्चों का सपने देखना पसन्द नहीं था।
वास्तव में, वह बहुत प्रशंसित था, “वह बात-सूचक जैसा सुन्दर है” एक नगर-पार्षद ने कहा जो अपने कलात्मक अभिरुचि सम्पन्न होने की प्रतिष्ठा अर्जित करने की इच्छा रखता था, ‘‘ बस अधिक लाभ का नहीं है,’’ डरते हुए कि कहीं लोग उसे अव्यावहारिक ही न समझ लें , उसने बात को आगे बढ़ाया, भले ही वह अव्यावहारिक था नहीं।
‘तुम सुखी राजकुमार जैसे क्यों नहीं हो सकते ?’ एक समझदार माँ ने अपने नन्हे बालक से पूछा जो चाँद माँग रहा था । “ सुखी राजकुमार कभी कुछ नहीं माँगता।" “मुझे ख़ुशी है कि दुनिया में एक आदमी तो ऐसा है जो क़ाफ़ी ख़ुश है,” एक निराश व्यक्ति अद्भुत बुत को ताकते हुए बुदबुदाया।
“वह बिल्कुल किसी देवदूत-सा लगता है!” चमकदार सिन्दूरी चोगों पर उजले सफ़ेद एप्रन पहने हुए, चर्च से लौटते हुए चैरिटी स्कूल के बच्चों ने कहा ।
“ तुम्हें कैसे जानते हो ?” गणित अध्यापक ने पूछा, “तुमने तो कभी देवदूत को नहीं देखा,” “हाँ, हमने देखा है, अपने सपनों में,”बच्चों का जवाब था, और गणित अध्यापक की भृकुटी तन गई और वह बहुत कठोर दिखाई देने लगा क्योंकि उसे बच्चों का सपने देखना पसन्द नहीं था।
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