Summary of mat baat insaan ko
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hello how are you bro fine and undine hahahhahahahah
Sweetyrathi:
What?
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मंदिर-मस्जिद-गिरजाघर ने
बाँट लिया भगवान को।
धरती बाँटी, सागर बाँटा
मत बाँटो इंसान को।।
अभी राह तो शुरू हुई है-
मंजिल बैठी दूर है।
उजियाला महलों में बंदी-
हर दीपक मजबूर है।।
मिला न सूरज का सँदेसा -
हर घाटी मैदान को।
धरती बाँटी, सागर बाँटा
मत बाँटो इसान को।।
अब भी हरी भरी धरती है-
ऊपर नील वितान है।
पर न प्यार हो तो जग सूना-
जलता रेगिस्तान है।।
अभी प्यार का जल देना है-
हर प्यासी चट्टान को।
धरती बाँटी, सागर बाँटा-
मत बाँटो इंसान को।।
साथ उठें सब तो पहरा हो-
सूरज का हर द्वार पर।
हर उदास आँगन का हक़ हो-
खिलती हुई बहार पर।।
रौंद न पाएगा फिर कोई-
मौसम की मुसकान को।
धरती बाँटी, सागर बाँटा
मत बाँटो इंसान को।।
बाँट लिया भगवान को।
धरती बाँटी, सागर बाँटा
मत बाँटो इंसान को।।
अभी राह तो शुरू हुई है-
मंजिल बैठी दूर है।
उजियाला महलों में बंदी-
हर दीपक मजबूर है।।
मिला न सूरज का सँदेसा -
हर घाटी मैदान को।
धरती बाँटी, सागर बाँटा
मत बाँटो इसान को।।
अब भी हरी भरी धरती है-
ऊपर नील वितान है।
पर न प्यार हो तो जग सूना-
जलता रेगिस्तान है।।
अभी प्यार का जल देना है-
हर प्यासी चट्टान को।
धरती बाँटी, सागर बाँटा-
मत बाँटो इंसान को।।
साथ उठें सब तो पहरा हो-
सूरज का हर द्वार पर।
हर उदास आँगन का हक़ हो-
खिलती हुई बहार पर।।
रौंद न पाएगा फिर कोई-
मौसम की मुसकान को।
धरती बाँटी, सागर बाँटा
मत बाँटो इंसान को।।
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