Hindi, asked by goodra4919, 1 year ago

Summary of chapter 4 Kritika class 9
Give me summary of chapter 4 of Kritika

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Answered by tiger009
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कक्षा 9 की हिंदी पाठ्य-पुस्तक कृतिका का अध्याय 4 "माटी वाली " है,इस पाठ का सारांश:

टिहरी शहर का हर आदमी, मकान मालिक,किरायेदार, स्त्री-पुरुष, बच्चे-बूढ़े सभी जानते हैं उसेIपूरे शहर को अकेली वही है जो लाल मिट्टी दे पाती है,उसका कोई प्रतिद्वंदी नहीं हैIबगैर उसके तो ऐसा लगता है जैसे टिहरी शहर में चूल्हा जलना ही बंद हो जाएगा, भोजन के बाद समस्या  उत्पन्न हो जायेगी क्योंकि पूरे शहर में चौके-चूल्हे की लिपाई से लेकर कमरों तथा मकानों की लिपाई-पुताई के लिए लाल मिट्टी वही देती हैIमकान-मालिक के साथ-साथ नए किरायेदार भी अपने आँगन में "माटीवाली" को देख उसके ग्राहक बन जाते हैं क्योंकि वह माटी वाली हरिजन बुढ़िया घर-घर जाकर मिट्टी देने का काम करती हैI

                            शहर वासी सिर्फ उसे ही नहीं बल्कि उसके बिना ढक्कन वाले कंटर (कनस्तर) तक को पहचानते हैं जो माटी वाली के सिर पर रखे एक डिल्ले पर टिका रहता हैIघर में उसका बूढ़ा और लाचार रोगी पति है जिसके खाने की फिक्र ही माटीवाली की एकमात्र तपस्या हैIउस दिन भी वह छोटी बच्ची  कामिनी के बुलाने पर उसके  घर गई तो मालकिन के कहने पर मिट्टी एक कोने में उंडेल दीIमालकिन ने उसे चाय के साथ दो रोटी खाने को दी तो उसने एक रोटी छुपाकर डिल्ले में अपने बुड्ढे के लिए रख लीIबातों-बातों में मालकिन कहती है कि इस उम्र में इस शहर को छोड़कर हम कहाँ जायेंगे?माटी वाली कहती है कि ज़मीन-जायदाद वाले तो कहीं भी रह लेंगे परन्तु मेरा क्या होगा,मेरी तरफ तो कोई देखने वाला भी नहींIसामने वाले घर से उसे दो और रोटियां मिलती हैं जिसे वो रख लेती है और सोचती है कि एक या डेढ़ रोटी बुड्ढा खा लेगा,बची हुई कुल डेढ़ रोटियां वह खा लेगीIरास्ते में वह सोचती जाती है कि आज वह अपने बुड्ढे को रुखी रोटी नहीं खिलाएगी, जाते ही प्याज़ की सब्जी बना लेगी और उसेसब्जी के साथ रोटी खिलायेगी मगर जब वह घर पहुँचती है तो उसका पति अपनी माटी छोड़कर जा चुका होता हैI

           टिहरी की दो सुरंगों को बंद कर दिया गया है,शहर में पानी भर रहा है,सरकार लोगों को रहने के लिए दूसरी जगह ज़मीन दे रही हैIलोग दूसरी जगह जा रहे हैं,पुनर्वास के साहब ने माटी वाले से ज़मीन के कागज़ घर का प्रमाण-पत्र तहसील से लाने को कहा तो बुढ़िया ना कहा

"मेरी ज़िन्दगी तो लोगों के घरों में मिट्टी देते गुज़र गईI"


"माटी कहाँ से लाती हो?"

"माटाखान से "

"माटाखान तेरे नाम है?"

"माटाखान तो मेरी रोज़ी है साहब"

"हमें ज़मीन के कागज़ चाहिए रोज़ी के नहीं"

"बाँध बनने के बाद मैं क्या खाऊँगी?"

"इस बात का फैसला तो हम नहीं कर सकतेIयह बात तो तुझे खुद ही तय करनी होगीI"

                 शहर में पानी भर रहा है,घर तो घर,श्मशान घाट तक डूब गए हैं,लोग घर छोड़कर जा रहे हैंIअपनी झोंपड़ी के बाहर बैठी माटीवाली गाँव के हर आने-जाने वाले आदमी से बस एक ही बात कहती है- "ग़रीब आदमी का श्मशान नहीं डूबना चाहिएI"


AmalRoy: thank you tiger 009
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