suktiya in sanskrit
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सूक्तयः (सूक्तियां) Sanskrit Proverbs
मातृ देवो भव। पितृ देवो भव।
आचार्य देवो भव। अतिथि देवो भव।
माता, पिता, आचार्य और अतिथि देवताओं के रूप हैं।
विद्या ददाति विनयम्
विधा विनामर्ता देती है
परोपकारार्थमिंद शरीरं
We are personified for the very purpose to help other beings
लोभः पापस्य कारणं
लालच (लोभ) पाप का कारण है।
हितं मनोहारी च दुर्लभं वचः
भलाई के और मन को अच्छे लगनेवाले वचन कठिनाई से प्राप्त होते हैं।
संसर्गजा दोषगुणाः भवन्ति
संगती से ही दोष और गुण होते हैं।
श्रद्धावन् लभेत ज्ञान
श्रद्धा रखने वालों को ज्ञान प्राप्त होता है।
सहसा विंदधीत न क्रियां
अचानक से बिना सोचे समझे कोई काम नहीं करना चाहिए।
धर्मो रक्षीत रक्षितः
धर्म का पालन करने वालों की धर्म ही रक्षा करता है।
संस्कृति संस्कृताश्रिता
कृषितोनास्ति दुर्भिक्षं
Hard work is never wasted
दंडं दश गुणम् भवॆत्
Punishment has got 10 credits to its name
जननी जन्मभुमिस्छ स्वर्गादपि गरीयसि
Mother and Motherland are like heaven
न अभिशेको न संस्कारः सिम्हस्य कृयते वने
विक्रमार्जितसत्वस्य स्वयमेव मृगेन्द्रता
Similarly, in our own life, when working towards some goal, we should not merely “demand” it. Rather we should try to “earn” the goal through our own good deeds and efforts. It is through our own hard work that we achieve
गतशोकं न कुर्वीत भविष्यं नैव चिन्तयेत
वर्तमानेशु कार्येशु वर्तयन्ति विचक्शनः
There is no point in worrying about past nor about future. A smart and intelligent person thinks and works only about present
विनाश काले विपरीत बुद्धि
During ones ruin his wisdom wouldn’t pay of
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