Summary of mastak nahi jhukaenge by ramdhari singh dinkar
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मस्तक नहीं झुकाएँगे कविता की व्याख्या :
मस्तक नहीं झुकाएँगे कविता रामधारी सिंह दिनकर जी द्वारा लिखी गई है |
कविता में कवि ने भारत के वीर सपूतों को संबोधित करते हुए की है | कवि ने युवा पीढ़ी का गुणगान करते हुए कहा है कि आज का नवयुवक गुणों में अपने पूर्वजों से किसी भी भांति कम नहीं है | वह अपने देश की रक्षा के लिए मर मिटने को तैयार रहते है | कवि भारत के युवाओं की प्रशंसा करते हुए कहते है – हम भारत देश के ने युग की उपज है , हमारे अंदर नवीनता है | हम दिन के सूर्य की भांति उज्ज्वल और नविन प्रकाश की तरह है | हमारे कर्म ऐसे होने चाहिए कि भारत देश का नाम सम्पूर्ण विश्व में रोशन हो |
हमारा भारत देश आजाद हो गया है , हम अब किसी के गुलाम नहीं है | हमें किसी की इच्छाओं का पालन नहीं करना है | हम अपनी मर्जी के मालिक स्वयं है | हमें अपने देश की रक्षा करनी है | भारत के युवाओं की प्रशंसा करते हुए कहते है , अब हमारे अंदर वह क्षमता है , वह ताकत है कि अब हिमालय जैसे ऊँचे पहाड़ की भी रक्षा कर सकने सक्षम है | अपनी धरती माता की रक्षा के लिए हम सभी उख त्याग करने के लिए तैयार है |
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