Hindi, asked by sneha9864, 10 months ago

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Answered by anishakumari87
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सूरदास पर निबंध | Essay on Surdas in Hindi!

कविवर सूरदास हिंदी काव्य जगत के वे अनुपम सितारे हैं जो अपने अमिट साहित्य के माध्यम से जनमानस में युग-युगांतर तक अपनी चमक बिखेरते रहेंगे । कविवर सूरदास, महाकवि तुलसी व केशव आदि के समकक्ष कवि हैं ।

उनकी महिमा की बखान करते हुए किसी कवि ने सत्य ही लिखा है:

”सूर सूर, तुलसी ससि, उडुगन केशवदास ।”

कविवर सूरदास हिंदी साहित्य की कृष्ण भक्ति काव्यधारा के प्रमुख कवि हैं । सूरदास जी जन्म के स्थान व जन्म तिथि के संदर्भ में विद्‌वान एकमत नहीं हैं परंतु अधिकांश लोगों का मानना है कि आप जन्म से ही अंधे थे । प्राप्त तथ्यों के आधार पर सूरदास जी का जन्म संवत् 1535 ई॰ में बल्लभगढ़ के समीप सीही नामक ग्राम में हुआ था।

सूरदास जी बचपन से ही अपने परिवार से विमुख हो गए थे ताकि वह उन पर बोझ न बन सकें । सूरदास जी की वाणी में मधुरता थी । जब वे भाव-विभोर होकर कृष्ण लीला का वर्णन करते हुए पद-गायन करते थे तब समस्त ग्रामवासी भी हर्ष से झूम उठते तथा मंत्रमुग्ध हो उनका गायन सुनते थे ।

सूरदास जी सीही से निकलकर भ्रमण करते हुए मथुरा गए, परंतु शांतिप्रिय सूरदास वहाँ अधिक दिनों तक नहीं रुक सके । तत्पश्चात् वे मथुरा-आगरा सड़क पर स्थित गऊघाट पर आकर रहने लगे । घाट पर ही जब पुष्टि संप्रदाय के महान गुरु बल्लभाचार्य पधारे तब सूरदास जी से उनकी मुलाकात हुई । बल्लभाचार्य जी सूरदास के पदों से अत्यंत प्रभावित हुए । सूरदास को बल्लभाचार्य जी से दीक्षा प्राप्त हुई तथा उन्होंने ही सूरदास को आजीवन कृष्ण-लीला का गायन करने हेतु प्रेरित किया ।

इसके पश्चात् सूरदास पूर्णतया कृष्ण भक्ति में लीन हो गए । उनके द्‌वारा कृष्ण भक्ति में रमे नित नए पदों की रचना होने लगी । कहते हैं कि 105 वर्ष के अपने दीर्घ जीवनकाल में उन्होंने एक लाख से भी अधिक पदों की रचना की । हालाँकि इसमें से कुछ पद ही आज पाठकों के लिए उपलब्ध हैं । आप के द्‌वारा रचित काव्यग्रंथ ‘सूरसागर’, ‘सूर सारावली’ एवं ‘साहित्य लहरी’ हिंदी साहित्य जगत की अति विशिष्ट काव्य कृतियाँ हैं ।

‘सूरसागर’ एक अत्यंत अनूठा एवं अद्‌वितीय काव्यग्रंथ है । भगवान कृष्ण की बाल्यकालीन लीला का जो मनोहारी एवं अनूठा चित्रण सूरदास जी ने किया है वह अतुलनीय है। उनकी दस अद्‌वितीय काव्य रचनाओं में श्री कृष्ण के बाल जीवन तथा गोपिकाओं के साथ हास-परिहास एवं अनेक प्रकार के असुरों के हनन आदि का वर्णन मिलता है ।

उनकी बाल-लीलाओं का चित्रण इतने सुन्दर ढंग से हुआ है कि समस्त दृश्य जैसे सजीव हो उठते हैं । माता यशोदा के द्‌वारा बालक श्रीकृष्ण जब मक्खन (नवनीत) चुराते समय पकड़े जाते हैं तब वह किस प्रकार माता को समझाते हैं वह निम्नलिखित पंक्तियों में वर्णित है:

”मैया मोरी, मैं नहिं माखन खायो । ग्वाल बाल सब बैर परत हैं, बरबस मुख लपटायो । री मैया मोरी मैं नहिं माखन खायो ।”

इसी प्रकार बालक श्रीकृष्ण के इस दृश्य का भी मनोहारी चित्रण है जिसमें वह मक्खन हाथ में लिए हुए घुटनों के बल चलते हैं:

”सोभित कर नवनीत लिए । घटरुनि चलत रेनु तन मंडित दधि मुख लेप किये ।”

इसी प्रकार उनके बाल्य जीवन संबंधी ऐसे अनेकों प्रसंगों का वर्णन सूरसागर से प्राप्त होता है जो मन को छू जाता है ओर पाठक को भाव-विभोर कर देता है । श्रीकृष्ण एवं राधिका के पावन प्रेम को भी सूरदास जी ने बड़े ही प्रभावशाली ढंग से चित्रित किया है । शृंगार का जो अद्‌भुत चित्रण सूरदास जी ने अपनी रचनाओं में किया है वह अद्‌वितीय है ।

सूरदास के काव्य में वात्सल्य, करुण, शांति एवं शृंगार आदि रसों का प्रयोग बहुलता से देखने को मिलता है । उनके काव्यों में विभिन्न अलंकारों – अनुप्रास, उपमा, उत्प्रेक्षा व यमक आदि का सम्मिश्रण काव्य को और भी अधिक उत्कृष्ट बनाता है ।

मानव जीवन के विभिन्न अनुभूतिपूर्ण रंगों का प्रयोग जिस अनूठे एवं प्रभावशाली ढंग से सूरदास जी ने किया है वह विरला ही कोई कर सकता है । सूरदास जी के समस्त पद गेय हें एवं साथ ही साथ संगीतात्मक भी जो उनकी संगीत शास्त्र के प्रति बोध की पुष्टि करते हैं । आज भी सूरदास के पद हमारे भजनों व शास्त्रीय गायकी में विशेष रूप से प्रचलित हैं जो श्रोताओं को भावविभोर कर देते हैं ।

सूरदास का संपूर्ण जीवन भगवान श्रीकृष्ण के प्रति समर्पित था । दूसरे शब्दों में, यदि हम उन्हें पूर्णतया कृष्णमय कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी । सूरदास द्‌वारा रचित काव्य ‘सूरसागर’ उनकी हिंदी साहित्य जगत के लिए एक महान देन है । इसके अतिरिक्त सूर-सारावली, साहित्य लहरी, दृष्टिकूट, सेवाफल, नल-दमयंती आदि भी उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ हैं।

वास्तविक रूप में कविवर सूरदास काव्य जगत के शिरोमणि कवि थे जिनकी काव्य प्रतिभा का आलोक आज भी प्रकाशमान है । आज भी उनकी रचानाएँ जनमानस को मंत्रमुग्ध करती हैं तथा हजारों लाखों को ईश्वर के प्रति भक्ति भाव से जोड़ती हैं । इस प्रकार सूरदास हिंदी साहित्य के ऐसे अनमोल रत्न हैं जिनकी महत्ता को हिंदी साहित्य के किसी भी कालखंड में घटाया नहीं जा सकता ।

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