summary of prem chand ke phate joote
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सिर पर मोटे कपड़े की टोपी , कुर्ता और धोती पहने हुए प्रेमचंद ने अपनी पत्नी के साथ फोटो तो खींचवाई किंतु पावों में जो जो गंदे ढंग से बंधे हुए जूते हैं उनमें से एक फटा हुआ है फोटोग्राफर ने तो क्लिक करके अपना काम पूरा कर लिया , लेकिन प्रेमचंद अपने दर्द की गहराई से निकलकर जिस मुस्कान से होठों तक लाने वाले थे , वह अधूरी ही रह गई लेखक के अनुसार प्रेमचंद के जीवन की है त्रासदी कि कि उनके पास फोटो खिंचवाने के लिए भी दूसरे जूते नहीं थे लोग तो फोटो खिंचवाने के लिए कपड़े तो क्या , बीबी तक किराए पर ले लेते हैं टोपी जूते से सस्ती थी और एक जूते पर बीसीयू टोपिया नौ छावर की जा सकती है जूते और टोपी की इसी अनुपातिक मूल्य का शिकार होकर ही शायद हमारे उपन्यास सम्राट रचनाकर नया जूता ना खरीद सके
लेखक का जूता भी कोई अच्छी दशा में नहीं है परंतु अंगूठे के नीचे का ताला खत्म होने के कारण सब कुछ पर्दे में रहता है प्रेमचंद के जूते के फटने के कारण पर विचार करते हुए लेखक कहते हैं कि यदि बनिया के तगादे से बचने के लिए प्रेमचंद ने अधिक चक्कर लगाए हो तो उसे जूता सिर्फ gishta यह तो निश्चित रूप से किसी टीले जैसी चीज पर बार बार ठोकर मारी गई है जिससे जूता फट गया यदि प्रेमचंद चाहते तो नदी की भांति उस टीले से बचकर रास्ता बदलकर भी निकल सकते थे किंतु शायद मैं समझौता नहीं कर सके प्रेमचंद के फटे जूते से बाहर निकले अंगूठे शायद हम जैसे समझौते करने वालों पर ही व्यंग कर रहे हैं मुस्कान में भी ऐसे ही व्यंग किया है जिसे समझने का दावा लेखक करता है
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