Summary on Mathrubhumi poem
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भारत माँ के यहाँ हरे-भरे खेत , फल-फूलों से युत वन-उपवन तथा खनिजों का व्यापक धन है। इस प्रकार प्राकृतिक सौंदर्य सब को मोह लेता है ।
मातृभूमि अमरों की जननी है । उसके हृदय में गाँधी, बुद्ध और राम समायित है । माँ के एक हाथ में न्याय पताका तो दूसरे हाथ में ज्ञान डीप है । इस प्रकार मातृभूमि का स्वरुप सुशोभित है ।
आज हम करोड़ो भारतवासी इस की शरण में है ।
'मातृभूमि' भगवतीचरण वर्मा जी द्वारा लिखी गई है। इस कविता में कवि हमारी मातृभूमि की प्रशंसा करते हुए कहता है कि हे मातृभूमि हम तुम्हे शत शत प्रणाम करते हैं क्यूँकि तुमने अमरो को जनम दिया है। तुम धन्य हो। तुम वन्दना के योग्य हो क्यूँकि तुम्हारे हृदय में गांधी, बुद्ध और राम जैसे महापुरुष निद्रित है। जिन्होने इस भारतवर्ष को जगत प्रसिद्ध तथा पुण्य भूमि बनाया है। इस लिए हम तुम्हे कोटी कोटी प्रणाम करते हैं। कवि कहता है कि तेरे खेत हरे भरे है। तेरे वन भी फूलों तथा फलों से भरे पड़े हैं। तुमने अपनी कृपा से हमे अन्न प्रदान किया है। हे माँ तुम्हारे एक हाथ में न्याय पताका है और दूसरे हाथ में दीप है अर्थात् तुम न्याय के साथ ज्ञान भी दे रही हो, इसीलिए हम तुम्हे कोटी कोटी प्रणाम करते हैं।