ता है। अतः धनार्जन के साथ-साथ गुणार्जन में ।
ना चाहिए।
6. आरम्भगुर्वी क्षयिणी क्रमेण
लघ्वी पुरा वृद्धिमती च पश्चात्।
दिनस्य पूर्वार्द्धपरार्द्धभिन्ना
छायेव मैत्री खलसज्जनानाम्॥
पाठयांश-प्रश्नोत्तर
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