Summary of My childhood class 9 Explanation in Hindi book Beehive
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इस पाठ में, प्रो.ए.पी.जे. अब्दुल कलाम हमें अपने बचपन के बारे में बताते हैं । उनका जन्म रामेश्वरम् शहर में हुआ था । उनके पिता का नाम जैनुलाबद्दीन एवं उनकी माता का नाम आशियम्मा था। कलाम के पिता न तो शिक्षित थे और न ही अमीर । फिर भी वे अक्लमंद एवं दयालु थे । उनकी माता भी बहुत दयालु थी । बाहर के बहुत -से लोग प्रतिदिन उनके परिवार के साथ भोजन करते थे । अब्दुल कलाम के तीन भाई एवं एक बहन थी । वे रामेश्वरम् में मस्जिद वाली गली में अपने पुश्तैनी मकान में रहते थे । यह एक बड़ा पक्का मकान था । उनके पिता हर ऐश्वर्य से बचते थे। लेकिन घर में प्रतिदिन की अनावश्यकता की सब वस्तुएं थीं ।
अब्दुल कलाम तब आठ वर्ष के थे जब दूसरा विश्वयुद्ध छिड़ गया । अचानक इमली की गुठलियों की माँग बहुत बहुत बढ़ गई । वे इन बीजों को इकट्ठा करके बाज़ार में बेचते थे । उन्हें दिन भर इकट्ठी की गई गुठलियों के लिए एक आना (लगभग छह पैसे) मिलता था । उन दिनों में यह एक अच्छी राशि थी । उनका चचेरा भाई शमसद्दीन रामेश्वरम् में अखबार बाँटता था । उसे एक सहायक की आवश्यकता थी और उसने अब्दुल क्लाम को काम पर लगा लिया । कलाम को अभी तक गर्व की वह भावना याद है जो उन्होंने पहली बार स्वयं पैसा कमाने पर महसूस की थी ।
अब्दुल कलाम अपने माता-पिता से बहुत प्रभावित हुए थे । उन्होंने अपने पिता से ईमानदारी एवं आत्म -अनुशासन सीखा । उन्हें अच्छाई एवं दयालुता अपनी माता से विरासत में मिली । बचपन में उनके तीन घनिष्ठ मित्र थे । वे थे-रामानंद शास्त्री , अरविंदन और शिवप्रकाशन । ये सब लड़के रूढिवादी हिंदूब्राह्मण परिवारों से संबंध रखते थे । बच्चों के रूप में उन्होंने कभी आपस में धार्मिक अंतरों को महसूस नहीं किया । वार्षिक श्री सीता राम कल्याणम् समारोह के दौरान, कलाम का परिवार भगवान् की मूर्तियों ले जाने के लिए किश्तियों का इंतजाम करता था । सोते समय उनके पिता एवं दादी उन्हें रामायण की कहानियों सुनाया करते थे ।
एक बार जब अब्दुल कलाम पांचवीं कक्षा में थे तो कक्षा में एक नया अध्यापक आया । अब्दुल कलाम अपने घनिष्ठ मित्र रामानंद शास्त्री के साथ आगे की लाइन में बैठे हुए थे । नया अध्यापक एक मुसलमान लड़के का हिंदू पुजारी के लड़के के साथ बैठना सहन नहीं कर सका था । उसने अब्दुल कलाम को पिछले बैंच पर बैठने को कहा । अब्दुल कलाम और रामानंद शास्त्री दोनों उदास हो गए । बाद में शास्त्री के पिता ने अध्यापक को डाँटा और उसने अपनी गलती महसूस की ।
अबुल कलाम का विज्ञान अध्यापक शिवसुब्रामनिय अय्यर एक ऊँची जाति का ब्राह्मण था । मगर वह सामाजिक एवं धार्मिक बंधनों में विश्वास नहीं करता था । एक दिन उसने अब्दुल कलाम को अपने घर भोजन करने के लिए आमंत्रित किया । अय्यर की पत्नी बहुत रूढिवादी थी । उसने एक मुसलमान लड़के को अपनी रसोई में भोजन परोसने से इंकार कर दिया । मगर अय्यर ने अब्दुल कलाम को अपने हाथों से भोजन परोसा और भोजन करने उसके साथ बैठ गया। भोजन के बाद उनके अध्यापक ने उन्हें अगले सप्ताह भोजन के लिए फिर से जाने का निमंत्रण दिया । जब कलाम अगले सप्ताह अपने अध्यापक के घर गए तो उसकी पत्नी उन्हे रसोई में ले गई और उन्हें अपने हाथों से भोजन परोसा ।
तब दूसरा विश्व-युद्ध समाप्त हो गया था और भारत की आज़ादी नजदीक आ गई । सारा देश खुशी के वातावरण से भर गया । अब्दुल कलाम ने अपने पिता से रामनाथपुरम् में जाकर पढ़ने की अनुमति माँगी । उनके पिता ने सहर्ष उन्हें जाने की इजाजत दे दी ।