summary of kaki by siyaramsharan gupth
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पतंग को देकने के बाद उसके मन में ख्याल आता हैं की वो पतंग पर अपनी काकी के नाम लिखकर उड़ाना चाहता है और उसे राम के पास भेजना चाहता हैं| इस लिए वो अपने काका के पास जाकर पतंग मांगता है| दुखी विश्वेश्वर श्यामू को वचन देकर चला जाता है| इंतज़ार करने के बाद भी विश्वेश्वर पतंग ने मंगवाता| इस लिए श्यामू काका के जेब सो चोरी करके पतंग करीदता है| भोला के कहने से वो रस्सी के लिए फिर से चोरी करता है रस्सियां खरींडने के लिए| जब पतंग को उड़ने का भन्दोबस्त हो रहा है तो काका आकर भोला से पूछते हैं की किसने पैसे चुरिये करके| भोला सच्च बताता हैं| काका श्यामू को दो चमाट मरते हैं| जब भोला बताता है की वो पतंग के पास भेजने वाले थे तो काका फटी हुयी पतंग देखते है लिख हुआ शब्द 'काकी'|
बच्चे चंचल स्वाभाव के होते हैं| वो सभी को प्यार करते हैं| उनके प्यार करने का तरीका थोड़ा अलग होता हैं| बड़े बिना पूरा परिस्तिति को जाने कुछ भी कदम उठाते हैं| यहाँ विश्वेस्वर ने भी ऐसा ही किया| श्यामू के भोलपन और मंतव्य को जाने बिना उस पर हाथ उठाया| इस कहानी में सियारामशरण गुपत बच्चों के चंचल स्वभाव को दर्शाया हैं|
उस दिन बड़े सवेरे जब श्यामू की नींद खुली तब उसने देखा घर भर में कोहराम मचा हुआ है. उसकी काकी उमा, एक कम्बल पर नीचे से ऊपर तक एक कपड़ा ओढ़े हुए भूमि-शयन कर रही हैं. और घर के सब लोग उसे घेरकर बड़े करुण स्वर में विलाप कर रहे हैं. लोग जब उमा को श्मशान ले जाने के लिए उठाने लगे तब श्यामू ने बड़ा उपद्रव मचाया.
लोगों के हाथों से छूटकर वह उमा के ऊपर जा गिरा. बोला, “काकी सो रही हैं. उन्हें इस तरह उठाकर कहां लिये जा रहे हो? मैं न जाने दूं.” लोग बड़ी कठिनता से उसे हटा पाए. काकी के अग्नि-संस्कार में भी वह न जा सका. एक दासी राम-राम करके उसे घर पर ही संभाले रही.
यद्दपि बुद्धिमान गुरुजनों ने उन्हें विश्वास दिलाया कि उसकी काकी उसके मामा के यहां गई हैं. परन्तु असत्य के आवरण में सत्य बहुत समय तक छिपा न रह सका. आस-पास के अन्य अबोध बालकों के मुंह से ही वह प्रकट हो गया. यह बात उससे छिपी न रह सकी कि काकी और कहीं नहीं, ऊपर राम के यहां गई हैं.
एक दिन उसने ऊपर एक पतंग उड़ती देखा. न जाने क्या सोचकर उसका हृदय एकदम खिल उठा. विश्वेश्वर के पास जाकर बोला “काका मुझे पतंग मंगा दो.” पत्नी की मृत्यु के बाद से विश्वेश्वर अन्यमनस्क रहा करते थे. “अच्छा, मंगा दूंगा.” कहकर वे उदास भाव से और कहीं चले गये.
श्यामू पतंग के लिए बहुत उत्कंठित था. वह अपनी इच्छा किसी तरह रोक न सका. एक जगह खूंटी पर विश्वेश्वर का कोट टंगा हुआ था. इधर-उधर देखकर उसने उसके पास स्टूल सरकाकर रखा. और ऊपर चढ़कर कोट की जेबें टटोली. उनमें से एक चवन्नी का आविष्कार करके तुरन्त वहां से भाग गया.
सुखिया दासी का लड़का भोला श्यामू का समवयस्क साथी था. श्यामू ने उसे चवन्नी देकर कहा, “अपनी जीजी से कहकर गुपचुप एक पतंग और डोर मंगा दो. देखो खूब अकेले में लाना. कोई जान न पावे.”