summary of जहाँ चाह, वहाँ राह lesson no 7 std 7th please answer it
Answers
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अगर इंसान चाहे तो उसके लिए कुछ भी मुश्किल नहीं है। अब राँची में रहने वाली 15 वर्षीय ममता कुमारी को ही ले लीजिए। इस बालिका का परिवार आर्थिक रूप से अधिक सबल नहीं है। पर ममता की पढ़ाई की चाहत कहें या कुछ कर दिखाने का जज्बा, पढ़ाई करने और अपने परिवार की जिम्मेदारी निभाने के लिए वह अखबार बेचकर अपनी जीविका चलाती है।
पिछले पाँच सालो से ममता राँची के चुटिया क्षेत्र में अखबार बेचकर अपने परिवार के पालन-पोषण के साथ-साथ विद्यालय का खर्च निकालती है। ममता तब सात साल की थी, जब एक हादसे में उसके पिता अपाहिज हो गए। अपनी बड़ी बहन के साथ मिलकर ममता रोजी-रोटी की तलाश में जुट गई।
अब अखबार बेचकर ममता अपने परिवार का पालन-पोषण तो करती ही है, साथ में वह अपनी पढ़ाई का भी सारा खर्च वहन करती है। ममता के अनुसार, मैं सात साल की थी, जब मेरे पिता एक हादसे में मेरे पिता के पैर चले गए। मेरी बहन को अखबार बेचने में असुविधा होती थी, इसलिए मैंने इस कार्य को अपने हाथों में ले लिया। मुझे अखबार बेचते वक्त किसी तरह की शर्म नहीं आती है।
वहीं ममता के पिता मदन प्रसाद कहते हैं कि मैं मानता हूँ कि अगर वह लड़की है, तो भी वह इस तरह के कार्य कर सकती है। मैं चाहता हूँ कि ममता धन और कड़ी मेहनत से धनार्जन की कीमत समझे। मुझे मेरी बेटी पर गर्व है।
ममता की लगन और कड़ी मेहनत को देखते हुए, उसके विद्यालय ने उसकी फीस माफ कर दी है। ममता बड़े होकर डॉक्टर बनना चाहती है। ममता का यह साहस सिर्फ अपने क्षेत्र के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे देश के गौरवशाली है।
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Answer:
Hi mate here is ur query.
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अगर इंसान चाहे तो उसके लिए कुछ भी मुश्किल नहीं है। अब राँची में रहने वाली 15 वर्षीय ममता कुमारी को ही ले लीजिए। इस बालिका का परिवार आर्थिक रूप से अधिक सबल नहीं है। पर ममता की पढ़ाई की चाहत कहें या कुछ कर दिखाने का जज्बा, पढ़ाई करने और अपने परिवार की जिम्मेदारी निभाने के लिए वह अखबार बेचकर अपनी जीविका चलाती है।
पिछले पाँच सालो से ममता राँची के चुटिया क्षेत्र में अखबार बेचकर अपने परिवार के पालन-पोषण के साथ-साथ विद्यालय का खर्च निकालती है। ममता तब सात साल की थी, जब एक हादसे में उसके पिता अपाहिज हो गए। अपनी बड़ी बहन के साथ मिलकर ममता रोजी-रोटी की तलाश में जुट गई।
अब अखबार बेचकर ममता अपने परिवार का पालन-पोषण तो करती ही है, साथ में वह अपनी पढ़ाई का भी सारा खर्च वहन करती है। ममता के अनुसार, मैं सात साल की थी, जब मेरे पिता एक हादसे में मेरे पिता के पैर चले गए। मेरी बहन को अखबार बेचने में असुविधा होती थी, इसलिए मैंने इस कार्य को अपने हाथों में ले लिया। मुझे अखबार बेचते वक्त किसी तरह की शर्म नहीं आती है।
वहीं ममता के पिता मदन प्रसाद कहते हैं कि मैं मानता हूँ कि अगर वह लड़की है, तो भी वह इस तरह के कार्य कर सकती है। मैं चाहता हूँ कि ममता धन और कड़ी मेहनत से धनार्जन की कीमत समझे। मुझे मेरी बेटी पर गर्व है।
ममता की लगन और कड़ी मेहनत को देखते हुए, उसके विद्यालय ने उसकी फीस माफ कर दी है। ममता बड़े होकर डॉक्टर बनना चाहती है। ममता का यह साहस सिर्फ अपने क्षेत्र के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे देश के गौरवशाली है।
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