Hindi, asked by anshulvns123, 1 year ago

summary of parda story by yashpal

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Answered by NightFury
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 पीरबख्श के दादा चुंगी के महकमे में दारोगा थे । आमदनी अच्छी थी । एक छोटा, पर पक्का मकान भी उन्होंने बनवा लिया । लड़कों को पूरी तालीम दी । दोनों लड़के एण्ट्रेन्स पास कर रेलवे में और डाकखाने में बाबू हो गये । चौधरी साहब की ज़िन्दगी में लडकों के ब्याह और बाल-बच्चे भी हुए, लेकिन ओहदे में खास तरक्की न हुई; वही तीस और चालीस रुपये माहवार का दर्जा ।

अपने जमाने की याद कर चौधरी साहब कहते-''वो भी क्या वक्त थे ! लोग मिडिल पास कर डिप्टी-कलेक्टरी करते थे और आजकल की तालीम है कि एण्ट्रेन्स तक अंग्रेज़ी पढ़कर लड़के तीस-चालीस से आगे नहीं बढ पाते ।'' बेटों को ऊँचे ओहदों पर देखने का अरमान लिये ही उन्होंने आँखें मूंद लीं ।

इंशा अल्ला, चौधरी साहब के कुनबे में बरक्कत हुई । चौधरी फ़ज़ल कुरबान रेलवे में काम करते थे । अल्लाह ने उन्हें चार बेटे और तीन-बेटियां दीं। चौधरी इलाही बख्श डाकखाने में थे । उन्हें भी अल्लाह ने चार बेटे और दो लड़कियाँ बख्शीं ।

चौधरी-खानदान अपने मकान को हवेली पुकारता था । नाम बड़ा देने पर जगह तंग ही रही । दारोगा साहब के जमाने में ज़नाना भीतर था और बाहर बैठक में वे मोढ़े पर बैठ नैचा गुड़गुड़ाया करते । जगह की तंगी की वजह से उनके बाद बैठक भी ज़नाने में शामिल हो गयी और घर की ड्योढ़ी पर परदा लटक गया। बैठक न रहने पर भी घर की इज्जत का ख्याल था, इसलिए पर्दा बोरी के टाट का नहीं, बढ़िया किस्म का रहता ।

ज़ाहिर है, दोनों भाइयों के बाल-बच्चे एक ही मकान में रहने पर भी भीतर सब अलग-अलग था । डयोढ़ी का पर्दा कौन भाई लाये? इस समस्या का हल इस तरह हुआ कि दारोगा साहब के जमाने की पलंग की रंगीन दरियाँ एक के बाद एक डयोढ़ी में लटकाई जाने लगीं ।

तीसरी पीढ़ी के ब्याह-शादी होने लगे । आखिर चौधरी-खानदान की औलाद को हवेली छोड़ दूसरी जगहें तलाश करनी पड़ी । चौधरी इलाही बख्श के बड़े साहबजादे एण्ट्रेन्स पास कर डाकखाने में बीस रुपये की क्लर्की पा गये । दूसरे साहबजादे मिडिल पास कर अस्पताल में कम्पाउण्डर बन गये ।ज्यों-ज्यों जमाना गुजरता जाता, तालीम और नौकरी दोनों मुश्किल होती जातीं तीसरे बेटे होनहार थे । उन्होंने वज़ीफ़ा पाया । जैसे-तैसे मिडिल कर स्कूल में मुदर्रिस हो देहात चले गये ।

चौथे लड़के पीरबख्श प्राइमरी से आगे न बढ़ सके । आजकल की तालीम माँ-बाप पर खर्च के बोझ के सिवा और है क्या? स्कूल की फीस हर महीने, और किताबों, कापियों और नक्शों के लिए रुपये-ही-रुपये!

चौधरी पीरबख्श का भी ब्याह हो गया मौला के करम से बीबी की गोद भी जल्दी ही भरी । पीरबख्श ने रौजगार के तौर पर खानदान की इज्ज़त के ख्याल से एक तेल की मिल में मुंशीगिरी कर लीं । तालीम ज्यादा नहीं तो क्या, सफेदपोश खानदान की इज्ज़त का पास तो था । मजदूरी और दस्तकारी उनके करने की चीजें न थीं । चौकी पर बैठते । कलम-दवात का काम था ।

Answered by bhatiamona
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यशपाल जी द्वारा लिखी गई परदा कहानी का सारांश  

इस कहानी में चौधरी पीरबक्श और उनके दो लड़के और आगे उनके परिवार की कहानी है। पीरबख्श के दादा चुंगी के महकमे में दारोगा थे । आमदनी अच्छी थी । एक छोटा, पर पक्का मकान भी उन्होंने बनवा लिया । लड़कों को पूरी तालीम दी । दोनों लड़के एण्ट्रेन्स पास कर रेलवे में और डाकखाने में बाबू हो गये।

कहानी का सारांश

यशपाल की कहानी ‘परदा’ दरअसल मध्यवर्गीय समाज की विडंबनाओं और की कहानी है। जिन लोगों की सारी कोशिश हमेशा अमीर बनने की होती है, जो खुद से रईस लोगों की दिनचर्या का पालन करते हैं, उनके जैसा बनना चाहते हैं और अपनी गुरबत को छिपाते रहते हैं। वे न तो अमीर की श्रेणी में आ पाते हैं न ग़रीबों की तरह अपनी ग़रीबी स्वीकार कर जी पाते हैं। इस कहानी का मुख्य किरदार यूं तो वह परदा ही है जो एक घर की लाज बनाने की कोशिश अपने अंतिम रेशे, अपने अंतिम धागे तक करता है। पर चूंकि यह परदा चौधरी पीरबक्श के मकान पर टंगा था तो सारा किस्सा उन्हीं की सहारे चलता था।कहानी के अंत में  से परदा हट चुका था । सबको उनके घर के हालत के बारे में पता चल गया था ।

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