Summary of nobat khane me ibadat of hindi 0
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नौबतखाने में इबादत
Naubat Khane Me Ibadat
नौबतखाने में इबादत summary naubat khane mein ibadat short summary नौबतखाने में इबादत का सार - नौबतखाने में इबादत ,यतीन्द्र मिश्र जी द्वारा लिखी गयी प्रसिद्ध शहनाईवादक बिस्मिल्ला खाँ के जीवन पर आधारित है . उनका जन्म बिहार में सोन नदी के किनारे डुमराँव में हुआ . ननिहाल में नाना, मामा द्वारा शहनाई बजने के कारण वे बनारस में ६ वर्ष की उम्र में ही बालाजी मंदिर में शहनाई बजाने लगे . उनका वास्तविक नाम अमिरुद्दीन था . रस्ते में बालाजी मंदिर जाते समय रसूलनबायीं और बतुलनबायीं का घर पड़ता था . वे बहने सुबह - सुबह टप्पे ,दादरा आदि गाती थी .बचपन में बिस्मिल्ला खाँ को इन्ही से संगीत की प्रेरणा मिली . वे जीवन भर खुदा से यही दुवा माँगते रहे - सच्चा सुर. उनके जीवन में मुहर्रम का त्यौहार जुड़ा हुआ था .पूरे दस दिन वे शहनाई नहीं बजाते थे .आठवें दिन दालमंडी से नौहा गाते हुए ८ किलोमीटर पैदल चलकर शोक मनाते थे . उन्हें फिल्मों का भि बड़ा शौक था .अभिनेत्री सुलोचना की कोई फिल्म वे नहीं छोड़ते थे . कुलसुम हलवाईन की कचौरी तलना भी संगीतमय था .मुसलमान होते हुए भी काशी विश्वनाथ और बालाजी मंदिर के प्रति अगाध श्रधा रखते थे .इस प्रकार वे भारत की सामायिक संस्कृति के प्रतिक बन गए थे . भारत रत्न ,पद्म विभूषण आदि मानद उपाधियाँ प्राप्त करने पर भी सादगी पसंद इंसान बने रहे .८० वर्षों तक संगीत साधना करते हुए २१ अगस्त २००६ को संगीत रसिकों को अकेला छोड़कर चले गए . इस प्रकार बिस्मिल्ला खाँ का जीवन संगीत साधना को समर्पित था .
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प्रश्न अभ्यास नौबतखाने में इबादत question answer
प्र.१.शहनाई की दुनिया में डुमराँव को क्यों याद किया जाता है?
उ.१. लेखक ने शहनाई की दुनिया में डुमराँव को इसीलिए याद किया है क्योंकि डुमराँव में शहनाईवादक बिस्मिल्ला खाँ का जन्म हुआ था .साथ ही रीड नरकट जिसका प्रयोग शहनाई बजाने में होता है ,वह सोन नदी के किनारे डुमराँव में पायी जाती है .
प्र.२.बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगलध्वनि का नायक क्यों कहा गया है?
उ. २. बिस्मिल्ला खाँ प्रसिद्ध शहनाई वादक है .वे काशी विश्वनाथ और बालाजी मंदिर में मंगलध्वनि बजाते थे . पूरे अस्सी वर्ष तक सच्ची रियाज़ कर सुर साधना करते थे .उन्हें हमेशा लगता था कि उनकी शहनाई वादन में कहीं कोई कमी रह गयी है .अपनी साधना में लीन बिस्मिल्ला खाँ मंगल कामना सबकी किया करते थे .
प्र.३.सुषिर वाद्यों से क्या अभिप्राय है? शहनाई को ‘सुषिर वाद्यों में शाह’ की उपाधि क्यों दी गई होगी?
उ.३. सुषिर वाद्य यंत्रों से तात्पर्य ऐसे यंत्र से है जिन्हें फूँक कर बजाय जाता है . इसमें छेद और अन्दर से खोखले होते हैं . शहनाई से सुषिर वाद्य यंत्र इसीलिए कहा गया है क्योंकि इसे भि फूँक कर बजाय जाता है .सभी वाद्ययंत्रों में शहनाई सबसे सुरीला होता है ,इसीलिए इसे सुषिर वाद्यों में शाह की उपाधि दी गयी है .
प्र.४.आशय स्पष्ट कीजिए:
क.‘फटा सुर न बख्शें। लुंगिया का क्या है, आज फटी है, तो कल सी जाएगी।‘
उ.४.क. एक शिष्या के उस्ताद के फटीं लूँगी पहनने का कारण पूंछने पर उस्ताद ने कहा कि खुदा उन्हें फटा हुआ सूर न दे . लुंगिया अगर फटी है ,तो कल को सिल जायेगी ,परन्तु जीवन में कभी बेसुरा राग न आने पाए .
THNX...
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नौबतखाने में इबादत
Naubat Khane Me Ibadat
नौबतखाने में इबादत summary naubat khane mein ibadat short summary नौबतखाने में इबादत का सार - नौबतखाने में इबादत ,यतीन्द्र मिश्र जी द्वारा लिखी गयी प्रसिद्ध शहनाईवादक बिस्मिल्ला खाँ के जीवन पर आधारित है . उनका जन्म बिहार में सोन नदी के किनारे डुमराँव में हुआ . ननिहाल में नाना, मामा द्वारा शहनाई बजने के कारण वे बनारस में ६ वर्ष की उम्र में ही बालाजी मंदिर में शहनाई बजाने लगे . उनका वास्तविक नाम अमिरुद्दीन था . रस्ते में बालाजी मंदिर जाते समय रसूलनबायीं और बतुलनबायीं का घर पड़ता था . वे बहने सुबह - सुबह टप्पे ,दादरा आदि गाती थी .बचपन में बिस्मिल्ला खाँ को इन्ही से संगीत की प्रेरणा मिली . वे जीवन भर खुदा से यही दुवा माँगते रहे - सच्चा सुर. उनके जीवन में मुहर्रम का त्यौहार जुड़ा हुआ था .पूरे दस दिन वे शहनाई नहीं बजाते थे .आठवें दिन दालमंडी से नौहा गाते हुए ८ किलोमीटर पैदल चलकर शोक मनाते थे . उन्हें फिल्मों का भि बड़ा शौक था .अभिनेत्री सुलोचना की कोई फिल्म वे नहीं छोड़ते थे . कुलसुम हलवाईन की कचौरी तलना भी संगीतमय था .मुसलमान होते हुए भी काशी विश्वनाथ और बालाजी मंदिर के प्रति अगाध श्रधा रखते थे .इस प्रकार वे भारत की सामायिक संस्कृति के प्रतिक बन गए थे . भारत रत्न ,पद्म विभूषण आदि मानद उपाधियाँ प्राप्त करने पर भी सादगी पसंद इंसान बने रहे .८० वर्षों तक संगीत साधना करते हुए २१ अगस्त २००६ को संगीत रसिकों को अकेला छोड़कर चले गए . इस प्रकार बिस्मिल्ला खाँ का जीवन संगीत साधना को समर्पित था .
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प्रश्न अभ्यास नौबतखाने में इबादत question answer
प्र.१.शहनाई की दुनिया में डुमराँव को क्यों याद किया जाता है?
उ.१. लेखक ने शहनाई की दुनिया में डुमराँव को इसीलिए याद किया है क्योंकि डुमराँव में शहनाईवादक बिस्मिल्ला खाँ का जन्म हुआ था .साथ ही रीड नरकट जिसका प्रयोग शहनाई बजाने में होता है ,वह सोन नदी के किनारे डुमराँव में पायी जाती है .
प्र.२.बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगलध्वनि का नायक क्यों कहा गया है?
उ. २. बिस्मिल्ला खाँ प्रसिद्ध शहनाई वादक है .वे काशी विश्वनाथ और बालाजी मंदिर में मंगलध्वनि बजाते थे . पूरे अस्सी वर्ष तक सच्ची रियाज़ कर सुर साधना करते थे .उन्हें हमेशा लगता था कि उनकी शहनाई वादन में कहीं कोई कमी रह गयी है .अपनी साधना में लीन बिस्मिल्ला खाँ मंगल कामना सबकी किया करते थे .
प्र.३.सुषिर वाद्यों से क्या अभिप्राय है? शहनाई को ‘सुषिर वाद्यों में शाह’ की उपाधि क्यों दी गई होगी?
उ.३. सुषिर वाद्य यंत्रों से तात्पर्य ऐसे यंत्र से है जिन्हें फूँक कर बजाय जाता है . इसमें छेद और अन्दर से खोखले होते हैं . शहनाई से सुषिर वाद्य यंत्र इसीलिए कहा गया है क्योंकि इसे भि फूँक कर बजाय जाता है .सभी वाद्ययंत्रों में शहनाई सबसे सुरीला होता है ,इसीलिए इसे सुषिर वाद्यों में शाह की उपाधि दी गयी है .
प्र.४.आशय स्पष्ट कीजिए:
क.‘फटा सुर न बख्शें। लुंगिया का क्या है, आज फटी है, तो कल सी जाएगी।‘
उ.४.क. एक शिष्या के उस्ताद के फटीं लूँगी पहनने का कारण पूंछने पर उस्ताद ने कहा कि खुदा उन्हें फटा हुआ सूर न दे . लुंगिया अगर फटी है ,तो कल को सिल जायेगी ,परन्तु जीवन में कभी बेसुरा राग न आने पाए .
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kuch nhi..
bhai pdlo
issue kuch ni hona.
,
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