Swatantrata Diwas mein महिलाओ की भुमिका
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जयपुर । 14 अगस्त 1947, एक ऐसी रात जब लोग सोए तो गुलाम देश में थे, लेकिन अगली सुबह उनकी आजादी की सुबह थी यानी 15 अगस्त 1947। आज भी हमें लगता है कि देश आजाद कराने में हमारे महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह जैसे महान पुरुषों का ही योगदान था। यदि हम आपको बताए कि भारत की आजादी की लड़ाई में महान पुरुषों के अलावा महान महिलाओं का भी अहम योगदान रहा है तो आप चौंक जाएंगे। यह बात चौकाने वाली जरूर है, लेकिन यह सच है कि आजादी में महिलाओं का भरपूर योगदान रहा है। आइए जानते हैं इन महिलाओं के बारे में-
सरोजनी नायडू : भारत कोकिला के नाम से जानी जाने वाली सरोजनी नायडू सन् 1914 में पहली बार महात्मा गांधी से इंग्लैंड में मिली और उनके विचारों से प्रभावित होकर देश के लिए समर्पित हो गईं। सरोजनी नायडू ने एक कुशल सेना की भांति अपना परिचय हर क्षेत्र चाहे वह ''सत्याग्रह'' हो या ''संगठन'' में दिया। उन्होंने अनेक राष्ट्रीय आंदोलनों का नेतृत्व भी किया जिसके लिए उन्हें जेल तक जाना पड़ा। फिर भी उनके कदम नहीं रुके संकटों से न घबराते हुए वे एक वीर विरांगना की भांती गांव-गांव घूमकर देश-प्रेम का अलख जगाती रहीं और देशवासियों को उनके कर्तव्यों के लिए प्रेरित करती रहीं और याद दिलाती रहीं। अपनी लोकप्रियता और प्रतिभा के कारण सन् 1932 में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व दक्षिण अफ्रीका भी गई। भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद वह उत्तरप्रदेश की पहली महिला राज्यपाल भी बनीं।
रानी लक्ष्मीबाई : भारत में जब भी महिलाओं के सशक्तिकरण की बात होती है तो महान वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की चर्चा ज़रूर होती है. रानी लक्ष्मीबाई न सिर्फ़ एक महान नाम है बल्कि वह एक आदर्श हैं उन सभी महिलाओं के लिए जो खुद को बहादुर मानती हैं और उनके लिए भी एक आदर्श हैं जो महिलाएं ये सोचती है कि 'वह महिलाएं हैं तो कुछ नहीं कर सकती.' देश के पहले स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली रानी लक्ष्मीबाई के अप्रतिम शौर्य से चकित अंग्रेजों ने भी उनकी प्रशंसा की थी और वह अपनी वीरता के किस्सों को लेकर किंवदंती बन चुकी हैं।
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