Summary on mera chota sa niji pustakalaya in hindi
Answers
लेखक धर्मवीर भारती जी ने 'मेरा छोटा सा निजी पुस्तकालय' पाठ में अपने स्वयं के पुस्तकालय के बारे में बताया है। लेखक को पुस्तकें बहुत प्रिय हैं। पुस्तकें उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। पुस्तकें उनके जीवन का आधार हैं। बचपन से लेकर बड़ी उम्र तक, हर कठिन समय में पुस्तकों ने उनको सहारा दिया है। वे उनके लिए मित्र के समान हैं। पुस्तकों ने उन्हें सही राह दिखाई है।
पुस्तकों के साथ उनका संपर्क बचपन में शुरू हुआ। उनके पिता ने उन्हें पुस्तकों से परिचित किया। बचपन में उनके घर में अनेक पत्रिकायें आया करती थीं। लेखक की उनमें रूचि उत्पन्न हुई। उन्होंने धीरे धीरे पुस्तकों को सहेजना आरंभ कर दिया। इस प्रकार उनके पुस्तकालय की नींव पड़ी।Answer:
लेखक इस पाठ में अपने बारे में बात कर रहा है। लेखक साल 1989 जुलाई की बात करता हुआ कहता है कि उस समय लेखक को तीन-तीन जबरदस्त हार्ट-अटैक आए थे और वो भी एक के बाद एक। उनमें से एक तो इतना खतरनाक था कि उस समय लेखक की नब्ज बंद, साँस बंद और यहाँ तक कि धड़कन भी बंद पड़ गई थी। उस समय डॉक्टरों ने यह घोषित कर दिया था कि अब लेखक के प्राण नहीं रहे। लेखक कहता है कि उन सभी डॉक्टरों में से एक डॉक्टर बोर्जेस थे जिन्होंने फिर भी हिम्मत नहीं हारी थी। उन्होंने लेखक को नौ सौ वॉल्ट्स के शॉक्स (shocks) दिए। लेखक के प्राण तो लौटे, पर इस प्रयोग में लेखक का साठ प्रतिशत हार्ट सदा के लिए नष्ट हो गया। अब लेखक का केवल चालीस प्रतिशत हार्ट ही बचा था जो काम कर रहा था। लेखक कहता है कि उस चालीस प्रतिशत काम करने वाले हार्ट में भी तीन रुकावटें थी। जिस कारण लेखक का ओपेन हार्ट ऑपरेशन तो करना ही होगा पर सर्जन हिचक रहे हैं।सर्जन को डर था कि अगर ऑपरेशन कर भी दिया तो हो सकता है कि ऑपरेशन के बाद न हार्ट रिवाइव ही न हो।
Explanation:
सभी ने तय किया कि हार्ट के बारे में अच्छी जानकारी रखने वाले अन्य विशेषज्ञों की राय ले ली जाए, उनकी राय लेने के बाद ही ऑपरेशन की सोचेंगे। तब तक लेखक को घर जाकर बिना हिले-डुले आराम करने की सलाह दी गई। लेखक ने जिद की कि उसे बेडरूम में नहीं बल्कि उसके किताबों वाले कमरे में ही रखा जाए। लेखक की जिद मानते हुए लेखक को वहीं लेटा दिया गया। लेखक को लगता था कि लेखक के प्राण किताबों के उस कमरे की हजारों किताबों में बसे हैं जो पिछले चालीस-पचास साल में धीरे-धीरे लेखक के पास जमा होती गई थी। ये इतनी सारी किताबें लेखक के पास कैसे जमा हुईं, उन किताबों को इकठ्ठा करने की शुरुआत कैसे हुई, इन सब की कथा लेखक हमें बाद में सुनाना चाहता है। पहले तो लेखक हमें यह बताना जरूरी समझता है कि लेखक को किताबें पढ़ने और उन्हें सम्भाल कर रखने का शौक कैसे जागा। लेखक बताता है कि यह सब लेखक के बचपन से शुरू हुआ था। लेखक अपने बचपन के बारे में बताता हुआ कहता है कि उसके पिता की अच्छी-खासी सरकारी नौकरी थी। जब बर्मा रोड बन रही थी तब लेखक के पिता ने बहुत सारा धन कमाया था। लेकिन लेखक के जन्म के पहले ही गांधी जी के द्वारा बुलाए जाने पर लेखक के पिता ने सरकारी नौकरी छोड़ दी थी।