summary of swarg bana sake hai
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श्री रामधारी सिंह दिनकर की कविताओं में राष्ट्रवादी स्वर सुनाई देता है प्रस्तुत कविता स्वर्ग बना सकते हैं मैं कवि ने देशवासियों को राष्ट्र निर्माण के लिए स्वार्थ लोभ और अहंकार जैसे दुर्गुणों संवेदनशील होने के प्रेरणा दी है ईश्वर ने इस पृथ्वी पर जीने को सब को समान रुप से अधिकार दिया है सुबह के लिए अपार संपदा दी है यदि मनुष्य चाहे तो सब समान रुप से सुख के भागी हो सकते हैं और यह धरती स्वर्ग से भी सुंदर और सुखद स्थान बन सकती है
संदर्भ: - प्रस्तुत कविता हमारी पाठ्य पुस्तक साहित्य सागर के पद्य भाग में संकलित स्वर्ग बना सकते हैं शीर्षक रचना से अवतरित है के रचयिता राष्ट्रवादी कवि श्री रामधारी सिंह दिनकर जी हैं
भावार्थ: - भीष्म पितामह विजय युधिष्ठिर को राज्यपाल समझाते हुए कहते हैं कि हे युधिष्ठिर! यह धरती किसी की दासी नहीं है इस पर सब का समान रूप से अधिकार है ईश्वर नहीं आ धरती सब के लिए बनाई है यहां प्रत्येक प्राणी को जीवन के लिए स्वतंत्र रूप से वायु प्रकाश और अनाज चाहिए ईश्वर ने सबके लिए सुलभ किया है ताकि हर व्यक्ति सब प्रकार की आशंकाओं और भय से मुक्त होकर अपना जीवन सुखपूर्वक व्यतीत कर सके कवि के अनुसार दुर्भाग्य से अनेक स्वार्थी और लोभी मनुष्य मानवता के राह में बाधक बन कर चारों चारों तरफ अशांति उत्पन्न कर रहे हैं व्यापी शक्ति का दुरुपयोग करके दूसरों को हानि पहुंचा रहे हैं
न्यायोचित............ कम होगा
भावार्थ-: - कभी कहते हैं कि जब तक प्रत्येक मनुष्य को न्याय नहीं मिलेगा जब तक उसे समान रूप से अपना सुख भाग प्राप्त नहीं होगा तब तक इस धरती पर सुख शांति संभव नहीं है जब तक मनुष्य लोग के वशीभूत होकर एक दूसरे का अधिकार चिंता रहेगा तब तक सब लोग समान रुप से सुखी नहीं हो पाएंगे संसार में आपसी कलह द्वेष का वातावरण बना रहेगा
उसे भूल .............बना सकते हैं
भावार्थ उक्त सच्चाई को भूलकर मनुष्य अपने ही सुख की चिंता में लगा हुआ है:- ईश्वर ने मनुष्य को इतनी प्राकृतिक संपदा दी है कि यदि सब समान रूप से अपनी आवश्यकता अनुसार भाग ग्रहण करें तो संसार में कहीं भी दो का प्रभाव शेष नहीं रहेगा किंतु भविष्य की चिंता से आशंकित मनुष्य अधिक से अधिक संपत्ति का संचय करने में जुटा हुआ है यही कलह का मूल कारण है| हमें इस धरती को अनेक प्रकार के खनिजों फल फूल औषधियां धातु और रत्नों का उपहार दिया है इस धरती पर अभी इतने मनुष्य नहीं हैं जो इस सुख-साधनों को भोग सके सके| कवि कहते हैं कि यदि सभी मनुष्य समान रूप से धरती से उतना ही ग्रहण करे जितना उनके लिए आवश्यक है समान रुप से संतुष्ट और सुखी हो सकते हैं यदि हम चाहे तो धरती को छड़ भर में संतुष्ट और सुखी बना सकते हैं यदि हम चाहें तो धरती को छोड़कर मैं सुंदर और स्वर्ग बना सकते हो|