summary of Jhanavi written by Jainendra Kumar
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“खेल” नामक कहानी को प्रसिद्ध कथाकार ‘जैनेंद्र कुमार’ द्वारा लिखा गया है।
‘जैनेन्द्र कुमार’ की “खेल” कहानी में जैनेन्द्र जी द्वारा बालमनोविज्ञान का सफल चित्रण किया है। बाल कहालियों में जो भाव और तत्व पाये जाते हैं जैसे कि उत्सुकता, स्पर्धा, द्वंद्व, अनुकरण, बालहठ, मासूमियत आदि वो सब इस कहानी में पाये जाते हैं।
मनोवैज्ञानिक तत्वों के प्रस्तुतीकरण के लिए जैनेन्द्रजी ने अपनी कहानियों में पात्रों की मनोदशा को स्पष्ट करने के लिए प्रवाहपूर्ण भाषा को अपनाया है।
कहानी एक बालक और एक बालिका के विषय में है। बालक नौ बर्ष का है और बालिका सात वर्ष की है। कहानी में बालिका सुरबाला व बालक मनोहर की बाल-क्रीडा की बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति की गयी है।
दोनों का आपस में लडना-झगडना व कुछ समय मनाने में लगाना बाद में मान जाना बालकों में जो स्वाभाविक आदतें होती है उसे बहुत ही रोचकता से दर्शाया है। जब वे दोनों साथ होते हैं तो सब कुछ भूल जाते हैं और अपनी क्रीडा में लगे रहते हैं। बालक और बालिका अपने को और सारे विश्व को भूल, गंगातट के बालू और पानी को अपना एक मात्र आत्मीय बना, उनसे खिलवाड कर रहे थे।
दोनों गंगा के तट पर खेल रहे हैं। सुरबाला जब अपना भाड़ बड़ी मुश्किल व मेहनत से तैयार करती है तो फिर वह उस मिट्टी से अपने पैर को इस प्रकार धीरे-धीरे हटाती है कि लगता है कि वह जो एक बच्ची है उसमें नारीत्व और मातृत्व का रूप दिखाई देता है। माँ जिस तरह सावधानी के साथ अपने नवजात शिशु को बिछौने पर लेटाती है, वैसे ही सुरबाला ने अपना पैर धीरे-धीरे भाड़ के नीचे से धीरे-धीरे अपना पैर खींचती है।
जब मनोहर द्वारा सुर्रो अर्थात सुरबाला का भाड़ तोड़ दिया जाता है तब बाल स्वभाव के कारण सुर्रो रूठ जाती है, लेखक सुर्रो को मनोहर द्वारा यह समझाने का प्रयास करते हैं, कि चाहे मिट्टी का भाड़ हो, शरीर या यह संसार एक दिन समाप्त होना ही है हमें उससे शिक्षा लेनी चाहिए। यह संसार क्षणभंगुर है। इसमें दुःख क्या और सुख क्या। जो जिससे बनाया है वह उसी में लय हो जाता है। इसमें शोक और उद्वेग की क्या बात है। यह संसार जल का बुदबुदा है, फुटकर किसी रोज जल में ही मिल जाएगा।
मनोहर फिर भी सुरबाला को मनाने के लिये खुद भाड़ बनाता है तो फिर सुरबाला उसे तोड़ देती है और फिर दोनों जोर से हंसते हैं।
मनोहर द्वारा सुर्रो का व सुर्रो द्वारा मनोहर का भाड़ तोडना व अन्त में जोर-जोर से हँसना उनकी बाल सुलभता को दर्शाता है व इस हँसी का साक्षी सूर्य व गंगातट बनता है।
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