Summary of चिट्ठियों की अनूठी दूनिया by अरविंद कुमार सिंह
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मुरैना। 25 अक्टूबर 2013। जिसका पाठ पढते हो वही लेखक एक दिन आमने-सामने हो और उन सवालों के बीच से शिक्षक हट जाये जो बच्चे सीधे पाठ के लेखक से करना चाहते हों तो है ना एक अचरज, रोमांच और आनंददायक क्षण। ऐसा ही एक दिन बीता केन्द्रीय विद्यालय के कक्षा 8 वीं व 9 वीं के विद्यार्थियों का। तारीख 25 अक्टूबर को मैं और मेरे विद्यार्थी बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहे थे ‘चिट्ठियों की अनूठी दुनिया’ के लेखक श्री अरविंद कुमार सिंह जी की। वे आये। समय पर आये। ठीक 1 बजे पूरी आत्मीयता, उदारता और सरलता के साथ राज्यसभा चैनल की चौपाल यूनिट के अपने सहयोगियों के साथ केन्द्रीय विद्यालय मुरैना प्रांगण में। हमारी नवाचारी कक्षा गतिविधि के लिए 8 वीं की कुमारी दुर्गेश और उसके साथियों के आमंत्रण पर आये वे। बच्चे ऐसे आंखे फाडकर इस क्षण के साक्षी बनने की कोशिश कर रहे थे जैसे उनकी किताब बसंत भाग दो साकार होकर उनसे बतिया रही हो। और लीजिये शुरू हुआ सवालों का सिलसिला, किसी ने उन्हें अपना आदर्श मानकर उनसे उनका आदर्श पूछ डाला तो किसी ने जानना चाहा कि चिट्ठियों पर ही उन्होने 10 साल तक इतनी खोजबीन करने की क्यों ठानी। कोई पूछ रहा था उनके खट्ठे मीठे अनुभव तो कोई इस बात को लेकर हैरान था कि किन किन संस्थाओं से जुडकर वे अपना बहुआयामी व्यक्ितत्व संभाले हुए हुए हैं मसलन पत्रकारिता, लेखन, शोध और देश विदेश का खूब भ्रमण।
अरविंद जी ने चिट्ठी पत्री का इतिहास तो बताया ही, सवालों की झडी लगाने वाले सभी बच्चों की भूरि भूरि प्रशंसा कर उनका उत्साह भी बढाया। आखिर बच्चे तो ठाने बैठे थे कि अरविंद जी को अपने हाथों से बनी एक चिट्ठी देंगे और उनसे भी एक स्नेह संदेश लेंगे। दोनों ही सपनों को साकार देखना एक नया इतिहास दर्ज होने जैसा था।
अरविंद जी ने चिट्ठी पत्री का इतिहास तो बताया ही, सवालों की झडी लगाने वाले सभी बच्चों की भूरि भूरि प्रशंसा कर उनका उत्साह भी बढाया। आखिर बच्चे तो ठाने बैठे थे कि अरविंद जी को अपने हाथों से बनी एक चिट्ठी देंगे और उनसे भी एक स्नेह संदेश लेंगे। दोनों ही सपनों को साकार देखना एक नया इतिहास दर्ज होने जैसा था।
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