swaysta समाज के निर्माण के लिए लोकतांत्रिक प्रतिक्रिया किस प्रकार सहायक है
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लोकतांत्रिक समाज बनाने के लिए राष्ट्रपति का मंत्र
3 वर्ष पहले
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राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपने एक व्याख्यान में उचित ही कहा है कि मीडिया को सत्ता के बारे में सवाल पूछने चाहिए और शोर मचाकर उन लोगों की आवाज नहीं दबानी चाहिए जो असहमत हैं। उनका यह कहना मीडिया का सिद्धांत होना चाहिए कि हम इसी प्रकार से राष्ट्र को बचा सकते हैं और एक लोकतांत्रिक समाज को कायम रख सकते हैं। मीडिया खासतौर पर इलेक्ट्रिॉनिक मीडिया उनके संकेत को समझे और दायित्व के निर्वाह में लोकतांत्रिक मान्यताओं का पालन करे। यह अधिकार किसी भी राजनीतिक दल को है कि वह अपनी खास विचारधारा में यकीन करे और सरकार की नीतियों का उस आधार पर निर्माण करे। लेकिन, उसका यह भी कर्तव्य है कि वह विचारधारा लोकतांत्रिक मान्यताओं को खंडित करने वाली न हों और नीतियां संविधान सम्मत हों। राष्ट्र एक गतिशील अवधारणा है और वह हर युग में जरूरतों के लिहाज से बदलती है और उसमें प्रतीकों और आख्यानों के साथ उन नागरिकों के सम्मान और सुरक्षा की अहमियत होती है, जिनके लिए वे गढ़े जाते हैं। आज के मीडिया के साथ दिक्कत यह हुई है कि उसने सत्तारूढ़ पार्टी और मौजूदा सरकार की मान्यताओं और नीतियों को ही राष्ट्र और लोकतंत्र मान लिया है और उस पर सवाल करना और उससे असहमत होने वालों को डांटना-फटकारना शुरू कर दिया है। सरकार से सवाल पूछने और उसे कटघरे में खड़ा करने की बजाय हमेशा विपक्ष को दोषी ठहराना और सरकार से असहमत संगठन और व्यक्ति पर टूट पड़ना मीडिया का स्वभाव बन रहा है, जो चिंताजनक है। अगर देश में कश्मीर से लेकर सुकमा तक हिंसा का वातावरण है तो मीडिया अपनी प्रस्तुतियों में उसे ठंडा करने की बजाय आग में घी डालने का काम करने लगता है। यह स्थिति तथ्यों को झुठलाने और उन्हें एक खास अवधारणा के लिहाज से पेश करने का माहौल बनाती है और उससे विविधता और बहुलता आहत होती है। सत्य की इसी एकतरफा व्याख्या के प्रति सचेत करते हुए गांधी ने अपने सत्याग्रह के सिद्धांत में कहा था कि हमें अपने सत्य को रखते हुए यह जरूर ख्याल रखना चाहिए कि वह गलत भी हो सकता है। भारतीय लोकतंत्र की नींव में सत्याग्रह का वही सिद्धांत है और मीडिया अगर सत्य के विविध रूपों में यकीन करके चलेगा तो वह एक लोकतांत्रिक समाज का निर्माण करेगा वरना हिंसा और तानाशाही को जन्म देगा।
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